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संविधान हाथ में लिए बस्तर के आदिवासियों का पैदल मार्च

छत्तीसगढ़ में सैकड़ों आदिवासी हाथों में तख्ती लिए पैदल पैदल राजधानी रायपुर की तरफ़ बढ़ रहे हैं. इन तख्तियों पर ‘पेसा क़ानून लागू करो’ जैसे नारे लिखे हुए है. इसके अलावा संविधान की अनुसूची 5 लागू करने से जुड़े नारे भी ये लोग लगाते हैं.

लेकिन सबसे दिलचस्प है कि ये आदिवासी अपने हाथों में भारत का संविधान ले कर चल रहे हैं. ये आदिवासी अपने विधायकों और सांसदों से कह रहे हैं कि वो जिस संविधान की शपथ लेते हैं, उस संविधान को कम से कम एक बार पढ़ लें.

इन आदिवासियों को उम्मीद है कि अगर जन प्रतिनिधि संविधान पढ़ेंगे तो उन्हें समझ में आएगा कि आख़िर ये आदिवासी पैदल ही 280 किलोमीटर चलने को क्यों मजबूर हैं. क्यों ये आदिवासी राजधानी रायपुर की तरफ़ बढ़ रहे हैं.

बस्तर के आदिवासी पेसा क़ानून को लागू करने की माँग कर रहे हैं

ये आदिवासी बस्तर नगर पंचायत को ग्राम पंचायत बनाने की मांग को लेकर रायपुर राजभवन तक 280 किलोमीटर लंबी पदयात्रा पर निकले हैं. आज ये आदिवासी धमतरी पहुंचे जहां उन्होंने अपने संवैधानिक अधिकारों की मांग की. 

संघर्ष समिति की अगुवाई कर रहे बुधराम बघेल ने बताया कि पूर्ववर्ती सरकार ने अनुसूचित क्षेत्र में नगर पालिका अधिनियम 1961 के तहत ग्राम पंचायतों को नगर पंचायत बनाते समय संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन किया.

मार्च में शामिल लोगों को पानी पिलाते स्थानीय लोग

उन्होंने कहा कि 2017 से लगातार बस्तर नगर पंचायत को ग्राम पंचायत बनाने की मांग की जा रही है. मुख्यमंत्री से लेकर सभी जिम्मेदार अधिकारियों को ज्ञापन भी सौंपा गया, लेकिन आज तक उनकी मांग पूरी नहीं की गई.

जिसकी वजह से आदिवासियों को 280 किलोमीटर पैदल चलकर राज्यपाल से गुहार लगाने जा रहें हैं. बुधराम बघेल ने बताया कि बस्तर के 7 वार्डों के 500 ग्रामीणों ने अपनी कुलदेवी की कसम खा रखी है. जब तक रायपुर के राजभवन में मांग पूरी नहीं होगी, वह आंदोलन करेंगे. 

उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांग पूरी नहीं की गई तो वे अपना परिवार और पालतू जानवरों को लेकर राजभवन में धरना प्रदर्शन करेंगे. अपना गांव खेत छोड़कर राजभवन में ही डटे रहेंगे. 

इन पदयात्रियों ने संविधान की किताब अपने हाथ रखी है उसे बस्तर के विधायकों और सांसदों को पढ़ने के लिए नारेबाजी भी की. 

( यह रिपोर्ट स्थानीय पत्रकारों के सहयोग से लिखी गई है)

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