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आदिवासी हक़ के CNT और SPT क़ानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, ख़त्म ही कर देने की माँग

झारखंड के छोटा नागपुर (Chota Nagpur) और संथाल परगना (Santhal Pargana) के आदिवासियों की ज़मीन की रक्षा के लिए मौजूद दो क़ानूनों के सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में चुनौती दी गई है.

ये दोनों ही क़ानून ब्रिटिश हुकूमत के दौरान बनाये गए थे. छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट (CNT Act) और संथाल परगना टेनेंसी एक्ट (SPT Act) के तहत कोई ग़ैर आदिवासी किसी आदिवासी की ज़मीन नहीं ख़रीद सकता है. 

सुप्रीम कोर्ट में झारखंड के निवासी श्याम प्रसाद सिन्हा नाम के व्यक्ति ने याचिका दायर की है. इस याचिका में इन दोनों ही क़ानूनों को समाप्त करने की प्रार्थना की गई है. 

याचिका कर्ता ने कहा है कि इन दोनों ही क़ानूनों को ख़त्म कर के दूसरे राज्यों में मौजूद क़ानूनों के अनुरूप झारखंड में भी समान क़ानून बने. उन्होंने अपनी याचिका में कहा है कि इस क़ानून के प्रभाव विनाशकारी हैं. क्योंकि इन क़ानूनों के तहत सरकार भी विकास कार्यों के लिए आदिवासी की ज़मीन नहीं ले सकती है. 

इन क़ानूनों में छेड़छाड़ की कोशिश के विरोध में पत्थलगड़ी आंदोलन हुआ था

उन्होंने अपनी याचिका में दावा किया है कि इस क़ानूनों के प्रावधानों की वजह से राज्य के आम लोगों का काफ़ी नुक़सान हुआ है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया है कि यह क़ानून अंग्रेजों ने अपनी सुविधा और उपयोग के लिए बनाया था.

लेकिन आज़ादी के 74 साल बाद इन क़ानूनों को ख़त्म हो जाना चाहिए. 

इन क़ानूनों के तहत कोई साहूकार क़र्ज़ या ब्याज के नाम पर आदिवासी की ज़मीन नहीं हड़प सकता है. इसके साथ ही इन क़ानूनों के तहत कोई ग़ैर आदिवासी व्यक्ति आदिवासी किसान की ज़मीन नहीं ख़रीद सकता है. 

याचिका में कहा गया है कि बेशक यह क़ानून आदिवासियों की ज़मीन को ग़ैर आदिवासियों को बेचने पर पाबंदी लगाता है. इस क़ानून के तहत आदिवासी की ज़मीन किसी व्यवसायिक गतिविधियाों के लिए इस्तेमाल नहीं की जा सकती है. लेकिन इन इलाक़ों में ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से ज़मीन का लेन-देन चलता है.

इस क़ानून के तहत आदिवासी की ज़मीन सिर्फ़ आदिवासी ही ख़रीद सकता है. याचिकाकर्ता का दावा है कि इस क़ानून की वजह से आदिवासियों और ग़ैर आदिवासियों दोनों का ही नुक़सान हुआ है.

उनका कहना है कि आदिवासी ज़रूरत पड़ने पर भी अपनी ज़मीन नहीं बेच पाता है. क़ानून तौर पर ज़मीन बेचने का प्रावधान है ही नहीं, इसलिए आदिवासी ग़ैर क़ानून तरीक़े से ग़ैर आदिवासी को ज़मीन देता है. 

ज़ाहिर है इस केस में उन्हें ज़मीन की क़ीमत कम मिलती है. याचिका में दावा किया गया है कि संथाल परगना में सामान्य से एग्रीमेंट जिसे ‘भूक्तबंदा’ कहा जाता है, के तहत आदिवासी की ज़मीन ग़ैर आदिवासी ले लेता है.

इन क़ानूनों के पीछे आदिवासियों के लंबे संघर्ष और क़ुर्बानी का इतिहास है.

इस याचिका में दावा किया गया है कि इन क़ानूनों की वजह से छोटा नागपुर और संथाल परगना में आदिवासी ग़रीबी से भीषण ग़रीबी में चला गया है. 

इन दोनों ही क़ानूनों की पृष्ठभूमि में आदिवासी संघर्ष और आंदोलन के साथ-साथ क़ुर्बानियों का इतिहास है. आदिवासियों ने लगातार अंग्रेजों से अपनी ज़मीन को बचाने की लड़ाई लड़ी. 

इस लड़ाई में आदिवासियों ने अंग्रेजों को थका दिया और ये दोनों क़ानून एक तरह से अंग्रेजों की तरफ़ से आदिवासियों के साथ शांति संधि थी. 

इन क़ानूनों में बदलाव की कोशिश होती रही हैं, लेकिन जब भी ऐसी कोशिश हुई है राज्य के आदिवासियों ने इन कोशिशों का विरोध किया है और सरकार को पीछे हटने पर मज़बूर किया है.

झारखंड में साल 2016 में राज्य सरकार (बीजेपी की सरकार थी) ने इस क़ानून में छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट में संशोधन का प्रयास किया था. लेकिन इसका ज़बरदस्त विरोध किया गया.

झारखंड में पत्थलगड़ी आंदोलन की वजह भी इन क़ानूनों से छेड़छाड़ की कोशिश रही है. 

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