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5 साल की सज़ा काटने के बाद निर्दोष पाए गए 121 आदिवासी, रिहा हुए

छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में एक अदालत ने यूएपीए (UAPA) के तहत अभियुक्त बनाए गए 121 आदिवासियों को रिहा कर दिया है. इन आदिवासियों पर आरोप हे कि उन्होंने पाँच साल पहले नक्सवादियों को एक हमला करने में मदद की थी. 

छत्तीसगढ़ के बुर्कापाल में पांच साल पहले यानि साल 2017 में हुए नक्सली हमले में  24 CRPF जवान मारे गए थे.  इस हमले के बाद नक्सलियों का साथ देने के जुर्म में पुलिस द्वारा बुर्कापाल और उससे लगे आसपास के गांव से 121 ग्रामीणों  को गिरफ्तार किया था. 

अब NIA कोर्ट ने उन आदिवासियों को दोषमुक्त करने का फैसला सुनाया है. दंतेवाड़ा के NIA कोर्ट ने शुक्रवार को यह फैसला सुनाया और कोर्ट के आदेश के बाद शनिवार की देर शाम जगदलपुर सेंट्रल जेल में बंद 105 लोगों को रिहा कर दिया गया है. 

जेल अधीक्षक अमित शांडिल्य ने बताया कि बाकी लोगों पर अन्य मामले होने की वजह से उन्हें रिहा नहीं किया गया है. शनिवार की शाम रिहा होने के बाद इन्हें दो बस के जरिए सुकमा और बीजापुर जिले में स्थित उनके गांव रवाना किया गया.  

इस मामले में पुलिस कोर्ट में नक़्सलियो के समर्थक के रूप में ग्रामीणों के खिलाफ कोई साक्ष्य पेश नहीं कर पाई. इस आधार पर कोर्ट ने 5 साल तक केंद्रीय जेल में सजा काटने के बाद  NIA कोर्ट से मिले फैसले के बाद इन्हें रिहा कर दिया गया है.

5 साल जेल में कट गए

जानकारी के मुताबिक 24 अप्रैल साल 2017 में बुरकापाल में नक़्सलियो ने CRPF जवानो पर हमला कर दिया था. इस हमले में 24 जवान मारे गए थे. घटना के बाद पुलिस ने इस गांव से लगे अलग-अलग इलाकों से करीब 121 लोगों को इस मामले में आरोपी बनाया था. 

इसमें तीन ग्रामीण दंतेवाड़ा के जेल में बंद थे. उनके अलावा सभी आदिवासी जगदलपुर केंद्रीय जेल में बंद थे. करीब 5 साल से जेल में बंद इन लोगों का फैसला शुक्रवार को जैसे ही आया उसके बाद इनकी रिहाई की प्रक्रिया शुरू कर दी गई. 

शनिवार शाम जगदलपुर जेल से 105 लोगों को रिहा किया गया.  गौरतलब है कि इस मामले में एक महिला को भी आरोपी बनाया गया था. जो जगदलपुर जेल में बंद थी.

घात लगा कर हमला किया गया था
सुकमा जिले के बुरकापाल में नक्सलियों द्वारा घात लगाकर किए गए हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के 25 जवान शहीद हो गए थे. हमले में 6 जवान घायल भी हुए थे. ये सभी जवान सीआरपीएफ के 74वीं बटालियन के थे. सड़क निर्माण की सुरक्षा में लगे ये जवान खाना खाने की तैयारी कर रहे थे. उसी दौरान घात लगाकर बैठे नक्सलियों ने जवानों पर गोलीबारी शुरू कर दी थी.

सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जताया संतोषछत्तीसगढ़ की जानी-पहचानी सामाजिक कार्यकर्ता और वकील बेला भाटिया ने इस ख़बर को ट्वीट किया है. उन्होंने जेल से छूटे आदिवासियों के बयान के सहारे कहने की कोशिश की है कि निर्दोष आदिवासियों को जेल में रखा गया था.

आदिवासियों ने कहा फ़र्ज़ी मामले थे

जेल से रिहा हुए ग्रामीण पदम, माड़वी, और उयाम ने बताया कि पुलिस ने उनके खिलाफ फर्जी मामला बनाया था. पुलिस उन्हें घटना के एक महीने बाद किसी को रात में तो किसी को तड़के सुबह करीब 4 बजे पकडक़र ले गई और उन पर इल्जाम लगाया कि वे बुरकापाल हमले में नक्सलियों के सहयोगी थे. 

जबकि ग्रामीणों ने कहा कि इस घटना को उन्होंने देखा ही नहीं था. इसके बाद उन पर फर्जी आरोप लगाकर और फर्जी तरीके से जेल में डाल दिया गया. ग्रामीणों ने कहा कि हम सभी लोग किसान हैं और अब न्यायालय ने हमें नई जिंदगी दी है. 

इन लोगों का कहना है कि वो वापस जाकर पहले की तरह खेती-किसानी करेंगे. इन ग्रामीणों में से कुछ ऐसे भी ग्रामीण हैं जो 5 साल सजा काटने के दौरान एक बार भी अपने परिवार वालों से नहीं मिल पाए और अब 5 साल बाद अपने परिवार से मिलेंगे. 

कुछ ग्रामीणों का कहना है कि जेल में रहने के दौरान उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा. वहीं अपने आपको बेकसूर बताने के बावजूद भी 5 साल तक उन्हें सजा काटनी पड़ी. 

आखिरकार सत्य की जीत हुई और कोर्ट ने उन्हें दोषमुक्त करार दिया और अब 5 साल के बाद उनकी खुशी लौटी है और अब अपने परिवार से मिल पा रहे हैं.

इस मामले में बस्तर आईजी सुंदरराज पी का कहना है कि पुलिस ने ग्रामीणों को नक्सलियों के साथ सांठगांठ होने और घटना में नक्सलियों का समर्थन करने का साक्ष्य नहीं जुटा पाई इसलिए कोर्ट ने इन्हें दोषमुक्त किया है. कुछ ग्रामीण अन्य प्रकरण में भी शामिल थे. उन्हें रिहा नहीं किया गया है.

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