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आदिवासी छात्रों के डॉक्टर बनने का सपना और इंटरनेट की उलझन

महाराष्ट्र के मेलघाट इलाक़े के 15 आदिवासी छात्रों ने मेडिकल की परीक्षा पास कर ली. इन छात्रों के लिए यह किसी सपने के सच होने से कम नहीं था.

अमरावती ज़िले का मेलघाट इलाक़ा आदिवासी बहुल है. लेकिन यह इलाक़ा ग़रीबी, भुखमरी और कुपोषण के लिए भी जाना जाता है.

इस इलाक़े के 15 आदिवासी छात्रों के लिए मेडिकल कॉलेज तक पहुँचना कोई मामूली बात नहीं है.

इन आदिवासी छात्रों को इस मंज़िल को हासिल करने में राज्य सरकार की आश्रमशाला यानि हॉस्टल वाले आदिवासी स्कूलों की मदद मिली.

लेकिन मेडिकल कॉलेज पहुँचने के बाद ये आदिवासी छात्र अजीब सी स्थिति में फँस गए हैं.

दरअसल हुआ ये है कि कोविड की दूसरी लहर की वजह से मेडिकल कॉलेज में क्लास नहीं हो रही हैं. मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्रों के लिए भी ऑनलाइन क्लास चलाई जा रही हैं.

अब इन आदिवासी छात्रों की समस्या ये है कि जिन इलाक़ों में ये छात्र रहते हैं वहाँ पर इंटरनेट की लाइन बहुत अच्छी नहीं है. यहाँ पर बार बार सिग्नल ड्रॉप होता रहता है. 

इसके अलावा यहाँ पर बिजली की सप्लाई भी रेगुलर नहीं रहती है. इस वजह से इन छात्रों की पढ़ाई बुरी तरह से प्रभावित हो रही है. 

बेशक देश के बाक़ी ग्रामीण इलाक़ों या फिर ग़रीब परिवारों के बच्चों की तरह ही महामारी के दौरान इन आदिवासी छात्रों के लिए हालात मुश्किल हैं.

ऑनलाइन क्लास करने के लिए लैपटॉप या कम से कम एक ढंग के स्मार्टफ़ोन की ज़रूरत होती है. इसके अलावा इंटरनेट और बिजली के बिना ऑनलाइन क्लास करना असंभव है.

आदिवासी इलाक़ों में ये सभी सुविधाएँ ना के बराबर हासिल होती हैं. मसलन बीडीएस की पढ़ाई कर रहे शांतिलाल कासेडकर ने स्थानीय पत्रकार से बातचीत में बताया कि उनके गाँव जपाल में एक छोटे से फ़ोन पर वो क्लास करते हैं. 

हालाँकि वो कहते हैं कि बेशक यह मुश्किल दौर है. इस दौर में उन्हें कई तरह की दिक़्क़तें हो रही हैं. लेकिन वो काफ़ी मेहनत और संघर्ष के बाद इस मुक़ाम तक पहुँचे हैं.

यहाँ तक पहुँच कर महामारी की वजह से अपना सपना टूटने नहीं देंगे.

इन 15 आदिवासी छात्रों में से 8 एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे हैं. इसके अलावा 4 छात्रों को बीडीएस में दाख़िला मिला है.  

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