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सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के मणिपुर दौरे से पहले, MTFD ने एजेंडे में आदिवासी दृष्टिकोण पर विचार करने को कहा

मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में इस हफ्ते हुई हिंसा ने एक बार फिर राज्य की जातीय और राजनीतिक स्थिति को चर्चा में ला दिया है. इस बीच अब सुप्रीम कोर्ट के 6 जजों का डेलीगेशन शनिवार (22 मार्च) को राज्य का दौरा करेगा और वहां के हालात के बारे में जानकारी लेगा.

इस हफ्ते की शुरुआत में राष्ट्रीय लीगल सर्विस अथॉरिटी (NALSA) की ओर से जारी एक बयान में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट के 6 न्यायाधीशों का एक प्रतिनिधिमंडल 22 मार्च को मणिपुर का दौरा करेगा.

जिसमें NALSA के अध्यक्ष जस्टिस बी आर गवई के अलावा जस्टिस सूर्य कांत, विक्रम नाथ, एम एम सुंदरेश, के वी विश्वंनाथन और एन कोटिश्वर सिंह मणिपुर में मौजूद रहेंगे.

ये विशिष्ट दल कानूनी और मानवीय मदद का जायजा लेगा, साथ ही विस्थापित लोगों की जरूरतों और मुश्किलों और उनके उपायों पर चर्चा करेगा.

ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की योजनाबद्ध यात्रा से पहले मणिपुर ट्राइबल्स फोरम दिल्ली (MTFD) ने न्यायाधीशों और रजिस्ट्री को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि यात्रा का एजेंडा इस तरह से बनाया जाए कि उसमें “आदिवासी दृष्टिकोण” को ध्यान में रखा जाए.

पत्र में कुकी-ज़ो नागरिक समाज संगठन ने न्यायाधीशों से यह भी अनुरोध किया कि वे अपने समुदाय के आदिवासी नेताओं और पीड़ितों के साथ “अन्य सभी व्यक्तियों/अधिकारियों की उपस्थिति से अलग” एक बैठक के लिए सहमत हों.

इससे वे खुलकर बात कर सकेंगे, जब उनके हमलावर और उनके हमलावरों का समर्थन करने वाले लोग मौजूद नहीं होंगे.

न्यायाधीशों को लिखे पत्र में एमटीएफडी ने कहा कि सभी पिछली यात्राओं की निगरानी और योजना पूर्ववर्ती राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा की गई थी. और तर्क दिया कि न्यायाधीशों के एजेंडे के लिए “आदिवासी दृष्टिकोण” पर विचार करना महत्वपूर्ण है.

MTFD ने कहा कि उनकी याचिकाओं पर एक साल से कोर्ट में सुनवाई नहीं हुई है, जबकि संस्था ने रजिस्ट्रार को बार-बार पत्र लिखा है, साथ ही कहा कि हमलावरों का सशस्त्र जमावड़ा चल रहा है और नए हमले होने की आशंका है.

उन्होंने कहा कि क्योंकि स्थिति बहुत निराशाजनक है इसलिए आदिवासी आपके दौरे का स्वागत करते हैं.

एमटीएफडी ने कहा कि संघर्ष के दौरान हमला किए गए और जला दिए गए 197 आदिवासी गांवों और 7,000 से अधिक आदिवासी घरों में से किसी का भी मणिपुर राज्य द्वारा पुनर्निर्माण नहीं किया गया. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 11 जुलाई, 2023 के अपने पूर्व आदेश में ऐसा करने का निर्देश दिया था.

संगठन ने कहा कि यही कारण है कि आदिवासी राहत शिविरों में कष्ट झेल रहे हैं.

एमटीएफडी ने 19 मार्च को लिखे अपने पत्र में गांवों का पुनर्निर्माण करने और उन्हें सौंपने के सुप्रीम कोर्ट के पहले के आदेश को लागू करने की मांग की.

मांग की कि पूर्व डीजीपी डीडी पडसलगीकर की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति द्वारा की गई जांच से दर्ज एफआईआर, दायर आरोपपत्र, की गई गिरफ्तारियों और मुकदमे के चरण के संबंध में सभी जानकारी उसे प्रदान की जाए.

एमटीएफडी ने अपनी याचिकाओं में नामित आतंकवादी संगठनों के सदस्यों की गिरफ्तारी की भी मांग की. जैसे कि अरम्बाई टेंगोल और मैतेई लीपुन, अदालत के समक्ष दायर वीडियो के आधार पर, जिसमें उन्हें स्वचालित हथियारों के साथ खुलेआम घूमते और नफरत भरे भाषण देते हुए दिखाया गया है.

मणिपुर में 3 मई, 2023 से ही मैतेई और कुकी-ज़ो समुदायों के बीच जातीय संघर्ष चल रहा है. इस हिंसा में अब तक 250 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और हजारों लोग बेघर हो चुके हैं.

पिछले महीने मणिपुर के तत्कालीन मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद से राज्य विधानसभा निलंबित अवस्था में है और संवैधानिक व्यवस्था को बनाए रखने की जिम्मेदारी केंद्र पर आ गई है. केंद्र सरकार ने 13 फरवरी, 2025 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया.

चुराचांदपुर में बिगड़े हालात

वहीं चुराचांदपुर जिले में हमार और ज़ोमी समुदायों के बीच ताजा संघर्ष के चलते सुरक्षाएं बढ़ा दी गई हैं.

यह हिंसा तब भड़की जब 18 मार्च की शाम को जोमी समूह द्वारा उनके समुदाय का झंडा फहराया गया, जिसका हमार समुदाय ने विरोध किया. इस तनाव भरे हालात में 53 साल के लालरोपुई पाखुमाते की मौत हो गई, जिनकी पहचान सेइलमत गिलगलवंग के निवासी के रूप में की गई है.

इसके चलते जिले में कर्फ्यू लागू कर दिया गया. हालांकि, मंगलवार को हमार इंपुई मणिपुर और जोमी काउंसिल के बीच शांति समझौता हुआ था, फिर भी हालात में सुधार नहीं देखा जा रहा है.

जिला प्रशासन द्वारा लागू कर्फ्यू के साथ-साथ ज़ोमी स्टूडेंट्स फेडरेशन ने अनिश्चितकालीन हड़ताल की घोषणा की है. डिप्टी कमिश्नर धरुण कुमार एस ने सार्वजनिक अपील जारी की है, जिसमें शांति और कानून-व्यवस्था बनाए रखने की अपील की गई है.

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