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कर्नाटक में वन अधिकारियों ने आदिवासी व्यक्ति को गोली मारी, बाद में लगाया चंदन चोरी का आरोप

कर्नाटक के मैसूरु जिले के पेरियापटना में रहने वाले जेनु कुरुबा आदिवासी समुदाय के सदस्य बसवा 1 दिसंबर, 2021 को अपने समुदाय के अन्य सदस्यों के साथ एक स्वयं सहायता समूह की बैठक में भाग ले रहे थे. पास ही में उसने कुछ लोगों को “बाघ!” चिल्लाते हुए सुना. उसका कहना है कि वह डर के मारे सड़क की ओर भागा और जैसे ही वो सड़क पार कर रहा था, एक तेज धमाका सुना और बेहोश हो गया. बसवा को गोली मार दी गई थी.

जब बसवा को होश आया तो वह कहता है कि उसे वन अधिकारी और अन्य स्थानीय निवासियों द्वारा अस्पताल ले जाया जा रहा था. बसवा के बाएं कूल्हे और बाएं हाथ में चोटें आई थीं. एक महीने से भी ज्यादा वक्त से बसवा अस्पताल में हैं और उसे डर है कि इस घटना के परिणामस्वरूप उसे स्थायी विकलांगता भी हो सकती है.

बसवा ने आरोप लगाया कि वन अधिकारियों ने उसे गोली मार दी क्योंकि वे उसके खिलाफ थे. वहीं वन अधिकारियों का आरोप है कि बसवा चंदन चोरी करने वाले लोगों के समूह में से था और आत्मरक्षा में गोली मार दी गई थी.

घटनाओं के परस्पर विरोधी संस्करण और इस तथ्य के बावजूद कि बसवा को बंदूक की गोली का घाव है. इसके बाद भी सिर्फ उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है न कि वन अधिकारियों के खिलाफ.

द न्यूज मिनट से बात करते हुए, बसवा ने नवंबर की एक घटना का जिक्र किया, जिसके कारण कथित तौर पर वन अधिकारियों को उसके खिलाफ ‘द्वेष’ करना पड़ा. बसवा ने कहा, “नवंबर 2021 में वन अधिकारी मेरे घर के पास आए थे और चांदी के ओक के पेड़ को काटना शुरू कर दिया था. जब मेरी बहन ने उनसे पूछताछ की तो वन अधिकारियों ने उसे पास के एक खेत में एक वरिष्ठ अधिकारी से मिलने के लिए कहा. जब वह अधिकारी से मिलने गई थी तो उसने उससे अपमानजनक तरीके से बात की गई.”

इसके बाद बसवा का कहना है कि वह अधिकारियों से बात करने गया था, जिन्होंने धमकी दी थी कि वे “उसके साथ सौदा करेंगे”.

हालांकि, वन अधिकारियों का दावा है कि बसवा और दो अन्य लोगों के पास चंदन की लकड़ी थी और गोली आत्मरक्षा में चलाई गई थी. बसवा को गोली मारने वाले वन अधिकारी मंजूनाथ एचके की शिकायत के आधार पर, बाइलाकुप्पे पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज की गई थी. इसमें कहा गया है कि अधिकारियों को एक मुखबिर से सूचना मिली कि तीन लोग पास में चंदन के पेड़ तराश रहे हैं.

प्राथमिकी में आगे कहा गया है कि वन अधिकारियों और बसवा समेत तीनों आरोपियों के बीच कहासुनी हुई थी. मंजूनाथ एचके ने प्राथमिकी के अनुसार कहा कि 1 दिसंबर को सुबह 11 बजे एक मुखबिर ने मुझे बताया कि तीन लोग एक चंदन के पेड़ से अवैध रूप से टुकड़े तराश रहे थे. मैंने अपने वरिष्ठों को सूचित किया और अपनी स्लाइड एक्शन गन ली और दिहाड़ी मजदूरों सिद्दा, सुब्रमण्य और महेश्वरा के साथ मौके पर पहुंचा.

