Mainbhibharat

केरल: यह 40 आदिवासी परिवार जानते ही नहीं कि राज्य में कल चुनाव है

केरल के पतनमतिट्टा ज़िले के रान्नी में लगभग 40 ऐसे आदिवासी परिवार हैं जिन्हें यह पता ही नहीं है कि कल राज्य में चुनाव होने वाले हैं. मलमपंडारम आदिवासी समुदाय के इन लोगों में कुछ के पास वोटर आईडी कार्ड है, लेकिन वो इसका उपयोग और इसकी अहमियत भी नहीं जानते हैं.

मंजतोडु के वनों में रहने वाले इन आदिवासी परिवारों के लिए चिंता के और दूसरे विषय हैं. उनमें सबसे बड़ा यह सुनिश्चित करना है कि उनके बच्चे भूखे न मरें. दूसरी तरफ़ हाथियों का डर भी है.

रान्नी के यह मलमपंडारम आदिवासी शहद इकट्ठा करने के लिए कई हफ्तों तक जंगल के अंदर रहते हैं, तो ज़ाहिर है उनका बाहरी दुनिया और दुनियादारी से वास्ता कम ही है.

बाहरी दुनिया भी इनसे शहद खरीदने के अलावा उनकी परवाह नहीं करती. इस बस्ती में 100 से ज्यादा मतदाता रहते हैं.

यह आदिवासी चाहें भी तो अपना वोट डालने बूथ तक नहीं पहुंच पाएंगे. एक अखबार से बात करते हुए इनमें से कई ने कहा कि वोट डालने जाने के लिए उनके पास बस का किराया नहीं है. न ही इनमें से ज़्यादातर को यह पता है कि इस चुनाव में कौन लड़ रहा है.

एक तरफ़ जहां यह आदिवासी शहद इकट्ठा करने के लिए रोज़ कई घंटे जंगल में बिताते हैं, वहीं दूसरे तरफ़ गर्मी के बढ़ने की वजह से पीने के पानी की कमी से उनका तनाव और बढ़ रहा है.

बाहरी दुनिया से अलग रहना इनकी मजबूरी हो सकती है, लेकिन यह भी सच है कि आधुनिक कहे जाने वाले समाज के लोग भी इनसे मेलजोल नहीं रखते. यह अपने उम्मीदवार से कभी नहीं मिले हैं क्योंकि कोई यहां कभी चुनाव प्रचार के लिए आया ही नहीं.

पीने के पानी के अलावा, इन 40 परिवारों के घरों तक बिजली भी अब तक नहीं पहुंची है. यह लोग अकसर पीने का पानी खरीदते हैं. इनके पास खेती के लिए और अपने घर बनाने के लिए ज़मीन भी नहीं है.

हाल ही में हाथियों के झुंड ने इस बस्ती के कई घर नष्ट कर दिए. वन अधिकारियों से हाथियों को रोकने के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाली बिजली की बाड़ या खाइयां बनाने की अपील पर अब तक कुछ नहीं हुआ है.

लॉकडाउन का इस बस्ती के बच्चों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ा है. यहां के 28 छात्रों के लिए किसी ने एक टीवी तो दिया, लेकिन जानवरों ने उसे तोड़ दिया. ऐसे में छात्रों की पढ़ाई ठप हो गई.

यह मलमपंडारम आदिवासी पूछते हैं कि वो वोट क्यों दें. उनकी मुश्किलों को एक बार समझ लेने के बाद इस बात में कोई दो राय नहीं है कि वोट देने से ज़्यादा बड़ी चिंताएं इनके जीवन में हैं.

Exit mobile version