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अरुणाचल प्रदेश में तांग्सा आदिवासी भाषा को बचाने की विशेष पहल

अरुणाचल प्रदेश का एक किसान एक स्पेशल मिशन पर है. अपनी आदिवासी भाषा की लिखित स्क्रिप्ट को लोकप्रिय बनाने का मिशन.

इस पूर्वोत्तर राज्य के चांगलांग जिले के एक गांव में रहने वाले वांग्लुंग मोसांग अपनी तांग्सा भाषा को संरक्षित करना चाहते है. तांग्सा भाषा विलुप्त होने के कगार पर है.

अरुणाचल प्रदेश में कई भाषाएं बोली जाती हैं. अकेले तांग्सा जनजाति में 40 से ज़्यादा उप-जनजातियां हैं, जिनमें से हरेक की अपनी बोली है. चूंकि इनकी कोई लिखित स्क्रिप्ट नहीं है, यह सभी फ़िलहाल रोमन लिपि में लिखी जाती हैं.

अरुणाचल प्रदेश में 40 मुख्य जनजातियां, और 100 से ज़्यादा उप-जनजातियां हैं

55 साल के मोसांग ने अब तांग्सा की स्क्रिप्ट को बढ़ावा देने के अपने प्रयासों में कॉलेज के छात्रों को शामिल किया है.

मोसांग ने 28 जून को गांव के स्कूल में 15 कॉलेज छात्रों को तांग्सा की लिपी सिखाना शुरु किया है. उन्हें उम्मीद है कि एक बार जब यह युवा इस स्क्रिप्ट को सीख लेंगे, तो वो अपने आसपास के छोटे बच्चों को भी सिखा सकेंगे.

तांग्सा जनजाति के लिए एक सामान्य लिपी पर काम 1990 में लखम मोसांग द्वारा शुरू किया गया था. 2020 में उनकी अचानक मौत ने उनकी सालों की कड़ी मेहनत, और शोध प्रयासों पर अंकुश लगा दिया. वांग्लुंग मोसांग उसी मेहनत को अब अंजाम दे रहे हैं.

शुरुआत में स्क्रिप्ट केवल मोसांग उप-जनजाति के लिए थी. लेकिन, 2 नवंबर, 2019 को तांग्सा की सभी उप-जनजातियों की एक बैठक में, स्क्रिप्ट को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया और सामान्य तांग्सा स्क्रिप्ट के रूप में घोषित किया गया.

तांग्सा लिपि में 48 स्वर और 31 व्यंजन हैं. बोलने के अंदाज़ के बदलने के साथ शब्दों का अर्थ भी बदलता है. इस लिपि को यूनिकोड के अगले संस्करण में शामिल किया जा रहा है. यूनिकोड भाषा और लिपियों के लिए एक अंतरराष्ट्रीय एन्कोडिंग मानक है, जो सभी प्लेटफार्म और कार्यक्रमों पर लागू होता है.

भले ही तांग्सा लिपि हाल ही में विकसित की गई है, लेकिन इसे पहले से ही एक मोबाइल एप्लिकेशन में परिवर्तित कर दिया गया है. इसके पीछे मकसद है युवाओं और छात्रों को स्क्रिप्ट सीखने के लिए आकर्षित करना.

अरुणाचल प्रदेश में बोली जाने वाली 50 से ज़्यादा भाषाओं के बीच तांग्सा अपनी अनूठी लिखित लिपि रखने वाली तीसरी जनजाति बन गई है. बाकि दो खाम्पती और वांचो जनजातियां हैं.

खाम्पती लिपि 100 सालों से उपयोग में है, जबकि वांचो लिपि का आविष्कार लोंगडिंग जिले के एक युवा बनवांग लोसु ने 2000 के दशक के शुरुआत में किया था.

अरुणाचल के अलग-अलग आदिवासी समूहों के कई युवा अपनी मातृभाषा नहीं बोलते हैं. उचित लिपि के अभाव में इन बोलियों के पूरी तरह से भुला दिए जाने का खतरा था. ऐसे में तांग्सा को लेकर की गई इस पहल से उम्मीद है कि राज्य में दूसरे समुदायों को भी ऐसा करने की प्रेरणा मिलेगी.

तांग्सा आदिवासी समूह चांगलांग ज़िले का सबसे बड़ा समूह है, और इसकी आबादी लगभग एक लाख है.

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