उन्होंने कहा कि जब हम खेत में गए तो देखा कि तीन लोग चाकुओं से चंदन के टुकड़े तराश रहे हैं. जब हमने उन्हें पकड़ने की कोशिश की तो उन्होंने हमें चाकू और कुल्हाड़ी से धमकाया. जब हमने उनका पीछा करना शुरू किया तो उनमें से एक ने मुझ पर चंदन का टुकड़ा फेंका और दो अन्य ने मुझे थप्पड़ मार दिया. उन्होंने मेरे साथ हाथापाई भी की जिससे मैं गिर पड़ा.

सुब्रमण्य, सिद्ध और महेश्वर उनका पीछा करते रहे और मैं उस शख्स के पीछे था जिसने चंदन का टुकड़ा फेंका था. जब मैं उसे पकड़ने ही वाला था कि उसने मुझे मारने के इरादे से मेरी गर्दन पर चाकू मार दिया, लेकिन मैं बच निकला.

फिर अपनी आत्मरक्षा के लिए मैंने हवा में गोली मार दी. जब उसने फिर से मुझ पर हमला करने की कोशिश की तो मैंने फिर से गोली मारी और वह घायल हो गया, उसके बाएं हाथ और कुल्हे पर चोट आ गई.

हालांकि, प्राथमिकी यह नहीं बताती है कि अगर बसवा ने मंजूनाथ पर हमला करने की कोशिश की तो उसके कूल्हे पर कैसे गोली मारी गई. इसके अतिरिक्त, वन अधिकारियों के खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है, हालांकि बसवा की पत्नी पुष्पा ने भी उसी दिन बाइलाकुप्पे पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी.

स्वयं सहायता समूह के एक अन्य सदस्य जेडी जयप्पा, जिसमें बसवा शामिल हैं ने कहा कि वन अधिकारियों की कहानी झूठी थी. उन्होंने कहा, “हमारी बैठक सुबह करीब 10.20 बजे खत्म हुई और जहां बसवा को गोली मारी गई थी, उसके 10 किमी के दायरे में चंदन का कोई पेड़ नहीं है.”

उन्होंने आरोप लगाया कि वन अधिकारियों ने उन्हें फंसाने के लिए बसवा के खेत में चंदन लगाया और इस प्रथा का पूर्व में कई बार वन अधिकारियों द्वारा पालन किया गया है.

वन अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी नहीं

द न्यूज मिनट ने जवाब के लिए मामले की जांच कर रहे सर्किल इंस्पेक्टर प्रकाश से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. वहीं मैसूर के पुलिस अधीक्षक ने भी यह कहते हुए टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि यह एक सतत जांच है.

हालांकि, यह पूछे जाने पर कि वन अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी क्यों दर्ज नहीं की गई, उन्होंने कहा कि उनका बयान दर्ज कर लिया गया है और जांच में इस पर विचार किया जाएगा.

एक पुलिस सूत्र ने कहा कि बसवा के साथ जिन दो अन्य लोगों पर मामला दर्ज किया गया था, उनमें से एक पर पहले भी वन अधिनियम के तहत अन्य मामलों में मामला दर्ज किया गया था. हालांकि, उन्होंने अधिक जानकारी देने से इनकार कर दिया. सूत्र के अनुसार, बसवा के अलावा दो लोग जिन्हें वर्तमान मामले में आरोपी बनाया गया था, फरार हैं.

दूसरी ओर, जयप्पा ने इस बयान को खारिज कर दिया और आरोप लगाया कि दो अन्य लोग घटना के दिन सहित बहुत लंबे समय से इलाके में नहीं हैं. उन्होंने बताया कि दो अन्य कॉफी बागानों में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम कर रहे हैं.

एक वकील और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के मैसूर जिला सचिव, चौदहली जवरैया ने कहा, “पुलिस को एक प्राथमिकी दर्ज करनी है (बसवा की पत्नी की शिकायत के आधार पर). अनुसूचित जनजाति समुदाय से होने के कारण पुलिस ने लापरवाही की है. यह भी बहुत स्पष्ट है कि क्योंकि वन विभाग और पुलिस दोनों राज्य सरकार के संस्थान हैं, वे एक दूसरे का समर्थन कर रहे हैं.”

उन्होंने कहा कि पुलिस को वन अधिकारियों पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामला दर्ज करना चाहिए था.

(यह रिपोर्ट द न्यूज मिनट की है)

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