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तमिलनाडु: 17 साल बाद वन अधिकार अधिनयम का लाभ आदिवासी को मिला

तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई शहर के जवादु हिल्स में आदिवासियों को जमीन के पट्टे दिये गए हैं. ज़िला कलेक्टर ने आदिवासियों को खेती के लिए जमीन दी है. ताकि आदिवासी इस जमीन पर खेती करके अपना जीवन यापन कर सके.

यह जमीन तिरुवन्नमलाई ज़िले के कलेक्टर बी. मुरुगेश ने जवादु की पहाड़ियों के 1,569 आदिवासियों और अन्य पारंपरिक वन निवासियों को खेती करने के लिए अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 के अंतर्गत दी है.

उन्होनें यह जमीन कुछ दिन पहले पहाड़ियों में स्थित जमुनामारतुर के तालुक कार्यालय के समारोह में आदिवासी परिवारों को सौंपी.

आदि द्रविड़ एवं जनजातीय कल्याण विभाग के अधिकारियों ने बताया है की इस पहल के अंतर्गत जगंल की 49,400 हेक्टेयर की भूमि दी गई है. जिस पर लाभार्थी खेती बाड़ी कर सकते है और इसके अलावा वे जंगल से छोटे मोटे फल-फूल या पत्ते भी जमा कर सकते हैं.

इसमें कुछ लघु वनोपज आवंटित वनभूमि पर उगने वाले आंवला, हरीतकी, कदुकई, साबुननट (पुंधिकोट्टई), इमली, और शहद जैसे फल इकट्ठा करने की अनुमति दी गई है.

बी. मुरुगेश ने यह कहा है की जो लोग इस स्वामित्व अधिकार के योग्य है और अभी तक आवेदन नहीं किया है. वो भी इस अधिकार के लिया आवेदन कर सकते हैं.

उन्होनें जनजातीय लोगों और अन्य वनवासियों के लिए अधिकार पर चर्चा के लिए 25 जिला स्तरीय समिति की बैठकें भी आयोजित की थीं. जिसके बाद लाभार्थी की पहचान हुई और जो वन अधिकार के लिए 568 आवेदन खारिज कर दिए गए थे. उनको विशेषज्ञ की टीम के द्वारा की गई एक जांच के बाद वन अधिकार के लिए स्वीकृति मिल गई है.

मालिकाना हक़ (Title Right)

वन अधिकार अधिनियम (FRA) के अंतर्गत जो आदिवासी 13 दिसंबर 2005 से पहले जंगलों में निवास कर रहे थे और जो गैर-आदिवासी तीन पीढ़ियों से या 75 वर्षों से जंगलों में रह रहे हैं उन्हीं यह शीर्षक अधिकार मिलेगा.

इस कानून के कार्यान्वयन की निगरानी प्रमुख की अध्यक्षता वाली समितियों द्वारा की जाती है. जिसे राज्य स्तर पर सचिव, जिलों में कलेक्टर और राजस्व मंडल अधिकारी और उपमंडल स्तर पर की जाती है.

तमिल नाडु में आदिवासियों को इस कानून के तहत ज़मीन का मालिकाना हक़ मिलने की यह ख़बर निश्चित ही अच्छी कही जाएगी.

लेकिन इस ख़बर से यह अंदाज़ा भी लगाया जा सकता है कि संसद से इस कानून यानि वन अधिकार कानून 2006 को पास हुए करीब 17 साल हो चुके हैं.

लेकिन अभी देश के अलग अलग राज्यों में आदिवासियों को इस कानून का लाभ पूरी तरह से नहीं मिल पाया है.

इस कानून को लागू करने में कई राज्य सरकारों ने वह मुस्तैदी नहीं दिखाई है जिसकी उम्मीद उनसे की जाती है.

इसका नुकसान आदिवासियों को उठाना पड़ता है.

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