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असम: आदिवासी लड़की के बलात्कार-हत्या को कवर करने के आरोप में पुलिस अधिकारी, सरकारी डॉक्टर गिरफ्तार

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असम पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी और एक सरकारी अस्पताल के तीन डॉक्टरों को 13 वर्षीय आदिवासी लड़की के बलात्कार और हत्या के मामले में कथित रूप से आरोपियों को बचाने के आरोप में दरांग जिले में गिरफ्तार किया गया है. पुलिस ने मंगलवार को यह जानकारी दी.

राज्य सीआईडी ​​द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि दरांग के तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक रूपम फुकन को कथित तौर पर आरोपी से रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है.

वहीं पीड़िता के शव का पहला पोस्टमार्टम करने वाले मंगलदाई सिविल अस्पताल के तीन डॉक्टरों अरुण चंद्र डेका, अजंता बोरदोलोई और अनुपम शर्मा को भी लापरवाही के आरोप में सोमवार को गिरफ्तार कर लिया गया. लड़की के शव को बाहर निकालकर दूसरा पोस्टमार्टम किया गया था.

किशोरी जून में दरांग जिले के धूला थाना क्षेत्र के एक घर में मृत पाई गई थी, जहां वह घरेलू सहायिका का काम करती थी. घर के मालिक के मालिक और मुख्य आरोपी, कृष्ण कमल बरुआ को गिरफ्तार कर लिया गया और फिलहाल वो न्यायिक हिरासत में है.

सीआईडी ​​ने कहा कि असम पुलिस सेवा के एक अधिकारी रूपम फुकन को पहले ही निलंबित कर दिया गया था. उसने धुला पुलिस थाने के तत्कालीन प्रभारी अधिकारी उत्पल बोरा के माध्यम से आरोपी के परिजनों से कथित तौर पर 1.5 लाख रुपये की रिश्वत ली थी.

रूपम फुकन और दारांग के तत्कालीन एसपी राजमोहन रे के घरों की भी तलाशी ली जा रही है. रे को पहले निलंबित किया गया था, जबकि धूला के तत्कालीन ओसी को गिरफ्तार किया गया था.

सीआईडी ​​ने कहा कि तीनों डॉक्टरों ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि संयुक्ताक्षर के निशान को छोड़कर कोई चोट नहीं थी और खोपड़ी और गर्दन पर निरंतरता के बारे में उल्लेख नहीं किया था जो शरीर के दूसरे पोस्टमार्टम के दौरान स्पष्ट रूप से सामने आए थे.

दूसरा पोस्टमॉर्टम, जो 25 अगस्त को शव को निकालने के बाद किया गया था, में पाया गया था कि मौत “हत्या के कारण हुई थी, न कि आत्महत्या के कारण”.

सीआईडी ​​ने कहा कि न तो वीडियोग्राफी की गई और न ही पहले पोस्टमार्टम के दौरान उचित प्रक्रिया का पालन किया गया. इसमें कहा गया है, “डॉक्टरों ने स्पष्ट रूप से अपराधी की जांच करने और आरोपी को बचाने के लिए गलत रिकॉर्ड बनाने के इरादे से सबूत मिटाने की साजिश रची है.”

सीआईडी ​​ने मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के हस्तक्षेप के बाद जांच अपने हाथ में ली थी, जो 12 अगस्त को लड़की के घर गए थे और उसके परिवार से मिले थे. लड़की के परिवार ने आरोप लगाया कि धूला के तत्कालीन ओसी ने उन पर मौत की शिकायत दर्ज नहीं करने का दबाव बनाया था.

सीआईडी ​​ने 25 सितंबर को मामले में विस्तृत चार्जशीट दाखिल की थी.

आदिवासी इलाक़ों में शिक्षा और क़ानूनों के बारे में जानकारी का अभाव है. इसका स्थिति का दुरूपयोग कर अक्सर सरकारी अधिकारी अपने फ़र्ज़ में कोताही करते हैं.

आदिवासी इलाक़ों में पुलिस या दूसरे प्रशासनिक अधिकारियों को रिश्वत दे कर मामला रफ़ा दफ़ा करवाने के अलावा आदिवासी नेताओं और सामाजिक मुखियाओं को भी प्रभावित किया जाता है.

आदिवासी समुदायों में अभी भी परंपरागत नियम क़ानूनों से समाज चलता है. लेकिन ये नियम उन आदिवासियों के लिए हैं जो आधुनिक क़ानूनों से परिचित नहीं हैं.

लेकिन यह देखा गया है कि पढ़े लिखे और आधुनिक समाज के लोग अक्सर आदिवासी महिलाओं का शोषण करते हैं. ये लोग पकड़े जाने पर आदिवासी समाज के मुखिया को पैसे या शराब का प्रलोभन दे कर मामूली जुर्माना भर कर बच जाते हैं.

इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि आदिवासी समाज को अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण क़ानून जैसे प्रावधानों की जानकारी के लिए अभियान चलाए जाएँ.

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