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ज़िंदगी और मौत के बीच झूलते 5000 सहरिया बच्चे

मध्य प्रदेश के श्योपुर ज़िले में कम से कम 5 हज़ार ऐसे बच्चे हैं जिनकी जान ख़तरे में है. यानि ये बच्चे इस हद तक कुपोषित हैं कि वो दम तोड़ सकते हैं. इसके अलावा पूरे जिले में 27 हजार से ज्यादा बच्चे कुपोषण (Malnutrition) के शिकार हैं. 

श्योपुर जिला आदिवासी बहुल ज़िलों में से एक है. सहरिया आदिवासियों के इस इलाक़े में कुपोषण (Malnutrition) के हालात भयावह हैं. अफ़सोस की बात ये है कि सहरिया आदिवासियों में कुपोषण एक पुरानी समस्या है.

कुपोषण की वजह से बच्चों की मौत का मामला देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुँचा था. लेकिन उसके बावजूद हालात नहीं सुधरे.

मैं भी भारत की टीम ने भी कुछ साल पहले इस इलाक़े में कुपोषण के मामलों की पड़ताल करने की कोशिश की थी.

इस दौरान हमने पाया था कि सहरियाओं की बस्तियों में बड़ी संख्या में बच्चे अति कुपोषित हैं. हमने यह भी पाया कि एक एक बस्ती में 15 से 20 बच्चों की मौत हुई थी. इसके बावजूद वहाँ के हालात पर प्रशासन में कोई हरकत नहीं देखी गई थी. 

सरकार दावा करती है कि यहां कुपोषण खत्म करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किया जा रहा है. लेकिन हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं.  कुपोषण से हर साल बड़ी संख्या में बच्चों की मौत होती है. 

सहरिया आदिवासियों में कुपोषण एक भयावह समस्या है


कुपोषण के शिकार बच्चों को आंगनबाड़ी में पोषण और भोजन दिया जाना चाहिए. मध्य प्रदेश के इस जिले में 81 हजार 816 बच्चों के नाम आंगनबाड़ी केंद्रों में दर्ज हैं. इनमें 27 हजार से ज्यादा कुपोषित हैं. 5 हजार से ज्यादा गंभीर कुपोषित हैं.

महिला एवं बाल विकास विभाग के आंकड़ों के हिसाब से सामान्य पोषण स्तर वाले 69 हजार 738 बच्चे हैं. इनमें से 1920 मध्यम गम्भीर और 326 अति गम्भीर कुपोषित बच्चे हैं. 

मैं भी भारत की टीम ने अपनी पड़ताल में पाया था कि आंगनबाड़ी में बच्चों के लिए खाना बनाने के लिए एक महिला की ज़िम्मेदारी होती है. इन महिला को सरकार पूरे महीने में मात्र एक हज़ार रूपया देती है. 

इस एक हज़ार रुपए में इन महिलाओं को ईंधन का इंतज़ाम भी करना पड़ता है. अब आप ख़ुद समझदार हैं कि एक हज़ार रुपये में कोई महिला एक महीने खाना भी बनाए और ईंधन भी जमा करे, क्या यह संभव है?

स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स बता रही हैं कि श्योपुर के ज़िला पोषण केंद्र में अति कुपोषित बच्चों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. इस बढ़ती संख्या से अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है कि गाँवों और सहरिया बस्तियों में क्या हाल होगा. 

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