ओडिशा के रायगढ़ ज़िले के दूरदराज़ के आदिवासी गाँवों की दशा एक बार फिर चर्चा में है.
नागावली नदी के किनारे बसे 9 आदिवासी गाँव आज भी बाकी दुनिया से कटे हुए हैं क्योंकि आज़ादी के 76 साल बाद भी वहाँ एक स्थायी पुल नहीं बन पाया है.
इस गंभीर उपेक्षा के खिलाफ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने संज्ञान लिया है और रायगढ़ जिला प्रशासन से चार हफ्ते के भीतर जवाब माँगा है.
यह मामला सिर्फ पुल का नहीं, बल्कि आदिवासी अधिकारों, विकास और प्रशासनिक उदासीनता की तस्वीर भी है.
इन गाँवों की कहानी दशकों पुरानी है. कल्याणसिंघपुर ब्लॉक की तीन पंचायतें – सिकारिपाई, पलाम और मझिगुड़ा – कई छोटे-छोटे गाँवों का घर हैं.
इनमें टोलोसाजा, अपरसाजा, अर्गोंडा, मंडीपार, कुसाबटी, मिनाझोला, कुराडी, कटापाडु और रघुनाथपुर जैसे गाँव शामिल हैं.
इन सभी को मुख्य सड़क से जोड़ने के लिए नागावली नदी पर एक पुल की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही है, लेकिन अब तक यह सपना ही बना हुआ है.
इन गाँवों के लोगों की समस्याएँ केवल आने-जाने की नहीं हैं, बल्कि यह उनकी ज़िंदगी के हर पहलू को प्रभावित करती हैं.
बारिश के मौसम में नदी में पानी का बहाव इतना तेज़ हो जाता है कि इसे पार करना नामुमकिन हो जाता है.
ऐसे में स्कूल जाने वाले बच्चों, बीमार लोगों और गर्भवती महिलाओं के लिए स्थिति बहुत ही गंभीर हो जाती है.
इलाज के अभाव में कई लोगों की मौत तक हो चुकी है, लेकिन अब तक प्रशासन की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई.
इस समस्या की ओर ध्यान दिलाने के लिए जयपुर के मानवाधिकार अधिवक्ता अनुप कुमार पात्रो ने 17 जनवरी 2024 को NHRC में शिकायत दर्ज करवाई.
उन्होंने आरोप लगाया कि ज़िला और राज्य प्रशासन ने इन गाँवों की ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ किया है और उन्हें संविधान द्वारा प्रदत्त बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखा गया है.
उन्होंने यह भी कहा कि यह मामला सिर्फ भौगोलिक दूरी का नहीं, बल्कि मानवाधिकारों के उल्लंघन का है.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस शिकायत पर 1 अक्टूबर 2025 को सुनवाई की और इसे गंभीर मानते हुए रायगढ़ जिला मजिस्ट्रेट से चार हफ्ते के अंदर Action Taken Report (ATR) मांगी है.
आयोग ने साफ कहा है कि यह एक मानवाधिकार का मामला है और सरकार को इस दिशा में तुरंत कदम उठाने चाहिए.
इस मामले की पृष्ठभूमि में यह जानना ज़रूरी है कि ओडिशा के कई आदिवासी क्षेत्र दशकों से इंफ्रास्ट्रक्चर यानि बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं.
पुल, सड़क, स्कूल और अस्पताल जैसी मूलभूत चीजें अब भी कई गाँवों तक नहीं पहुँची हैं. बार-बार चुनावों में इन मुद्दों को उठाया जाता है, वादे किए जाते हैं लेकिन ज़मीन पर बदलाव नहीं दिखता.
इसके पीछे प्रशासनिक लापरवाही और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी साफ नज़र आती है.
NHRC की कार्रवाई अब इस दिशा में उम्मीद की एक नई किरण बनकर सामने आई है.
सवाल यह नहीं है कि पुल कब बनेगा, बल्कि सवाल यह है कि आदिवासी समुदाय को और कब तक अनदेखा किया जाएगा?