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बीजेडी ने संसद में उठाई ओडिशा के आदिवासियों की ये तीन मांग

बुधवार को बीजेडी (BJD) के राज्यसभा सदस्य सस्मित पात्रा (Rajya Sabha member Sasmit Patra) ने फिर से पार्टी की मांग को उठाया है. बीजेडी पार्टी द्वारा कई बार ये मांग की गई है की ओडिशा के पांच आदिवासी भाषाओं (five language include) को संविधान की आठवीं अनुसूचि में शामिल किया जाए.

इसके साथ ही उन्होंने ये भी मांग की है की ओडिशा की 169 समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किया जाए.

पात्रा ने राज्यसभा के शून्यकाल के दौरान कहा कि आठवीं अनुसूची में हो, मुंडारी, भूमिज, सोरा और कुल भाषाओं को शामिल करने की ये मांग लंबे समय से केंद्र सरकार के पास लंबित है.

दरअसल मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने पिछले साल ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को इस संबंध में लिखा था और आठवीं अनुसूची में इन भाषाओं को शामिल करने का अनुरोध किया था.

इस बारे में मिली जानकारी के मुताबिक ओडिशा और झारखंड में रहने वाले लगभग 10 लाख आदिवासी लोगों द्वारा ‘हो’ भाषा बोली जाती है. संथाली भाषा को पहले ही संविधान की आठवीं अनुसूची शामिल किया जा चुका है और इसी संथाली के बाद ‘हो’ ओडिशा में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली जनजातीय भाषा है.

मुंडारी ओडिशा के मुंडा और मुंडारी जनजातियों के छह लाख से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है और भूमिज लगभग तीन लाख लोगों द्वारा बोली जाती है.

पार्टी द्वारा ये भी मांग की गई है की ओडिशा की 169 समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल किया जाए. मतलब उन्हें भी आदिवासी दर्जा दिया जाए.

इसके साथ ही पार्टी द्वारा सरकार से ये आग्रह किया गया की केंदू पत्ते पर लगने वाला 18 फीसदी जीएसटी वापस लिया जाए क्योंकि 10 लाख से भी ज्यादा आदिवासी महिलाएं अपने जीवनयापन के लिए केंदू पत्ते पर निर्भर है.

ब्रिटिश शासन ख़त्म होने के बाद से ही ओडिशा में भाषाओं को लेकर संघर्ष किया जा रहा है. बीजद के अलावा दूसरे राजनीतिक दलों ने भी संविधान की आठवीं अनुसूची में आदिवासी भाषाओं को शामिल करने के लिए केंद्र सरकार से कई बार अपील की है. लेकिन केंद्र सरकार द्वारा इस मांग पर कोई खास ध्यान नहीं दिया गया.

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