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भूखे प्यासे लद्दाख में भटक रहे हैं झारखंड के आदिवासी मज़दूर, ठेकेदार हुआ फ़रार

झारखंड के दुमका जिले के कई गाँवों से मज़दूरी के लिए लद्दाख गए लोगों से उनका परिवार संपर्क नहीं कर पा रहा है. दुमका की रानीबहाल पंचायत के मधुबन, हाटपड़ा, सरकारी बांध और देवानबाड़ी गांव के 34 मजदूर रोजगार की तलाश में 4 अप्रैल को लद्दाख गए थे.

लेकिन पिछले करीब 20 दिन से किसी भी मजदूरों ने अपने परिवार से कोई संपर्क नहीं किया है. मज़दूरी के लिए गए लोगों के परिवारों का कहना है कि इस इलाक़े में ही रहने वाला व्यक्ति इन लोगों को लद्दाख ले कर गया था.  

लद्दाख में मजदूरों के लापता होने और किसी अप्रिय घटना से आशंकित परिजन काफी चिंतित हैं. इन परिवारों का कहना है कि जो यहाँ के बिचौलियों के ज़रिए  ही ठेकेदारों तक मज़दूर पहुँचाए जाते हैं. 

जो मज़दूर लद्दाख गए हैं उनमें से एक मज़दूर के परिवार ने बताया कि 20 दिन पहले उस मज़दूर ने परिवार को बताया था कि लद्दाख में उन्हें काम नहीं मिला है.

इस मज़दूर का नाम प्रधान हैम्ब्रम बताया गया है. उनकी पत्मी बसंती ने बताया कि 20 दिन पहले प्रधान ने उन्हें फ़ोन किया था. 

उन्होंने कहा कि प्रधान ने कहा था कि उन्हें काम नहीं मिला है और जो पैसा वो घर से ले कर गए थे, वो भी ख़त्म हो गया है. 

झारखंड से बड़ी संख्या में मज़दूरों को लद्दाख ले जाया जाता है.

प्रधान की पत्नी का कहना है कि जो ठेकेदार उन्हें मज़दूरी के लिए ले गया था, वो उन्हें छोड़ कर भाग गया है. उनकी चिंता ये है कि यह भी पता नहीं है कि वे सब लोग कहां हैं. 

इन मज़दूरों के परिजनों ने जिला प्रशासन से लद्दाख गये मजदूरों का पता लगाने में मदद की गुहार लगाई है।

उधर 19 मजदूर गुरुवार देर शाम को जम्मूतवी स्पेशल ट्रेन से रांची पहुंचे और इसी दिन दुमका स्पेशल ट्रेन से अपने गांव के लिए रवाना हो गए.

इन मज़दूरों में से कई मज़दूरों ने स्थानीय मीडिया को लद्दाख में आपबीती सुनाई. निमय पॉल, विभाष कुमार, राम कृष्ण पॉल आदि मजदूरों ने बताया कि उन्हें सड़क बनाने के काम के लिए लद्दाख ले जाया गया था. 

जब वहां पहुंचे तो लद्दाख के प्रशासन ने ठेकेदार से बाहर से मजदूरों को कोविड काल में लाने पर आपत्ति जताई. प्रशासन ने ठेकेदार को मज़दूरों को वापस ले जाने का आदेश दिया.  

इसके बाद ठेकेदार सभी 66 मजदूरों को छोड़कर भाग गया. कई दिनों तक सुनसान जगहों में किसी तरह रहे. जहां खाने-पीने रहने तक की समस्या हो गई थी.

किसी तरह सुनसान जंगलों को पार करते हुए ये मज़दूर एक थाने तक पहुंचे. वहां पहुंचने पर पुलिस ने मज़दूरों को खाना दिया.  इसके बाद पुलिस ठेकेदार को खोज कर लाई और दबाव बनाकर सभी मजदूरों को वापस भेजने को कहा.

इसके बाद इन मज़दूरों को बस के माध्यम से पहाड़ी इलाकों से नीचे लगाया गया और किसी तरह जम्मू भेजा गया. जहां 19 मजदूरों को छोड़ अन्य मजदूर कमाने के लिए एक फैक्ट्री में काम करने के लिए रूक गए.

क्योंकि उनके पास जेब में एक भी पैसा नहीं बचा था. जबकि अन्य मजदूर स्पेशल ट्रेन से झारखंड के लिए रवाना हो गए.

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