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पैंट और तीर कमान बरामद कर आदिवासियों को 5 साल जेल में रखा जा सकता है?

एक छापे वाले लोअर (Camouflage lower) और कुछ तीर कमान को माओवादियों से संबंध के सबूत मान कर पुलिस 121 आदिवासियों को सज़ा दिलवाना चाहती थी. लेकिन कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष यानि पुलिस अदालत के सामने कोई ऐसा सबूत पेश नहीं कर सकी जिससे इन आदिवासियों का हमले में शामिल होने या मदद करने का संकेत मिलता है.

2017 में माओवादियों ने सीआरपीएफ़ पर हमला कर दिया था. इस हमले के सिलसिले में 121 आदिवासियों को गिरफ्तार कर लिया गया था. क़रीब 5 साल तक जेल में रहने के बाद इन सभी आदिवासियों को कोर्ट ने निर्दोष माना है.

इन 121 आदिवासियों में से 105 को जेल से छोड़ दिया गया है. बाक़ी 6 लोगों पर अन्य मामलों में केस चल रहा है इसलिए उन्हें जेल में ही रहना होगा. कोर्ट ने इस मामले के फैसले में कहा है कि अभियोजन पक्ष कि तरफ़ से एक भी मज़बूत गवाह या साक्ष्य पेश नहीं हुआ.

स्पेशल एनआईए कोर्ट (NIA Court) ने कहा कि अदालत के सामने सबसे बड़ा सवाल यह था कि क्या गिरफ्तार किये गए लोग हमले में शामिल थे. इसके अलावा इस सवाल पर भी विचार किया गया कि क्या इन लोगों ने हमले में किसी तरह से भी माओवादियों की मदद की थी. इसके अलावा इस प्रश्न की भी जांच की गई कि क्या गिरफ्तार किए गए लोगों का माओवादियों से कोई संबंध रहा है.

लेकिन इन सवालों में से किसी पर भी जाँच एजेंसी कि तरफ़ से कोई साक्ष्य या गवाह पेश नहीं किया गया था. पाँच साल की अवधि में अभियोजन पक्ष कोई सबूत नहीं दे पाया जिससे यह स्थापित होता है कि ये आदिवासी माओवादी हमले में किसी भी तरह से शामिल थे.

अदालत ने अपने फ़ैसले में यह भी नोट किया है कि गिरफ़्तार किए गए आदिवासियों के क़ब्ज़े से किसी तरह का कोई ख़तरनाक हथियार बरामद नहीं हुए हैं. कोर्ट ने कहा कि कुछ आदिवासियों के घर से बरामद तीर कमान को ख़तरनाक नहीं माना जा सकता है. 

जगदलपुर की जेल में बंद रहे 105 आदिवासियों को यूएपीए जैसे सख़्त क़ानूनों के तहत गिरफ़्तार किया गया था. इसके अलावा विस्फोटक रखने और ग़ैर क़ानूनी हथियार रखने का मुक़दमा भी दायर किया गया था.

इस फ़ैसले पर छत्तीसगढ़ पुलिस का कहना है कि इस फ़ैसले की समीक्षा की जाएगी और उसके बाद आगे की संभावित कार्रवाई पर विचार किया जाएगा. यानि पुलिस को अगर लगता है कि NIA की स्पेशल कोर्ट का फ़ैसला सही नहीं है तो वह उच्च न्यायालय जाने का फ़ैसला कर सकती है. 

लेकिन निचली अदालत ने फ़ैसले में सबूतों और गवाहों के बारे में जो कहा है, उससे तो यही लगता है कि छत्तीसगढ़ पुलिस का मामला बहुत कमजोर है. 

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