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गुजरात में 11 साल बाद 300 आदिवासियों की घर वापसी

गुजरात के बनासकांठा ज़िले के मोता पिपोदरा गांव में 11 साल से बेघर रहे लगभग 29 परिवार अब अपने गांव लौट आए हैं.  

ये परिवार ‘कोडावी’ समुदाय से ताल्लुक रखते हैं.

साल 2014 में गांव में हुई एक हत्या के बाद पंचायत ने पुरानी आदिवासी परंपरा चढ़ोतड़ु के तहत इन्हें गांव से निकाल दिया था.

इस परंपरा में जब पंचायत किसी मामले को सुलझा नहीं पाती, तो आरोपी परिवार या पूरे समूह को गांव छोड़ना पड़ता है.

गांव छोड़ने के बाद इन परिवारों ने अलग-अलग जगहों पर मज़दूरी और छोटे-मोटे काम करके जिंदगी गुजारी. लेकिन अपने गांव और ज़मीन से दूर रहना उनके लिए हमेशा भारी रहा.

ये मामला तब सामने आया जब डांटा डिवीजन में तैनात एएसपी सुमन नाला ने अपनी रसोइया अल्का से यूं ही पूछ लिया कि वह अपने ससुराल क्यों नहीं जाती.

अल्का ने बताया कि उसे चढ़ोतड़ु परंपरा की वजह से गांव छोड़ना पड़ा था और तब से वह कभी वापस नहीं जा पाई.

यह सुनकर अफसर ने तुरंत पहल की और मामला पंचायत तक पहुंचाया गया.

इसके बाद पुलिस और प्रशासन ने पंचायत और समुदाय के लोगों के बीच कई दौर की बातचीत कराई.

एसपी अक्षयराज मकवाना, आईजी  चिराग कोराडिया और एसएचओ जयश्री देसाई ने भी इस प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाई.

धीरे-धीरे सुलह का रास्ता निकला और आखिरकार पंचायतों ने इन परिवारों को गांव में दोबारा बसाने का निर्णय लिया.

वापसी के साथ ही प्रशासन ने उनके पुनर्वास की व्यवस्था भी शुरू कर दी

गांव के पास लंबे समय से प्रयोग न होने के कारण जंगल में तब्दील हो चुकी करीब 8.5 हेक्टेयर ज़मीन को साफ कर खेती के लायक बनाया गया.

गांव तक सड़क, पानी और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं पहुंचाई गईं.

दो पक्के मकान एनजीओ की मदद से तैयार किए गए. इनमें गैस, बिजली और पानी की पूरी सुविधा है.

बाकी घर भी प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी सरकारी योजनाओं के तहत बनवाए जा रहे हैं.

इस पूरी प्रक्रिया में सरकार और एनजीओ की तरफ से लगभग 2 से 3 करोड़ रुपये की मदद दी गई.

गांव लौटे जगेभाई नाम के एक ग्रामीण ने खुशी जताते हुए कहा, “हमारी जमीन तो जंगल बन चुकी थी, लेकिन अब हमारा घर वापस आ गया है.”

वहीं अल्का ने कहा, “पहले यहां न बिजली थी, न सड़कें. अब सरकार ने हमें सब सुविधाएं दी हैं. मेरी यही दुआ है कि चढ़ोतड़ु जैसी परंपराएं अब हमेशा के लिए खत्म हो जाएं.”

पुलिस अधिकारियों का मानना है कि यह सिर्फ आदेशों से नहीं बल्कि बातचीत और भरोसे से संभव हो पाया.

एसएचओ जयश्री देसाई ने कहा कि यह मिसाल दिखाती है कि समझदारी और आपसी संवाद से समाज के पुराने जख्म भी भरे जा सकते हैं.

(Image is for representation purpose.)

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