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BAP ने भील प्रदेश की मांग दोहराई, भाजपा नेताओं ने इसे विभाजनकारी कदम कहा

दक्षिणी राजस्थान और आसपास के क्षेत्रों के आदिवासी नेताओं ने भारत आदिवासी पार्टी (Bharat Adivasi Part) के नेतृत्व में भील प्रदेश (Bhil Pradesh) या आदिवासियों के लिए एक अलग राज्य की अपनी मांग को फिर से दोहराया है. उनका तर्क है कि यह एक लंबे समय से लंबित मांग है जिसे पूरा किया जाना चाहिए.

अभियान का नेतृत्व कर रहे बीएपी संस्थापक और बांसवाड़ा से लोकसभा सांसद राजकुमार रोत ने कहा, “अगर सरकार वास्तव में आदिवासियों के हितों की समर्थक है तो भील प्रदेश की हमारी लंबे समय से चली आ रही मांग, जो आदिवासी समुदाय के अस्तित्व और पहचान को बचाए रखने के लिए जरूरी है, उसे पूरी की जानी चाहिए.”

सोशल मीडिया पर भील प्रदेश का प्रस्तावित नक्शा साझा करते हुए रोत ने कहा, “भील प्रदेश की मांग आजादी से पहले से ही उठ रही है क्योंकि यहां के लोगों की संस्कृति, भाषा, बोली और रीति-रिवाज अन्य क्षेत्रों से अलग हैं.”

नक्शे के बारे में आदिवासी नेताओं का कहना है कि इसमें राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के 49 जिले शामिल होंगे.

रोत ने आगे कहा, “1913 में (समाज सुधारक) गोविंद गुरु के नेतृत्व में भील प्रदेश की मांग को लेकर मानगढ़ में 1,500 से ज़्यादा आदिवासी शहीद हुए थे. आज़ादी के बाद भील प्रदेश को चार राज्यों में बांटकर इस क्षेत्र के लोगों के साथ अन्याय किया गया.”

राजकुमार रोत ने कहा कि गुरुवार को बीएपी बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम तक भील प्रदेश संदेश यात्रा का नेतृत्व करेगी, जो हमारे पूर्वजों के अधूरे सपनों को पूरा करने की दिशा में एक कदम है.

वहीं बीएपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहन लाल रोत ने कहा, “संविधान के अनुच्छेद 2 और 3 संसद को नए राज्य बनाने का अधिकार देते हैं. जब तेलंगाना, झारखंड, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ बन सकते हैं, तो भील प्रदेश क्यों नहीं? हम तीन करोड़ लोग संविधान की दहलीज पर खड़े हैं, अभी फैसला लीजिए, वरना इतिहास हमें दोषी ठहराएगा… हमें बांटकर (अब और) राज नहीं किया जा सकता.”

इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए मोहन लाल रोत ने कहा, “यह बीएपी का मुद्दा नहीं है बल्कि इस क्षेत्र के लोगों का मुद्दा है. जयपुर यहां से लगभग 650 किलोमीटर दूर है इसलिए विकास की गति धीमी है. यह अभी भी एक पिछड़ा इलाका है और इसलिए हम एक अलग राज्य की मांग कर रहे हैं.”

15 जुलाई को बीएपी और आदिवासी नेताओं ने अपनी मांग को आगे बढ़ाने के लिए अपने स्थानीय ब्लॉक कार्यालयों में एक ज्ञापन भी सौंपा.

पार्टी अध्यक्ष के मुताबिक, दादरा और नगर हवेली के अलावा राजस्थान में करीब 60 ब्लॉक, मध्य प्रदेश में 44, गुजरात में 22 और महाराष्ट्र में लगभग आधा दर्जन ब्लॉक इस अभियान में शामिल थे.

उन्होंने कहा कि यह एक वार्षिक प्रथा है जो पिछले एक दशक से हर 15 जुलाई को चली आ रही है.

