राजस्थान के बांसवाड़ा से चुने गए सांसद राजकुमार रोत और राज्य के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर की बहस ने सियासत में गर्मा-गर्मी का माहौल बना दिया है.
इन सब की शुरूआत राजकुमार रोत द्वारा इंटरव्यू में कही गई एक बात से हुई है. राजकुमार रोत ने अपने बयान में कहा कि आदिवासी को हिंदू नहीं माना जा सकता.
जिसके बाद उनके इंटरव्यू पर प्रतिक्रिया देते हुए राज्य के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने कहा कि अगर वे हिंदू नहीं है, तो उनके डीएनए की जांच करा लेंगे.
इन दोनों बयानों के बाद बीजेपी और आदिवासी नेताओं के बीच बयानबाज़ी शुरू हो गई.
मदन दिलावर द्वारा दिए गए बयान पर राजकुमार रोत ने तंज कसते हुए कहा कि मंत्री जी आपको मानसिक जांच करने की जरूरत है.
राजकुमार रोत- आदिवासी हिंदू नहीं है
राजस्थान के बांसवाड़ा के सांसद ने इंटरव्यू में कहा कि मैं हिंदू नहीं हूं.
आदिवासी और हिंदू धर्म अलग-अलग है. उन्होंने आगे कहा कि हिंदू धर्म के अपने रीति रिवाज है और आदिवासी समुदाय के अपने रीति रिवाज है.
जब उनसे यह कहा गया कि उनका नाम राजकुमार भी हिंदू धर्म से जुड़ा हुआ है. तो उन्होंने जवाब में कहा कि किस ग्रंथ में यह लिखा गया है कि राजकुमार नाम हिंदू धर्म से जुड़ा हुआ है.
राजकुमार रोत ने कहा कि हम ना ही हिंदू धर्म मानते है और ना ही ईसाई धर्म मानते हैं.
इसके अलावा उन्होंने चुन्नीलाल गरासिया का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने भी अपने नॉमिनेशन फॉर्म में धर्म कॉलम में हिंदू धर्म नहीं चुना है.
चुन्नीलाल गरासिया बीजेपी पार्टी के नेता और राज्य सभा के सदस्य है.
राजकुमार द्वारा दिए गए इस बयान के बाद उन्हें सोशल मीडिया में खूब ट्रोल किया गया.
जिसके बाद राजस्थान के शिक्षा मंत्री ने सवाल पूछते हुए कहा कि अगर राजकुमार रोत हिंदू नहीं है, तो उनका डीएनए टेस्ट करवा लेंगे.
इसके अलावा उन्होंने कहा कि जो लोग खुद को हिंदू नहीं मानते हैं. हमारे यहां कुछ लोग वंशावली देखते हैं, ऐसे लोगों को वहां चेक करवा देंगे.
शिक्षा मंत्री मदन दिलावर के डीएनए टेस्ट वाले बयाने पर राजकुमार रोत ने कहा की मंत्री जी को मानसिक जांच कराने की जरूरत है.
उन्होंने शिक्षा मंत्री से यह भी पूछा कि उन्होंने 6 महीने तक शिक्षा मंत्री के रूप में आदिवासी छात्र-छात्राओं के लिए आजतक क्या किया है.
राजकुमार रोत ने मदन दिलावर को तंज कसते हुए कहा कि दिलावर जिस समाज से आते हैं, उस समाज के लिए उन्होंने कुछ नहीं किया है.
उन्होंने आगे कहा, “ आदिवासी समाज आने वाले समय में आपको करारा जवाब देगा.”
आदिवासी समुदायों में धार्मिक पहचान का मुद्दा काफ़ी अहम बन रहा है. कई राज्यों में आदिवासी यह मांग कर रहे हैं कि जनगणना के फॉर्म में आदिवासी धर्म का कॉलम भी जोड़ा जाना चाहिए.
क्योंकि जनगणना में जो आदिवासी खुद को ईसाई या किसी अन्य धर्म से नहीं जोड़ते हैं तो उन्हें हिंदू धर्म का मान लिया जाता है.
इसके अलावा झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के आदिवासी अपने लिए अलग सरना धर्म को मान्यता देने की मांग कर रहे हैं.