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इस आदिवासी-बहुल ज़िले में कोविड सिर्फ़ एक लक्षण है, असल बीमारी तो यहां की स्वास्थ्य प्रणाली हैै

मुख्यधारा और मीडिया की नज़रों से दूर, ओडिशा के आदिवासी-बहुल नबरंगपुर ज़िले में कोविड की दूसरी लहर दबे पांव तबाही मचा रही है. छत्तीसगढ़ से सटे होने की वजह से ज़िले में कोविड का संक्रमण तेज़ी से बढ़ा है.

कोविड टेस्टिंग और इलाज के लिए सुविधाओं की कमी के चलते इलाक़े के आदिवासी आम तौर पर अपनी बस्ती के पुजारी के पास जाते हैं. अगर बीमारी गंभीर हो जाती है, तभी वो ज़िले से बाहर, या सीमा पार छत्तीसगढ़ या आंध्र प्रदेश जाते हैं.

जल्द ही ज़िला मुख्यालय अस्पताल में एक RTPCR लैब, और एक ऑक्सीजन प्लांट लगाया जाएगा, जिससे कोविड के ख़िलाफ़ लड़ाई को मज़बूती मिलेगी.

कोविड की दूसरी लहर शुरु होने के बाद चंदाहांडी (100 बेड), झरीगांव (80 बेड), रायघर (100 बेड), उमरकोट (200 बेड), कासागुमुडा (80 बेड) और नबरंगपुर (198 बेड) में कोविड केयर सेंटर (CCC) खोले गए हैं.

नबरंगपुर में ही एक Dedicated Covid Health Centre (DCHC) भी है जिसमें 200 बेड हैं. इसके अलावा नबरंगपुर सदर में जिला मुख्यालय अस्पताल (DHH) और उमरकोट शहर में सब-डिविज़नल अस्पताल (SDH) भी हैं.

लेकिन हालात जैसे दिखते हैं, वैसे हैं नहीं. DCHC में सिर्फ़ तीन डॉक्टर हैं, जबकि CCC में एक आयुष डॉक्टर, एक फ़ार्मसिस्ट, दो नर्स और एक अटेंडेंट है.

ज़िले में 7 CHC (सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र) और छह CCC हैं, लेकिन हर सीएचसी और सीसीसी को सिर्फ़ 10 ऑक्सीजन सिलेंडर दिए गए हैं.

जहां पिछले साल कोविड की पहली लहर में 202 अस्थायी चिकित्सा केंद्र (Temporary Medical Centre – TMC) बनाए गए थे, इस साल इनकी संख्या घटाकर 42 कर दी गई है.

यहां के आदिवासियों में एलोपैथी को लेकर कई शंकाएं हैं, तो बीमार होने पर वो इलाज के पारंपरिक तरीक़े ही अपनाते हैं. इसके अलावा इलाज के लिए या तो वो कोरापुट जाते हैं, या आंध्र प्रदेश.

इलाक़े में काम करने वाले कई सामाजिक कार्यकर्ता मानते हैं कि इस ज़िले में कोविड सिर्फ़ एक लक्षण है. असल बीमारी है यहां की टूटी-फूटी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली.

ज़िले में सिर्फ़ 81 डॉक्टर हैं, जबकि यहां के लिए 68 स्पेशलिस्ट समेत डॉक्टरों के लिए 264 पद सैंक्शन किए गए हैं. फ़िलहाल सिर्फ़ सात स्पेशलिस्ट हैं. इसके अलावा 12 डेंटिस्ट के पद हैं, लेकिन चार ही यहां कार्यरत हैं.

सपोर्ट स्टाफ़ की गिनती भी उतनी ही बुरी है. 81 फ़ार्मसिस्टों के पद हैं, लेकिन ज़िले में 56 ही हैं. 53 स्टाफ़ नर्स हैं, और उनके लगभग 280 पद खाली पड़े हैं.

344 पदों में से 307 पर ही एएनएम नियुक्त हैं, और लैब टेक्नीशियन सैंक्शन्ड पदों में से आधे से भी कम हैं.

ग़रीब, कुपोषित और लंबे समय से विकास को तरस रहे इस ज़िले के आदिवासी एक अलग ही दुनिया में हैं. अंधविश्वास, अशिक्षा और जागरुकता की कमी यहां के आदिवासियों को काले जादू और झोलाछाप डॉक्टरों के चक्र से बाहर निकलने ही नहीं देते.

कोविड महामारी की इस दूसरी लहर में नबरंगपुर और उमरकोट के 20 लोग मर चुके हैं. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार ज़िले में मरने वालों की कुल संख्या 35 है. अभी भी 2,313 सक्रिय मामले हैं.

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