त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा ने हाल ही में यह जानकारी दी कि राज्य में कुल 21 एकलव्य मॉडल आवासीय स्कूल बनाए गए हैं, जिनमें से 12 स्कूल अब पूरी तरह से काम कर रहे हैं.
इन स्कूलों में करीब 5,000 आदिवासी बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. यह स्कूल खास तौर पर आदिवासी बच्चों के लिए बनाए गए हैं ताकि वे अच्छी शिक्षा पा सकें और अपने जीवन में आगे बढ़ सकें.
एकलव्य मॉडल आवासीय स्कूल (EMRS) सरकार की एक खास योजना है.
इसका मकसद आदिवासी बच्चों को बेहतर शिक्षा देना और उनकी संस्कृति को भी बचाए रखना है.
ये स्कूल केंद्रीय जनजातीय कल्याण मंत्रालय की मदद से चलते हैं.
मुख्यमंत्री साहा ने यह बात त्रिपुरा के सिपाहीजला जिले के जम्पुइजला इलाके में एक नए एकलव्य स्कूल के उद्घाटन के दौरान कही.
उन्होंने बताया कि ये स्कूल आदिवासी बच्चों के लिए शिक्षा के साथ-साथ उनकी परंपराओं, भाषा और संस्कृति को भी सम्मान देते हैं.
इससे बच्चों को अपनी जड़ों से जुड़ने में मदद मिलती है और वे अपने समुदाय की पहचान बनाए रख सकते हैं.
एकलव्य स्कूलों की शुरुआत 1997-98 में हुई थी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में इनकी संख्या बढ़ाई गई है.
इसका मकसद कमजोर आदिवासी बच्चों को मुख्यधारा की शिक्षा में लाना है ताकि वे भी देश के अन्य बच्चों की तरह आगे बढ़ सकें.
जम्पुइजला स्कूल में अभी 60 बच्चे पढ़ रहे हैं, लेकिन इसकी कुल क्षमता 500 छात्रों की है.
यह स्कूल सिपाहीजला जिले के आदिवासी इलाकों में है, जहां के बच्चों को अच्छे से पढ़ाई का मौका दिया जा रहा है.
इस स्कूल में छात्रों को केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) के तहत पढ़ाया जाता है, जिससे वे देश के किसी भी हिस्से में अपनी पढ़ाई आगे बढ़ा सकें.
मुख्यमंत्री साहा ने कहा कि इन स्कूलों का उद्देश्य केवल पढ़ाई ही नहीं है, बल्कि बच्चों को उनके अधिकारों और जिम्मेदारियों के बारे में भी जागरूक करना है.
इससे वे समाज में अपने कर्तव्यों को समझकर बेहतर नागरिक बन सकेंगे.
ये स्कूल आदिवासी समुदाय के विकास की दिशा में एक बड़ा कदम हैं.
इससे आदिवासी बच्चे न केवल पढ़ाई में सफल होंगे बल्कि वे अपने समुदाय की समस्याओं को समझकर उन्हें हल करने में भी मदद कर सकेंगे.
त्रिपुरा सरकार ने बताया है कि भविष्य में और भी एकलव्य मॉडल आवासीय स्कूल खोले जाएंगे ताकि ज्यादा से ज्यादा आदिवासी बच्चे लाभान्वित हो सकें.
सरकार का मकसद है कि सभी आदिवासी बच्चों को शिक्षा का अधिकार मिले और वे अपने सपनों को पूरा कर सकें.
इस योजना से आदिवासी बच्चों को अपनी संस्कृति के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा का भी सही संतुलन मिलेगा.
वे अपने समाज में सम्मान के साथ जी सकेंगे और देश की प्रगति में योगदान दे सकेंगे.
सिपाहीजला जिले के लोगों ने इस कदम की काफी सराहना की है.
उन्होंने कहा कि लंबे समय से आदिवासी बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा का इंतजार था और अब इस योजना से उनकी उम्मीदें पूरी होंगी.
मुख्यमंत्री साहा ने कहा कि शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जिससे समाज के कमजोर वर्ग भी मुख्यधारा में आ सकते हैं.
आदिवासी बच्चों को अगर सही दिशा और संसाधन मिलें तो वे किसी से कम नहीं हैं.
त्रिपुरा सरकार इस बात पर भी काम कर रही है कि स्कूलों में पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों को खेल, कला और सांस्कृतिक गतिविधियों में भी हिस्सा लेने का मौका मिले.
इससे उनके मनोबल और आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होगी.
यह योजना न सिर्फ त्रिपुरा के आदिवासी बच्चों के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक उदाहरण है कि किस तरह शिक्षा और संस्कृति को साथ लेकर चलना चाहिए.
इससे आदिवासी समुदाय के बच्चों को जीवन में बेहतर अवसर मिलेंगे.
यह बदलाव सिर्फ सरकारी योजना नहीं, बल्कि आम लोगों की वर्षों पुरानी माँग और उम्मीदों का जवाब है.
एकलव्य स्कूलों का खुलना दिखाता है कि जब समाज आवाज़ उठाता है, तो व्यवस्था को सुनना ही पड़ता है.
यह पहल सत्ता का नहीं, बल्कि समाज की जागरूकता और आदिवासी समुदाय की आत्म-चेतना का परिणाम है.