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आदिवासी परिवार ने घर की अकेली शिक्षित महिला को ‘डायन’ बताकर मार डाला

पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के जंगलमहल क्षेत्र के चापुर गांव में 20 अक्टूबर 2025 को पदबी टुडू (Padabi Tudu) नाम की एक आदिवासी महिला की उसके ही परिवार ने डायन बताकर हत्या कर दी.

पदबी को कथित तौर पर उसके घर से घसीटकर बाहर निकाला गया और उसकी बेटी के सामने धारदार हथियारों से उसकी हत्या कर दी गई.

हत्या तब हुई जब उनके पति सुभाष टुडू घर पर नहीं थे.

सुभाष एक मज़दूर हैं. उन्होंने पत्नी की हत्या के बाद पारा पुलिस थाने में आठ लोगों के खिलाफ लिखित शिकायत दर्ज कराई है. जिसमें आरोप लगाया गया है कि उनकी पत्नी की हत्या उनके ही परिवार के सदस्यों, जिनमें उनके भाई, भाभी और भतीजा शामिल हैं..उन्होंने की है.

जिसके बाद पारा पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज कर छह लोगों को गिरफ्तार किया है। गिरफ्तार किए गए लोगों में हिटलर टुडू (सुभाष का बड़ा भाई), उसकी पत्नी जलेश्वरी टुडू, सुकलाल टुडू, बबलू टुडू (सुभाष का छोटा भाई) और राजेश टुडू (सुभाष का भतीजा) और उसकी पत्नी मदनी शामिल हैं. वहीं बाकी आरोपी पिंकी टुडू (बबलू की पत्नी) और पद्मा टुडू (सुकलाल की पत्नी) फरार हैं.

चापुर पुरुलिया के पारा प्रखंड की अनारा ग्राम पंचायत में स्थित है.

कोलकाता से लगभग 265 किलोमीटर और पुरुलिया जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर है. यहां लगभग 85 संथाल आदिवासी परिवार रहते हैं, साथ ही कुछ मुस्लिम परिवार भी हैं. यहां कई लोग अनुसूचित जाति और सामान्य वर्ग के भी हैं.

स्थानीय लोगों ने बताया कि पदबी को उसके परिवार के सदस्य पिछले पांच वर्षों से डायन कहकर मानसिक प्रताड़ना दे रहे थे.

पदबी अपने परिवार में एकमात्र शिक्षित महिला थीं, उन्होंने शादी से पहले माध्यमिक परीक्षा (कक्षा 10) पास कर ली थी. टुडू परिवार के अन्य सदस्य औपचारिक रूप से शिक्षित नहीं थे.

पदबी ने अपने बच्चों को औपचारिक शिक्षा दिलाने पर ज़ोर दिया था. उनकी 13 साल की बेटी आठवीं कक्षा की छात्रा है, जबकि उनका पांच साल का बेटा पहली कक्षा में पढ़ता है.

पदबी की हत्या क्षेत्र में बढ़ती अंधविश्वासी हिंसा की एक और मिसाल है. पिछले एक वर्ष में पुरुलिया और बिरभूम में कई महिलाओं की ऐसे ही आरोपों में हत्या की जा चुकी है.

पुरुलिया के पुलिस अधीक्षक अभिजीत बनर्जी के मुताबिक, यह हत्या अंधविश्वास के कारण हुई है और शिकायत के आधार पर पुलिस ने छह लोगों को गिरफ्तार किया है और बाकी आरोपियों की तलाश जारी है.

उन्होंने आगे कहा कि प्रशासन जल्द ही “अंधविश्वास-विरोधी जागरूकता अभियान” शुरू करेगा.

हालांकि, स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन ने इससे पहले कभी भी इस इलाके में अंधविश्वास विरोधी अभियान नहीं चलाया है.

कई लोगों ने ऐसे उपायों की प्रभावशीलता पर भी संदेह व्यक्त किया और कहा कि यह एक परेशान करने वाला पैटर्न है क्योंकि यह पुरुलिया जिले में इसी तरह की एक घटना के बमुश्किल एक साल बाद आया है.

जिसमें पारा ब्लॉक के नोदिहा ग्राम पंचायत के अंतर्गत बगलमारी गांव में अनुसूचित जाति समुदाय की एक बुजुर्ग महिला को डायन होने के संदेह में पीट-पीटकर मार डाला गया था.

वहीं पिछले साल बीरभूम जिले के कोलेश्वर ग्राम पंचायत के हरिषा गांव में दो आदिवासी महिलाओं की जादू-टोना के संदेह में हत्या कर दी गई थी और उनके शव इसी गाँव के एक तालाब में फेंक दिए गए थे. पुलिस ने पाँच दिन बाद शव बरामद किए थे.

पुरुलिया झारखंड की सीमा से सटा है, जहां हाल ही में जादू-टोने के संदेह में कई हत्याएं हुई हैं.

8 अक्टूबर को लोहरदगा जिले के केकरांग बरटोली गांव में एक ही परिवार के तीन सदस्यों, एक पुरुष, उसकी पत्नी और उनके बेटे की हत्या कर दी गई. पुलिस रिपोर्टों के मुताबिक, ये हत्याएं जादू-टोने के संदेह में की गईं.

इससे एक दिन पहले, 7 अक्टूबर को, गढ़वा जिले के भंडरिया प्रखंड के मदगरी गाँव में एक 60 वर्षीय महिला की इसी तरह के आरोप में कुल्हाड़ी से काटकर हत्या कर दी गई थी.

