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संसद से मंजूरी के बावजूद हाटी को अनुसूचित जनजाति नहीं माना जा रहा है

हाटी समुदाय (Hatti community) ने हिमाचल प्रदेश सरकार (himachal pradesh govt) से ये मांग की है की उन्हें आदिवासियों का दर्जा (status of tribals) दिया जाए.

5 दिसंबर, मंगलवार को सिरमौर ज़िले के ट्रांस गिरी क्षेत्र के लगभग 3,000 हट्टी समाज के आदिवासी शहर के मध्य में स्थित ऐतिहासिक चौगान मैदान में एकत्र हुए थे. जहां उन्होंने हाटी समुदाय को आदिवासी का दर्जा देने की मांग की थी. इसके साथ ही उन्होंने सिरमोर ज़िले के शिलाई में रैली निकालने की भी घोषणा की.

इन सभी ने मिलकर उपायुक्त कार्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन किया. इसी सिलसिले में प्रदर्शनकारियों द्वारा डीसी को ज्ञापन भी सौंपा गया है.

केंद्रीय हाटी समिति के महासचिव, कुंदन सिंह शास्त्री ने राज्य सरकार से मांग की वो सात दिनों में हाटी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दें.

उन्होंने बताया की 1968 से ही हाटी आंदोलन की शुरूआत हो गई थी. जब सरकार ने जौनसार-बाबर को अनुसूचित जनजाति क्षेत्र घोषित कर दिया था और उसी क्षेत्र के ट्रांस गिरी इलाके में रहने वाले लोगों को सरकार द्वारा नज़रअंदाज कर दिया गया था.

उन्होंने कहा कि 56 साल के निरंतर संघर्ष के बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने समुदाय के नृवंशविज्ञान सर्वेक्षण सहित सभी कानूनी औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद हाटी समुदाय को आदिवासी का दर्जा दिया.

शास्त्री ने कहा कि हाटी समुदाय को आदिवासी का दर्जा देने के लिए संसद द्वारा संविधान में संशोधन किया गया और इस साल 4 अगस्त को राष्ट्रपति ने इस संबंध में गजट अधिसूचना जारी की. तब से चार महीने बीत चुके हैं और राज्य सरकार इस अधिसूचना पर बैठी है और इसे लागू नहीं कर रही है.

उन्होंने कहा कि समुदाय ने इसे लागू करने के लिए राज्य सरकार को कई बार पत्र भी लिखे हैं. क्योंकि हाटी युवाओं को सरकारी नौकरियों में आरक्षण के अधिकार और अन्य सभी लाभों से वंचित किया जा रहा है.

शास्त्री ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू से इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करने की मांग की है. इसके साथ ही उन्होंने आदिवासी दर्जा देने का प्रमाण पत्र भी जारी करने की अपील की है ताकि हाटी युवाओं को सरकारी भर्ती में आरक्षण का लाभ मिल सके.

दरअसल, हाटी समुदाय के लोगों को पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में जनजाति की सूचि में रखा गया है. इसलिए यह लोग लंबे समय से हिमाचल प्रदेश में भी जनजाति का दर्जा मांग रहे हैं. इनका कहना है कि उनकी जीवन शैली और भौगोलिक परिस्थितियां बिलकुल वैसी ही हैं जैसी उत्तराखंड के हाटी समुदाय की हैं.

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