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आदिवासी अधिकारों के लिए बड़े आंदोलन की तैयारी

भूमि अधिकार आंदोलन का चौथा राष्ट्रीय सम्मेलन 26-27 सितंबर को नई दिल्ली के कांस्टीयूशन क्लब में आयोजित हुआ. इस सम्मेलन में देश के 20 राज्यों जिनमें मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, दिल्ली, केरल, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, असम, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और पंजाब के 70 से ज्यादा जन संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया.

भूमि अधिकार आंदोलन के चौथे राष्ट्रीय सम्मेलन में पूरे देश में चुनिंदा उद्योगपतियों और व्यवसायियों के लिए स्थानीय लोगों के हाथों से छीनकर जबरन जल, जंगल, जमीन और खनिज जैसी सार्वजनिक संपदा को लूटे जान का मुद्दा उठा. सदियों से स्थानीय समुदायों के उपयोग में आते रहे इन संसाधनों को खुल्लमखुल्ला चंद लोगों के मुनाफे के लिए दिया जा रहा है.

भूमि अधिकार आंदोलन की रिसर्च विंग ने पूरे देश में हो रही इस लूट के ऐसे 80 स्थानों का संकलन किया है जहां स्थानीय स्तर पर आदिवासी समुदायों को डरा-धमका कर और उनकी आवाज़ को अनसुना करते हुए बिना कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करते हुए उनके तमाम संसाधनों को हड़पा जा रहा है.

इस सम्मेलन के बाद अशोक ढावले ने बताया कि 10 दिसंबर को मानावाधिकार दिवस के दिन पूरे देश में एक साथ जल, जंगल, ज़मीन, खनिज और साम्प्रदायिकता और श्रम क़ानूनों में बदलाव के ख़िलाफ़ एक बड़ा प्रदर्शन किया जाएगा.

इस सम्मेलन में भूमि अधिकार आंदोलन के 20 राज्यों से शामिल हुए प्रतिनिधियों ने जन पक्षीय कानूनों के खिलाफ मौजूदा बीजेपी सरकार की असंवेदनशील ढंग से चलाई जा रही मुहिम के खिलाफ चिंता जाहिर की और ऐसे कानूनों को जो नागरिक को उसकी गरिमा और इजाजत से जीने के मौलिक अधिकार को संरक्षित करते हैं, बचाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की. और संकल्प लिया कि ऐसे किसी कानून में कोपॉरेट्स के मुनाफे के लिए लाए जा रहे बदलावों के खिलाफ व्यापक और लंबा संघर्ष चलाने की तैयारी की.

भूमि अधिकार आंदोलन संसाधनों की लूट के खिलाफ विकेंद्रीकृत रूप से मौजूदा संभी जन आंदोलनों को आपस में जोड़ने का काम करेगा. इस सम्मेलन में कुछ प्रस्ताव पारित किए गए. इनमें से मुख्य तीन प्रस्ताव निम्नलिखित हैं.

भूमि अधिकार आंदोलन वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वन संरक्षण कानून, 1980 के नियमों में किए गए बदलावों की भर्त्सना करती है. भूमि अधिकार आंदोलन इन नियमों को जंगलों में सदियों से बसे आदिवासियों और अन्य परंपरागत समुदायों की गरिमा और आजीविका के खिलाफ मानता है और भारत की संसद से पारित प्रगतिशील ऐतिहासिक कानून, वन अधिकार कानून, 2006 की आत्मा के साथ किए जा रहे खिलवाड़ के रूप में देखता है. आंदोलन में शामिल सभी राज्यों के जन संगठन व्यापक तौर पर इन नियमों के खिलाफ ग्राम सभाओं से प्रस्ताव पारित करेंगे.

छत्तीसगढ़ में स्थित मध्य भारत का फेफड़ा कहे जाने वाले हसदेव अरण्य जैसे समृद्ध जंगल को मोदी सरकतार के मालिक अडानी के कोयले पर एकाधिकार स्थापित करने के लिए बर्बाद किए जाने का पुरजोर विरोध करता है. साथ ही हसदेव अरण्य में बसे स्थानीय आदिवासियों द्वारा 170 दिनों से जारी आंदोलन का समर्थन करता है.

तमाम धोखों से स्थानीय समुदायों को फर्जी आश्वासन देने के बाद भी आज तक परसा ईस्ट और केते बासन के दूसरे चरण के लिए सशस्त्र बल की मौजूदगी में पेड़ों की कटाई शुरू कर दी है. स्थानीय कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है. भूमि अधिकार आंदोलन छत्तीसगढ़ सरकार की इस बर्बर कार्रवाई की निंदा करती है और स्थानीय संघर्ष के साथ एकजुटता प्रदर्शित करता है.

देश में जनवादी आंदोलनों और कार्यकर्ताओं पर हो रहे दमन की भूमि अधिकार आंदोलन ने कड़ी निंदा की और सरकार को आगाह किया.

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