गुमला जिले से भी एक ऐसा ही मामला सामने आया था, जहां एक 50 वर्षीय आदिवासी महिला को डायन बताकर उसकी हत्या कर दी गई और उसे दफना दिया गया.

आरोपों की शुरुआत कैसे हुई

पदबी टुडु पर पहली बार डायन होने का आरोप तब लगाया गया था जब उनके एक देवर बिनोद टुडू की न्यूरोलॉजिकल बीमारी से मौत हुई.

हालांकि, बिनोद की पत्नी सुंदरि ने बताया कि उसने इन आरोपों पर कभी भरोसा नहीं किया, क्योंकि उसके पति पार्किंसन जैसी बीमारी से पीड़ित थे.

सुंदरि टुडु का कहना है कि उनके पति पार्किंसन जैसी एक कंपकंपी वाली बीमारी से पीड़ित थे. मैंने उन्हें इलाज के लिए बांकुरा मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया. उनकी हालत में थोड़ा सुधार हुआ लेकिन कुछ दिनों बाद उनकी हालत फिर से बिगड़ गई और आखिरकार उसी बीमारी से उनकी मृत्यु हो गई. डायन जैसी कोई चीज़ नहीं होती. जब हमारे परिवार के कुछ सदस्यों ने मेरी भाभी पदबी को डायन कहना शुरू किया, तो मैंने विरोध किया लेकिन किसी ने मेरी बात नहीं सुनी.

पदबी के बुज़ुर्ग सास-ससुर, बिनीश्वर टुडू (80) और सुरोजमोनी टुडू (70) भी इन अंधविश्वासों को निराधार मानते थे.

उनका कहना है कि हमें जादू-टोने के आरोपों पर कभी यकीन नहीं हुआ. लेकिन हमारे दूसरे बेटे और उनकी पत्नियां हमारी बात नहीं मानते थे. पदबी का साथ देने के लिए उन्होंने हमें मानसिक रूप से प्रताड़ित भी किया.

पदबी के पति सुभाष टुडू ने कहा कि जब भी किसी को सर्दी, बुखार या पेट दर्द होता था तो वे मेरी पत्नी पर जादू-टोना करके बीमारी फैलाने का आरोप लगाते थे मैंने कई बार विरोध किया और माझीबाबा (संथाल समुदाय के मुखिया) को भी बताया. दो बैठकें हुईं लेकिन कोई बदलाव नहीं आया और आखिरकार, उन्होंने उसे मार डाला. मैं उन सभी के लिए मौत की सज़ा चाहता हूँ.

गांव के मुखिया, माझी बाबा प्रबीन मुर्मू ने कहा कि मैंने मामले को सुलझाने के लिए दो बैठकें बुलाईं. मैंने उनसे कहा कि किसी पर जादू-टोना करने का आरोप लगाना गलत है. लेकिन उन्होंने एक न सुनी और आखिरकार उसे मार डाला.

पदबी की हत्या के वक्त सुभाष टुडू बाजार गए थे. घर पर 13 साल की बेटी, सुंदरि टुडू और सुरोजमोनि ने पदबी को बचाने की कोशिश लेकिन उन्होंने इनकी एक नहीं सुनी.

तीनों चश्मदीदों ने बताया कि पदबी ने हमलावरों को यह कहकर समझाने की कोशिश की कि वह डायन नहीं है और ऐसी धारणा अंधविश्वास है लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

इतना ही नहीं सुरोजमोनी स्थानीय तृणमूल कांग्रेस की ग्राम पंचायत सदस्य ज्योत्सना मंडी के घर दौड़ी और उनसे हस्तक्षेप करने और अपनी बहू को बचाने की गुहार लगाई. लेकिन ज्योत्सना मंडी ने कथित तौर पर कोई जवाब नहीं दिया.

सुरोजमोनी ने कहा कि अगर पंचायत सदस्य उस रात आ जातीं, तो शायद मेरी बहू की हत्या नहीं होती.

अंधविश्वास, मनरेगा और RSS

घटना के बाद 23 अक्टूबर की शाम को पुरुलिया के पश्चिमबंग बिग्यान मंच के जिला सचिव डॉ. नयन मुखर्जी ने अन्य नेताओं के साथ चपुरी गाँव का दौरा किया.

उन्होंने प्रभावित परिवार से बात की और उन्हें कानूनी सहायता का आश्वासन दिया. बिग्यान मंच ने अंधविश्वास से निपटने के लिए क्षेत्र में जागरूकता शिविर आयोजित करने की योजना की घोषणा की.

हालांकि, आदिवासी अधिकार मंच के अखिल भारतीय और पश्चिम बंगाल महासचिव डॉ. पुलिन बिहारी बास्के ने द वायर को बताया कि सरकार अंधविश्वास के खिलाफ जागरूकता अभियान नहीं चला रही है.

वहीं, आरएसएस जैसे संगठन देश भर में धार्मिक कट्टरता और अंधविश्वास को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं. इसके चलते आदिवासी समुदाय के कुछ वर्ग एक बार फिर ऐसी जघन्य प्रथाओं में लिप्त होने लगे हैं.

उन्होंने आगे कहा कि आदिवासियों में साक्षरता का स्तर कम है और सामाजिक आंदोलन ठप पड़े हैं.

इसके अलावा व्यापक बेरोजगारी और 2022 से मनरेगा के काम के ठप होने से ग्रामीण बंगाल में निराशा और गहरी हो गई है.

चापुरी गांव निरक्षरता और कुपोषण से ग्रस्त है. ये स्थितियां हताशा और अतार्किक हिंसा को जन्म देती हैं. इन मुद्दों का तत्काल समाधान करना सरकार की ज़िम्मेदारी है.

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