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असम में जातीय समूहों ने रैली निकालकर दीमा हसाओ जिले के विभाजन की मांग दोहराई

असम के पहाड़ी जिले दीमा हसाओ (Dima Hasao) में फिर से तनाव पैदा हो गया है. ये तनाव गैर-दीमासा जनजातीय समुदायों के सैकड़ों प्रदर्शनकारियों द्वारा बुधवार को हाफलोंग में एक विशाल रैली निकालने से पैदा हुआ है.

इस रैली में प्रदर्शनकारियों ने जिले को दो अलग-अलग प्रशासनिक इकाइयों में विभाजित करने की अपनी मांग दोहराई.

हमार, ज़ेमे नागा, कार्बी, बेइते, भाईपे, रंगखल, कुकी, खासी और जयंतिया सहित जातीय समूहों के प्रतिनिधियों ने जिला मुख्यालय की सड़कों पर मार्च निकाला. साथ ही हाथों में तख्तियां लिए गैर-दिमासा समुदायों के लिए एक अलग जिले के समर्थन में नारे लगाए.

रैली का समापन डिप्टी कमीशनर ऑफिस के बाहर एक सभा के साथ हुआ, जहां समुदाय के नेताओं ने भीड़ को संबोधित किया.

लंबे समय से चली आ रही प्रशासनिक मांगों पर बढ़ते असंतोष के बीच इंडिजिनस पीपुल्स फोरम (IPF) और उसके सहयोगी संगठनों इंडिजिनस स्टूडेंट्स फोरम (ISF) और इंडिजिनस विमेन फोरम (IWF) द्वारा आयोजित इस प्रदर्शन में प्रदर्शनकारियों ने असम के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया और मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को संबोधित मांगों के साथ उपायुक्त को एक ज्ञापन सौंपा.

उनकी मांग के केंद्र में 2010 में जिले का नाम उत्तरी कछार हिल्स से बदलकर दीमा हसाओ करना है, जिसके बारे में उनका दावा है कि यह बहिष्कारपूर्ण है और क्षेत्र की जनसांख्यिकीय विविधता को प्रतिबिंबित करने में विफल है.

आईपीएफ के एक प्रवक्ता ने कहा, “हमें दिमासा लोगों के लिए एक अलग ज़िले पर कोई आपत्ति नहीं है. दिमासा बहुल माईबांग उप-मंडल को दिमा हसाओ कहा जाए. लेकिन हम चाहते हैं कि हाफलोंग उप-मंडल, जिसमें अन्य मूल जनजातियां शामिल हैं, उनका मूल नाम नॉर्थ कछार हिल्स ही रहे.”

उन्होंने आगे कहा कि गैर-दिमासा समुदाय ज़िले की आबादी का करीब 57 फीसदी हिस्सा हैं और उन्हें ऐसे नाम से नहीं पहचाना जाना चाहिए जिसका अनुवाद “दिमासा की भूमि” हो.

आईपीएफ के मुताबिक, विभाजन की मांग 15 वर्षों से अधिक समय से जारी है, जो 30 मार्च 2010 को तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व वाली मुख्यमंत्री तरुण गोगोई सरकार द्वारा उत्तर कछार हिल्स जिले का नाम बदलकर दीमा हसाओ कर दिए जाने के बाद उपजे हाशिए पर होने की भावना से उपजी है.

2010 में नाम बदलने के निर्णय के बाद से यह मांग जोर पकड़ती रही है और पिछले एक दशक में बंद, रेल रोको और रैलियों सहित कई बार आंदोलन हुए हैं.

प्रवक्ता ने कहा, “जब तक ज़िले का विभाजन नहीं हो जाता, हम अपना आंदोलन जारी रखेंगे.”

मीडिया को संबोधित करते हुए, आईपीएफ अध्यक्ष एल. कुकी ने पिछली प्रतिबद्धताओं के बावजूद सरकार की निष्क्रियता की आलोचना की.

एल. कुकी ने ज़ोर देकर कहा, “बिना किसी प्रतिरोध या लंबे आंदोलन के असम में कई ज़िले बनाए गए हैं. फिर भी वर्षों के संघर्ष से समर्थित हमारी जायज़ मांग को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है. हम मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्वा सरमा से आग्रह करते हैं कि वे अपना वादा पूरा करें और दीमा हसाओ के विभाजन की औपचारिक घोषणा करें.”

वहीं जनरल सेक्रेटरी एल. लीमा केवमे ने 28 अक्टूबर, 2023 को हाफलोंग सर्किट हाउस में हुई एक बैठक को याद किया. जहां मुख्यमंत्री ने आईपीएफ प्रतिनिधियों को आश्वासन दिया था कि 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले मांग पूरी कर दी जाएगी.

केवमे ने कहा, “उस आश्वासन के आधार पर हमने अपना आंदोलन स्थगित कर दिया था. हालांकि, उसके बाद से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. यह नया विरोध प्रदर्शन उस अधूरे वादे की याद दिलाता है.”

उन्होंने चेतावनी दी कि अगर राज्य सरकार कार्रवाई करने में विफल रहती है तो स्वदेशी जन मंच आने वाले दिनों में आंदोलन को तेज़ करेगा.

इस बीच, दिमासा समुदाय, जो इस क्षेत्र का सबसे बड़ा जातीय समूह है… वो विभाजन की किसी भी पहल का कड़ा विरोध करता है.

दिमासा नेताओं का तर्क है कि विभाजन से क्षेत्र अलग-थलग हो जाएगा और इसके विकास में बाधा आएगी.

पर्यवेक्षकों ने चेतावनी दी है कि जब तक प्रशासनिक विभाजन की मांग पर ध्यान नहीं दिया जाता, तब तक उग्रवाद और जातीय अशांति से ग्रस्त इस जिले को फिर से तनाव का सामना करना पड़ सकता है.

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