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मणिपुर में इंटरनेट बैन के बीच कुकी ने जनजाति को अपडेट रखने के लिए अपना अखबार निकाला

मणिपुर में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए मणिपुर सरकार द्वारा इंटरनेट पर बैन लगाया गया है. इस बीच अपने लोगों से जुड़ने के लिए कुकी समुदाय ने अपना न्यूजपेपर शुरू किया है.

इसके जरिए वह समुदाय के लोगों तक अहम जानकारियां पहुंचाने का काम कर रहा है. हर दिन अखबार की 1000 कॉपियां छापी जा रही हैं.

‘जेलन अवगिन’ नाम से यह न्यूजपेपर जारी किया गया है और कांगपोकपी शहर में रहने वाले कुकी समुदाय के वॉलेंटियर ने यह पहल की है. इसका मकसद लोगों तक समुदाय से जुड़ी खबरें पहुंचाना है.

अखबार के असिस्टेंट एडिटर हाओपु ने बताया कि अपने सूत्रों से मिली जानकारी की मदद से वह अखबार में खबरें पब्लिश कर रहे हैं और हर दिन 1000 कॉपियां छापी जा रही हैं और पूरे शहर में बांटी जाती हैं. इसके अलावा, शहर में जगह-जगह पर इंफोर्मेशन सेंटर भी बनाए गए हैं.

न्यूजपेपर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों, झड़पों और कुकी नेतृत्व की कार्य योजनाओं पर हर एक अपडेट को कवर करता है.

उन्होंने बताया कि लिमिटेड इंटरनेट होने क वजह से उन्हें थोड़ी मुश्किल हो रही है लेकिन फिर भी वह जानकारियां इकट्ठा करने के पूरे प्रयास कर रहे हैं. अखबार के डिस्ट्रीब्यूटर मोनम ने बताया कि वह शहर के हर कोने तक न्यूजपेपर देने जाते हैं.

कुकी-जो लोगों ने अलग प्रशासन की मांग की

कंगपोकपी जिले में कुकी-जो समुदाय के लोगों ने प्रदर्शन कर जनजाति वर्ग के लिए एक अलग प्रशासन की मांग की है. उन्होंने यह भी मांग की कि केंद्र उन कुकी समूहों के साथ बातचीत करे जिन्होंने सरकार के साथ अभियान निलंबन संबंधी समझौते (एसओओ) पर हस्ताक्षर किए थे.

ट्राइबल यूनिटी सदर हिल्स के बैनर तले प्रदर्शनकारियों ने कंगपोकपी और इंफाल पश्चिम जिलों की सीमा पर स्थित एक गांव गमगीफई में धरना दिया.

एक प्रदर्शनकारी ने बुधवार को कहा, “हम शांतिपूर्वक धरना दे रहे हैं. हम चाहते हैं कि सरकार हमारे लिए अलग प्रशासन की हमारी मांग को स्वीकार करे.”

मणिपुर में चिन-कुकी-मिजो-जोमी समूह के दस जनजातीय विधायकों ने राज्य में मैतेई और कुकी जनजाति के बीच हिंसक झड़पों के मद्देनजर केंद्र से उनके समुदाय के लिए अलग प्रशासन बनाने का आग्रह किया है. हालांकि मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने उनकी इस मांग को खारिज कर दिया है.

3 मई से जारी हिंसा

मणिपुर में 3 मई को कुकी समुदाय की ओर से निकाले गए ‘आदिवासी एकता मार्च’ के दौरान हिंसा भड़की गई थी. इस दौरान कुकी और मैतेई समुदाय के बीच हिंसक झड़प हो गई थी. तब से ही वहां हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं. अब तक 160 से ज्यादा लोग हिंसा में अपनी जान गंवा चुके हैं. जबकि हजारों लोग अपने घरों को छोड़कर राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं.

मणिपुर को लेकर संसद में भी हंगामा

मणिपुर में पिछले ढ़ाई महीने से भी ज्यादा वक्त से जारी हिंसा को लेकर सड़क से लेकर संसद तक में हंगामा हो रहा है. 20 जुलाई से शुरू हुआ मॉनसून सत्र लगातार स्थगित हो रहा है. विपक्षी दल मणिपुर हिंसा पर बहस करने की मांग कर रहे हैं. वहीं पीएम नरेंद्र मोदी से इस मामले में जवाब देने की मांग पर पड़े हुए हैं.

इस मामले में पीएम को जवाब देने के लिए उन्होंने 26 जुलाई को लोकसभा स्पीकर ओम बिरला को अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस भी दिया, जिसे स्वीकार कर लिया गया है. हालांकि, इस पर चर्चा के लिए अगले हफ्ते का समय तय किया गया है.

वहीं राज्यसभा में मणिपुर हिंसा पर बहस की मांग करने के दौरान सभापति जगदीप धनखड़ की कुर्सी के सामने पहुंचकर विरोध करने करने पर AAP सांसद संजय सिंह को पूरे सत्र के लिए निष्कासित कर दिया गया है.

वहीं विपक्षी गठबंधन ‘INDIA’ ने आज बड़ी बैठक बुलाई. बैठक में विपक्षी दलों के सांसद काले कपड़ों में पहुंचे. विपक्षी सांसदों ने मणिपुर पर चर्चा की अनुमति न देने और अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा शुरू न होने को लेकर केंद्र सरकार के विरोध में काले कपड़े पहने.

इंटरनेट बैन समाधान नहीं समस्या है

मणिपुर में प्रशासन ने अफ़वाहों को रोकने की मंशा से इंटरनेट पर पाबंदी लगाई है. लेकिन यह देखा गया है कि इस पाबंदी का फ़ायदा कम और नुक़सान ज़्यादा हुआ है.

मणिपुर में कई ज़रूरी सेवाएँ इंटरनेट बैन की वजह से प्रभावित हैं. इसके अलावा इस दौर में इंटरनेट ऑनलाइन पढ़ाई का भी एक ज़रिया बन सकता था.

सबसे बड़े अफ़सोस की बात तो यह है कि इंटरनेट बैन से अफ़वाहों में कमी आई है, ऐसा प्रमाण भी नहीं मिलता है.

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