उन्होंने कहा, ‘‘संविधान ने आदिवासियों को हमारी भाषाओं और रीति-रिवाजों के संरक्षण के लिए विशेष प्रावधान दिए हैं और अलग राज्य की मांग करना हमारा संवैधानिक अधिकार है.’’

बीजेपी और कांग्रेस इस मुद्दे पर बोलने से बच रहे

राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस के नेता इस मुद्दे पर बोलने से बच रहे हैं लेकिन दोनों ही पार्टियों को आदिवासियों, खासकर राज्य के आदिवासी बहुल वागड़ क्षेत्र में, के अलगाव का डर है.

वरिष्ठ भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ ने कहा, “राजस्थान की आन, बान और शान को तोड़ने की साजिश कभी कामयाब नहीं होगी. राजकुमार रोत द्वारा जारी तथाकथित ‘भील प्रदेश’ का नक्शा एक शर्मनाक राजनीतिक स्टंट है. यह न केवल गौरवशाली राजस्थान की एकता पर हमला है, बल्कि आदिवासी समुदाय के नाम पर भ्रम फैलाकर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का प्रयास भी है.”

उन्होंने कहा, ‘‘अगर आज कोई भील प्रदेश की बात कर रहा है और कल कोई मरू प्रदेश की मांग करता है तो क्या हम अपने गौरवशाली इतिहास, विरासत और गौरव को इस तरह टुकड़ों में बांटेंगे?’’

उन्होंने कहा कि रोत द्वारा जारी किया गया नक्शा ‘‘राज्य के खिलाफ राजद्रोह की श्रेणी में आता है.’’

वहीं प्रदेश भाजपा प्रवक्ता लक्ष्मीकांत भारद्वाज ने कहा, “वे अपनी मर्ज़ी से ऐसा कर रहे हैं, जनता की ओर से ऐसी कोई मांग या समर्थन नहीं है. वे राजनीतिक लाभ के लिए लोगों को गुमराह कर रहे हैं, उनका विभाजनकारी एजेंडा अपने राजनीतिक हितों की पूर्ति करना है.”

इस बीच, राजस्थान में कांग्रेस नेताओं ने कहा कि यह एक “राष्ट्रीय मुद्दा है क्योंकि यह कई राज्यों को कवर करता है और इसलिए इसे पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व को संबोधित करना है.”

भील प्रदेश की मांग और BAP

वैसे तो यह भील प्रदेश की मांग प्रतिवर्ष की जाती है लेकिन प्रत्येक बीतते वर्ष के साथ यह और भी मुखर होती जा रही है और वर्तमान में बीएपी और राजकुमार रोत इसके सबसे मुखर समर्थक बन गए हैं.

भारतीय आदिवासी पार्टी के गठन के बाद से इस क्षेत्र के आदिवासी इस भावना के प्रचार के माध्यम से रोत के नेतृत्व में एकजुट हो रहे हैं कि कांग्रेस और भाजपा ने आदिवासियों का उपयोग केवल “स्वार्थी उद्देश्यों” के लिए किया है.

इस पार्टी का गठन सितंबर 2023 में भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) से अलग होकर हुआ था, जिसके राजस्थान में पिछली कांग्रेस सरकार में दो विधायक थे. बीटीपी की तरह बीएपी का भी एक प्रमुख उद्देश्य भील प्रदेश का निर्माण है.

राजस्थान में बीटीपी के दो विधायकों से बीएपी के पास अब चार विधायक और एक सांसद हैं, रोत ने 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के बागी से भाजपा उम्मीदवार बने महेंद्र जीत सिंह मालवीय को हराया.

इस नवीनतम कदम से पार्टी को बागीदौरा विधायक जयकृष्ण पटेल की गिरफ्तारी को लेकर हाल ही में हुई खराब प्रेस से उबरने में भी मदद मिलेगी. जिन्हें मई में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने राजस्थान विधानसभा में खनन से संबंधित तीन प्रश्नों को हटाने के लिए कथित तौर पर 20 लाख रुपये की रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया था.

(Image credit: Facebook@BAP)

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