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अरूणाचल प्रदेश के आदिवासियों का ‘मोपिन’ त्योहार, जानिए क्या है ख़ास

अरूणाचल प्रदेश (Tribes of Arunachal Pradesh) में अप्रैल महीने में आदि जनजाति अपना सबसे बड़ा त्योहार मनाते हैं. यह कृषि का त्योहार है, जिसे मोपिन (Mopin Festival) कहा जाता है.

यह त्योहार खेती-किसानी से जुड़ा हुआ है तो इससे यह भलीभांति समझा जा सकता है कि इसमें आदिवासी अपने देवताओं से अच्छी फसल की कामना करते हैं.

आदिवासियों में यह मान्यता है की मोपिन बनाने से उनके जीवन से सभी नकारात्मकता खत्म हो जाती है.

मोपिन महोत्सव के पीछे प्राथमिक उद्देश्य ही यह है कि यह त्योहार बुरी आत्माओं को दूर भगाने में मदद करता है जो अपने साथ बुरी किस्मत लेकर आती हैं और बहुत सारी परेशानियाँ पैदा करती हैं.

स्थानीय लोग हर साल इस दौरान कृषि के देवता की पूजा करते हैं. आदि जनजाति के लोगों का मानना है कि पूजा से सभी अभिशाप मिट जाएंगे और लोगों का बेहतर जीवन वापस आ जाएगा.

यह उत्सव कुछ-कुछ होली के त्योहार जैसा ही होता है. क्योंकि होली की तरह इस त्योहार में भी आदिवासी एक-दूसरे के चेहरे पर चावल का आटा लगाते हैं और मौज-मस्ती करते हैं.

आदि जनजाति के अलावा राज्य के गैलो, गालो आदिवासियों द्वारा भी यह त्योहार मनाया जाता है. देश में पूर्वी सियांग और पश्चिमी सियांग के गालो आदिवासी इस त्योहार को धूम-धाम से मनाते है.

यह त्योहार हर साल मार्च से अप्रैल (लुनी और लुकी) के समय आता है. इस समय सभी आदिवासी नई फसलों की तैयारी करते हैं.

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आदिवासियों का मानना है की मोपिन त्योहार मनाने से वे बुरी नज़र, नकारात्मकता और अन्य समस्याओं से दूर रहते हैं. साथ ही देवता को प्रसन्न करके उनके खेतों में अच्छी फसल आती है और उनके परिवार में सुख-शांति बरकार रहती है.

इस उत्सव में भूमि के देवता की पूजा-अर्चना की जाती है. बुरी नज़र और नकारात्मकता से बचाव के अलावा देवता से अच्छी फसलों की कामना की जाती है.

बाकी के आदिवासी त्योहारों की तरह मोपिन में भी आदिवासी अपने देवता को शराब और प्रसन्न करने के लिए जानवरों की बलि चढ़ाते हैं.

पूरे अरुणाचल प्रदेश में मोपिन मुख्य रूप से अप्रैल के महीने में कुल पांच दिनों तक चलता है. यह त्योहार धान बोने से पहले मनाया जाता है. इस साल यह त्योहार 5 अप्रैल से शुरू होगा.

इसके अलावा मोपिन में लोक गीत के साथ सभी आदिवासी मिलकर पारंपरिक नृत्य (पोपिर) करते हैं. वहीं गैलो जनजाति द्वारा बनाई गई शराब (अपोंग) उत्सव में उपस्थित सभी लोगों को परोसी जाती है. यह शराब आदिवासी चावल से तैयार करते हैं.

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