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सरना कोड के लिए आदिवासी सेंगल अभियान 8 नवंबर को रैली आयोजित करेगा

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सरना धर्म कोड की मांग को लेकर बुधवार को आदिवासी सेंगेल अभियान ने रांची के मोरहाबादी मैदान में 8 नवंबर को एक बड़ी रैली आयोजित करने की घोषणा की है. साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार को इस मामले में एक महीने में फैसला सुनाने को कहा है.

आदिवासी सेंगेल अभियान ने ये कदम राष्ट्रीय जनगणना में सरना धर्म को शामिल करने के लिए केंद्र और झारखंड सरकारों पर दबाव बनाने के लिए उठाया है.

एसए के अध्यक्ष और पूर्व सांसद सालखान मुर्मू ने एक और बड़ी घोषणा की है. जिसमें उन्होंने बताया है कि फोरम ने 8 दिसंबर को भारत बंद करने की भी योजना बनाई है और ऐसा वह तब करेंगे जब केंद्र सरकार उनकी रैली के एक महीने के अंदर आगामी जनगणना में सरना को शामिल करने की कोई घोषणा नहीं करेगी.

उन्होंने बताया कि असम, सीमावर्ती देशों नेपाल, बांग्लादेश के कई ज़िलों और पड़ोसी राज्यों से कई आदिवासी संगठन भी इस रैली में भाग लेंगे.

मुर्मू ने कहा कि रांची और उसके आसपास के आदिवासी संगठनों का दृष्टिकोण इस मुद्दे में शामिल होने के लिए अनिच्छुक है. लेकिन उम्मीद है कि वे भी रैली का हिस्सा होंगे.

एसए का यह भी दावा है की रैली सरना कोड की मांग के साथ ही सरना विश्वासियों के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों के संरक्षण के लिए भी किया जा रहा है.

इन महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में मारंग बुरु (पारसनाथ हिल्स) और लुग्गु बुरु हिल्स (बोकारो) आदि शामिल है.

हाल ही में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर उनसे यह निवेदन किया है कि राष्ट्रीय जनगणना में सरना कोड को शामिल करें. उन्होंने पीएम मोदी से आदिवासी समुदायों की आबादी निर्धारित करने और आने वाली पीढ़ियों के लिए उनकी विकास योजनाओं को तैयार करने के लिए सरना कोड को लागू करने का आग्रह किया है.

क्या है सरना

आदिवासी समुदाय लंबे समय से सरना धर्म कोड की मांग रहे हैं और अपनी इस मांग के लिए काफी समय से प्रदर्शन कर रहे हैं.
सरना का शाब्दिक अर्थ है पेड़ों का एक उपवन है और सरना धर्म के अनुयायी साल के पेड़ों को पवित्र मानते हैं, जो कि छोटा नागपुर पठार क्षेत्र के रहने वाले हैं हैं.

सरना यानी वो लोग जो प्रकृति की पूजा करते हैं. झारखंड में सरना धर्म मानने वालों की बड़ी संख्या है. ये लोग खुद को प्रकृति का पुजारी बताते हैं. ये किसी ईश्वर या मूर्ति की पूजा नहीं करते.

सरना धर्म को मानने वाले इस बात पर जोर देते हैं कि वे अनिवार्य रूप से प्रकृति उपासक हैं और पूर्वजों की पूजा के लिए समर्पित त्योहार भी होते हैं. सरना धर्म के लिए आंदोलन कर रहे आदिवासी कहते हैं कि उनका धर्म, हिंदू धर्म से अलग है.

खुद को सरना धर्म से जुड़ा हुआ मानने वाले लोग तीन तरह की पूजा करते हैं. पहले धर्मेश की पूजा. दूसरी सरना मां की पूजा और तीसरा जंगल की पूजा.

इन तीनों को पूजने का एक लॉजिक बताया जाता है. कहते हैं जैसे हिंदू धर्म में पूर्वजों की पूजा की जाती है, माता-पिता की पूजा की जाती है वैसे ही धर्मेश यानी पिता और सरना यानी मां की पूजा की जाती है.

तीसरी पूजा जंगल की होती है जिसे प्रकृति के तौर पर भी पूजा जाता है और इसलिए भी क्योंकि जंगल से खाना-पीना भी मिलता है.

सरना धर्म मानने वाले लोग सरहुल त्योहार मनाते हैं. हिंदू कैलेंडर के हिसाब से चैत के महीने की तृतीया को सरहुल मनाया जाता है. सरहुल के दिन ही नया साल मनाया जाता है. इसके अलावा भादो महीने की एकादशी को ‘कर्म’ त्योहार मनाया जाता है.

क्या है सरना धर्म कोड बिल?

सरना धर्म कोड बिल को समझने के लिए जरूरत है धर्म कोड समझने की. जनगणना रजिस्टर में धर्म का कॉलम होता है. इस कॉलम में अलग अलग धर्मों का अलग अलग कोड होता है. जैसे हिंदू धर्म का 1, मुस्लिम धर्म का 2, क्रिश्चियन धर्म का 3. ऐसे ही सरना धर्म के लिए भी एक कोड की मांग हो रही है.

सरना कोड का पूरा मामला

झारखंड सरकार ने नवंबर 2020 में सरना के लिए एक अलग धार्मिक कोड की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था. जो अभी भी केंद्र के पास लंबित है और तब से अब तक इस प्रस्ताव को पारित कराने को लेकर प्रदर्शन हो रहे है.

अगर आजादी से पहले 1941 तक की भारत की पहली जनगणना जो 1881 में हुई थी को देखें तो आदिवासियों को एक अलग कॉलम में एनिमिस्ट, आदिवासी या प्रकृति उपासक के रूप में गिना जाता था.

लेकिन आजादी के बाद के इस अलग कॉलम को हटा दिया गया था. इसके पीछे का कारण अब आदिवासियों का अधिकतर ईसाई, इस्लाम या किसी अन्य किसी धर्म में परिवर्तित होना बताया गया है.

पहली बार सरना कोड की मांग 1980 के दशक में लोहरदगा के तत्कालीन सांसद कार्तिक ओरांव द्वारा लाई गई थी. जिसके कारण इस तरह के और भी आंदोलन हुए और कई सांसदों द्वारा सरना कोड की मांग उठाई गई.

फिर 2011 के अनुसूचित जनजाति आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में आदिवासियों के लिए एक अलग धर्म की वकालत की थी और ज़ाक्सा समिति का गठन जनजातियों के बीच की स्थितियों को देखने एंव इसकी वकालत करने के लिए किया गया था कि जनजातियों की एक अलग पहचान होनी चाहिए.

जिसके बाद पूरे देश में 50 लाख से अधिक आदिवासियों ने 2011 की जनगणना में अपना धर्म ‘सरना’ बताया था. लेकिन अभी तक केंद्र सरकार ने इस पर नजरिया साफ नहीं किया है.

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