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आंध्र प्रदेश: ‘डोली’ बस्तियों की होगी पहचान और उन तक पहुंचेगी पक्की सड़क

आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम एजेंसी इलाके के आदिवासी निवासियों की स्वास्थ्य संबंधी मुश्किलों से जुड़ी खबरों का मीडिया में आना आम बात है. इनमें ज्यादातर खबरें स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की कमी, सड़क संपर्क के अभाव में मरीजों का डोलियों में जाया जाना, और इससे होने वाली परेशानियों से जुड़ी होती हैं.

इसीलिए राज्य सरकार ने जनता की इन समस्याओं, खासकर डोली से जुड़ी समस्याओं, को दूर करने और रोगियों और गर्भवती महिलाओं को बचाने के लिए विशाखा एजेंसी इलाके के अंदरूनी इलाकों में सड़क बनाने की योजना बनाई है.

वन विभाग इन सड़कों को बनाने की अनुमति देने के लिए इलाकों का सर्वेक्षण कर रहा है और जल्द ही एक रिपोर्ट पेश करेगा.

अधिकारियों ने वन विभाग से उस के अधिकार क्षेत्र में आने वाले आदिवासी गांवों में सड़क बनाने की अनुमति देने का अनुरोध किया है. सड़क बनाने के प्रस्तावों को आरओएफआर (वन अधिकार मान्यता अधिनियम) के तहत रखा गया है.

नरसीपट्टनम के डिस्ट्रिक्ट वन अधिकारी (DFO) सूर्यनारायण पडल ने मीडिया को बताया कि चिंतापल्ली, केडी पेटा, लोथुगेड्डा और आरवी नगर में आरओएफआर के तहत एक हेक्टेयर से कम जगह में 20 सड़कें बनाई जा सकती हैं.

आदिवासी कल्याण एक्जीक्यूटिव इंजीनियर द्वारा नरसीपट्टनम में ग्राम संपर्क योजना के तहत लगभग 70 सड़कें बनाने का प्रस्ताव है.

इसके लिए नरसीपट्टनम संभाग में 77, पडेरू और विशाखा संभाग में 103 समेत लगभग 180 क्षेत्रों की पहचान की गई है.

विशाखा एजेंसी इलाके की आबादी 6.5 लाख है, जिसमें 11 मंडलों में लगभग 3,900 गांवों या बस्तियों में 3.23 लाख पुरुष और 3.35 लाख महिलाएं रहते हैं.

सड़क न होने से इन ग्रामीणों से स्वास्थ्य पर ही असर नहीं पड़ता, बल्कि उनकी रोजमर्रा की जिंदगी पर भी इसका असर दिखता है.

ग्रामीण अपने महीने का राशन लाने ले जाने के लिए घोड़ों पर निर्भर हैं, क्योंकि पहाड़ी इलाकों में गाड़ियों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. कृषि उपज जैसे धान, काजू और दूसरी चीजें भी घोड़ों पर सवार होकर इलाके के घरों में पहुंचाई जाती हैं.

आदिवासी अधिकार कार्यकर्ताओं के अनुसार, दूरदराज के गांवों में सड़क संपर्क की कमी की वजह से हर महीने लगभग पांच से 10 मौतें होती हैं.

ITDA ने हाल ही में किए एक सर्वेक्षण में 3,900 में से लगभग 980 बस्तियों को डोली बस्तियों के रूप में पहचाना है. इसका मतलब यह बस्तियां डोलियों में ही मरीजों और सामान को लाने ले जाने पर मजबूर हैं.

इसके अलावा 3900 में से लगभग 900 गांवों में कच्ची सड़कें हैं और 580 बस्तियों में सड़क संपर्क है ही नहीं.
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