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आदिवासी Vs वनवासी: संविधान में ‘अनुसूचित जनजाति’ का इस्तेमाल,NCST अध्यक्ष ने कहा- बहस करना बेकार

कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बयान के बाद आदिवासी व वनवासी शब्द को लेकर बहस छिड़ गई है. इस बीच राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) के अध्यक्ष हर्ष चौहान कि संविधान में आदिवासी लोगों के लिए अनुसूचित जनजाति शब्द का इस्तेमाल किया गया है. ऐसे में समुदाय के लिए ‘आदिवासी’ और ‘वनवासी’ शब्दों का उपयोग करने पर कोई भी बहस अर्थहीन है.

हर्ष चौहान ने पीटीआई से कहा कि यह एक राजनीतिक बहस है और इस बहस का कोई मतलब नहीं है. संविधान में न तो ‘आदिवासी’ और न ही ‘वनवासी’ शब्द है. संविधान सभा ने सावधानीपूर्वक विचार-विमर्श के बाद संविधान में अनुसूचित जनजाति शब्द का इस्तेमाल किया है.

हालांकि, चौहान ने कहा कि ‘वनवासी’ शब्द आदिवासी लोगों के लिए अधिक उपयुक्त माना जाता है. उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदाय के लिए पहले से वनवासी शब्द का इस्तेमाल किया जा रहा था. स्वदेशी समुदायों को परिभाषित करने के लिए अंग्रेजों ने ‘आदिवासी’ शब्द का प्रयोग शुरू किया. लेकिन वनवासी शब्द का उपयोग लंबे समय से किया जा रहा है, यहां तक ​​कि ‘रामायण काल’ के पहले से भी हो रहा है.

भारत के संदर्भ में आदिवासी शब्द आदिवासी समुदायों को दूसरों से अलग नहीं करता है क्योंकि “हर कोई दावा करता है कि वे मूल निवासी हैं”. उन्होंने कहा कि अगर हर कोई आदिकाल से भारत में रह रहा है तो आप उनमें अंतर कैसे कर सकते हैं. राहुल गांधी ने कहा था कि वनवासी शब्द का इस्तेमाल करने के पीछे यह सोच हो सकती है कि एक बार बीजेपी के शासन में जंगल खत्म हो गए तो आदिवासियों के पास देश में रहने के लिए कोई जगह नहीं होगी.

आदिवासी बनाम वनवासी बहस

दरअसल, भारत जोड़ो यात्रा के दौरान मध्य प्रदेश में एक रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा था कि “वनवासी” आदिवासियों को संदर्भित करने के लिए एक “अपमानजनक” शब्द है और बीजेपी को आदिवासियों के लिए इस शब्द का उपयोग करने के लिए माफी मांगने के लिए कहा था.

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा था, “कुछ दिन पहले मैंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक भाषण सुना जिसमें उन्होंने ‘आदिवासियों’ के लिए एक नए शब्द ‘वनवासी’ का इस्तेमाल किया. इसका मतलब है कि आदिवासी देश के पहले मालिक नहीं हैं और वे सिर्फ जंगलों में रहते हैं.”

राहुल गांधी ने कहा था कि आदिवासी शब्द के पीछे हमारी यह सोच है कि देश के पहले मालिक आदिवासी है. उनका जल, जंगल, जमीन पर हक होना चाहिए और जंगल से बाहर भी अधिकार मिलने चाहिए. लेकिन बीजेपी की सरकारें पब्लिक सेक्टरों को उद्योगपतियों के हवाले कर सीधे आदिवासियों को चोट पहुंचाती है.

वहीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के निर्देश पर, एनसीएसटी भी शिक्षाविदों, छात्रों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को आदिवासी समुदाय से संबंधित तीन महत्वपूर्ण मुद्दों – पहचान, अस्तित्व और विकास पर शोध करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए अपनी तरह की पहली कार्यशाला आयोजित कर रहा है. कार्यशाला का आयोजन रविवार और सोमवार को विज्ञान भवन में किया जाएगा. अंतिम सत्र राष्ट्रपति भवन में आयोजित किया जाएगा.

आदिवासी समुदाय पर उचित शोध की आवश्यकता पर बार-बार बल दिया गया है. लोग आमतौर पर आदिवासी समुदायों की संस्कृति के बारे में बात करते हैं. मानवशास्त्रीय अध्ययनों को छोड़कर इस क्षेत्र में भी कुछ नहीं किया गया है. आदिवासी संस्कृति का मतलब सिर्फ पोशाक और नृत्य नहीं है.

हर्ष चौहान ने कहा कि उनके मूल्य प्रणालियों, उनके जीवन जीने की अवधारणा, संविधान के तहत दिए गए उनके अधिकारों पर शोध करने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि कार्यशाला में देश भर के 104 विश्वविद्यालयों के कुलपति, प्रोफेसर और छात्र भाग लेंगे.

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