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आंध्र प्रदेश: सरकार की उदासीनता से तंग आकर आदिवासियों ने खुद बनाया बांस का पुल

पिछले दो महीनों में हुई भारी बारिश ने इन ग्रामीणों के लिए स्थिति और खराब कर दी थी क्योंकि उनके पास मंडल मुख्यालय तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं था. बांदीगुड़ा और बोरी के आदिवासी जोखिम भरे रास्ते पर चलकर धारा पार करने को मजबूर हो गए.

बच्चों के पास भी स्कूल न जाने के अलावा कोई चारा नहीं था. गाँव के लोगों ने कई बार प्रशासन के सामने यह मामला रखा था. लेकिन प्रशासन की तरफ़ से इस मामले में कोई मदद नहीं की गई.

इन हालात में आदिवासियों ने स्वंय पुल बनाने का बीड़ा उठाया. सरकार की उदासीनता के वर्षों के बाद, आंध्र प्रदेश के परवतीपुरम मनयम ज़िले के कुरुपम मंडल के बांदीगुड़ा और बोरी गांवों के आदिवासियों ने वोटी गेड्डा धारा पर एक बांस का पुल खुद बनाया. उन्होंने एक सप्ताह में पुल बनाने का काम पूरा भी कर लिया.

श्रमदान के तहत बने 50 मीटर लंबे पुल का गुरुवार को उद्घाटन किया गया. जिसे पार कर  बच्चे स्कूल पहुंचे.

इस अस्थायी पुल ने बांदीगुडा, बोरी, बल्लेरू, बल्लेरुगुडा और किदिकेसु गांवों के कम से कम 150 परिवारों को राहत दी है. क्योंकि यह उन्हें चिकित्सा और शिक्षा की जरूरतों के लिए गोटीवाड़ा में मंडल मुख्यालय तक पहुंचने में मदद करेगा.

सरकारें बदलीं लेकिन गांव वालों की परेशानी जस की तस बनी रही. यहां तक कि कुरुपम विधायक ने डिप्टी सीएम के रूप में कार्य किया फिर भी पुल निर्माण का काम बाकी है. तत्कालीन कुरुपम विधायक पामुला पुष्पा श्रीवानी ने विधानसभा में एक विरोध प्रदर्शन किया था.

तब उन्होंने विधान सभा में अपने विरोध प्रदर्शन के दौरान वोटी गेड्डा में अपनी तस्वीरें दिखाई थीं. इसके बाद राज्य की तत्कालीन टीडीपी सरकार ने पुल के निर्माण के लिए 70 लाख रुपये मंजूर किए थे.

इसके बाद एकीकृत जनजातीय विकास एजेंसी (ITDA) के अधिकारियों ने उस वक्त क्षेत्र का निरीक्षण किया. लेकिन काम कभी शुरू नहीं किया गया. वाईएसआरसी सरकार के कार्यभार संभालने के बाद और पुष्पा श्रीवानी ने अप्रैल, 2002 तक उपमुख्यमंत्री और आदिवासी कल्याण मंत्री के रूप में कार्य किया. लेकिन इसके बावजूद पुल निर्माण के लिए काम कभी शुरू नहीं हुआ.

फिर अब बोरी गांव निवासी एरिका रंगा राव ने गाँव के लोगों को जमा किया. उन्होंने प्रस्ताव रखा कि सरकार जब तक पक्का पुल नहीं बना देती है तब तक कुछ और इंतज़ाम किया जाए. उनके प्रस्ताव पर विचार के दौरान गाँव के लोगों ने फ़ैसला किया कि बांस और लकड़ी का एक अस्थाई पुल तो बनाया ही जा सकता है.

इसके बाद गाँव के लोगों ने मिल जुल कर पहले लकड़ी और बांस जमा किया. उसके बाद सभी ने मिल कर इस पुल के निर्माण को एक सप्ताह में पूरा किया.

हालांकि, बांस का पुल सिर्फ एक अस्थायी समाधान है क्योंकि इसमें नीचे से कोई मज़बूत स्पोर्ट नहीं है. गाँव के लोगों को उम्मीद है कि सरकार जब तक पक्का पुल नहीं बनाती है तब तक यह अस्थायी पुल कम से कम बच्चों और बीमारों को नदी पार करने में मदद करेगा.

इस गाँव की एक महिला ग्रामीण प्रमीला ने सरकार से जल्द से जल्द एक स्थायी पुल बनाने की अपील करते हुए कहा, “हम पिछले तीन दशकों से एक पुल का इंतजार कर रहे हैं. पिछले दो महीनों से वोटी गेड्डा उफान पर होने के कारण बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं. इसलिए, हमने सड़क संपर्क समस्याओं से निपटने के लिए मामले को अपने हाथों में लेने का फैसला किया. हालांकि, समाधान स्थायी नहीं है क्योंकि हम रस्सियों की मदद से पुल पार करते हैं.”

(Photo Credit: The New Indian Express)

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