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पहाड़ी कोरवा बच्चे खाने से हुए बीमार, प्रसाद या आंगनबाड़ी के खाने में गड़बड़ के दावे

छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल जशपुर जिले में फूड पॉइज़निंग की वजह से पहाड़ी कोरवा समुदाय के 12 बच्चे बीमार पड़ गए हैं.

अधिकारियों ने बुधवार को यह जानकारी देते हुए कहा कि सभी बच्चों को सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया है, और अब सभी की हालत खतरे से बाहर है.

बच्चों के परिवार के लोगों का आरोप है कि जिले के बागीचा प्रखंड के आंगनबाडी केंद्र द्वारा दिए गए खाने की वजह से बच्चे बीमार पड़े हैं. वो कह रहे हैं कि आंगनबाड़ी से दिया गया रेडी-टू-ईट खाना खाने के बाद बच्चे बीमार पड़ गए.

लेकिन, जिला प्रशासन ने दावा किया है कि एक धार्मिक समारोह में कुछ मिठाइयां खाने के बाद बच्चों को फूड पॉइज़निंग हुई. फ़िलहाल अधिकारी मामले की जांच कर रहे हैं.

जशपुर कलेक्टर रितेश अग्रवाल नेका कहना है कि ऐसा लगता है कि बच्चों ने एक स्थानीय समारोह में कोई मिठाई खाई, जिसके बाद उनको से फूड पॉइज़निंग हुई. लेकिन कलेक्टर ने जांच के आदेश दिए हैं, और आंगनबाड़ी से दिए गए रेडी-टू-ईट खाने का नमूना बुधवार को जांच के लिए भेज दिया गया है.

“जिले के सभी 176 गांवों में खाने के लिए तैयार यानि रेडी-टू-ईट भोजन दिया जाता है, लेकिन इसके बारे में आज तक ऐसी कोई शिकायत नहीं आई. कुछ बच्चे जो बीमार थे, उन्होंने रेडी-टू-ईट खाना तो खाया भी नहीं, इसलिए ऐसा लगता है कि फूड पॉइज़निंग के पीछे कोई और वजह थी,” जिला पंचायत के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) विनोद सिंह ने दावा किया.

सिंह ने आगे बताया कि मंगलवार शाम प्रशासन को यह जानकारी मिली कि कुछ बच्चों ने दस्त और उल्टी की शिकायत की है.

चूंकि गांव जंगल के अंदर है, और मुख्यालय से लगभग 45 किमी दूर है, इन बच्चों को बागीचा के एक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया. अधिकारी कहते हैं कि ख़बर मिलते ही उनकी एक टीम मौके पर पहुंची थी, और बच्चों की मदद की.

2011 की जनगणना में पहाड़ी कोरवाआदिवासियों की संख्या लगभग 30 हज़ार बताई गई है

कौन हैं पहाड़ी कोरवा?

भारत में कुल 705 आदिवासी समूहों को औपचारिक तौर पर मान्यता दी गई है. यानि सरकार मानती है कि भारत में इतने छोटे-बड़े आदिवासी समुदाय हैं. इनमें से 75 आदिवासी समुदायों को पीवीटीजी (Particularly Vulnerable Tribes) के तौर पर अलग से पहचान दी गई है. 

पहाड़ी कोरवा आदिवासी पीवीटीजी यानि विशेष रूप से कमज़ोर जनजाति की श्रेणी में रखे गए हैं. ये आदिवासी आज भी जंगली कांदे (Wild Tubers) या फिर जंगल में अलग अलग मौसम में मिलने वाले फल खाते हैं. जंगल से अभी भी सिर्फ़ अपने खाने लायक़ ही कांदे या फल लाते हैं. बाक़ी आदिवासी समुदायों की तरह पहाड़ी कोरवा बेचने के लिए फल-फूल या पत्ते जमा नहीं करते हैं. 

2011 की जनगणना में इन आदिवासियों की संख्या लगभग 30 हज़ार बताई गई है. इन आदिवासियों में महिलाओं की तादाद ज़्यादा दर्ज की गई है. इस समाज में जनसंख्या वृद्धि दर नेगेटिव है.

पहाड़ी कोरवा आदिवासियों पर हमारी ग्राउंड रिपोर्ट देखने के लिए, आप यहां क्लिक करें.

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