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कंधे पर बच्चे का शव उठा कर आदिवासी पिता 8 किलोमीटर पहाड़ चढ़ा

आंध्र प्रदेश (Tribes of Andhra Pradesh) में एक आदिवासी दंपत्ति अपने मृत बच्चे के शव को गांव ले जाने के लिए 8 किलोमीटर तक पैदल चले. यह घटना गुंटूर ज़िले (Guntur District) के रावुलपालेम की है.

8 अप्रैल को आदिवासी सारा कोतय्या के बेटे की तबियत खराब होने लगी. जिसके बाद कोतय्या अपने 2 वर्षीय बच्चे को लेकर पास के प्राइवेट अस्पताल पहुंचा.

कोतय्या ने बताया कि जैसे ही अस्पताल के डॉक्टरों ने बच्चे को इंजेक्शन लगाया. उसकी तबीयत और भी बिगड़ने लगी. कुछ घंटो बाद बच्चे की मृत्यु हो गई.  

कोतय्या और उनकी पत्नी सीता रावुलपालेम में स्थित ईट भट्ठे में काम करते हैं. यह इलाका गुंटूर ज़िले में पड़ता है.

9 अप्रैल को कोतय्या के बेटे की मृत्यु की खबर उनके कार्यस्थल तक पहुंच गई. जिसके बाद ईट भट्ठे के मालिक ने मृत बच्चे सहित माता-पिता को गांव तक पहुंचाने के लिए एंबुलेंस का इंतज़ाम करवाया था.

लेकिन एंबुलेंस ने भी दंपत्ति को गाँव तक नहीं छोड़ा. 10 अप्रैल की रात 2 बजे एंबुलेंस ने कोतय्या और उसकी पत्नी को विजयनगरम ज़िले के वनिजा गाँव तक छोड़ दिया. यहां से भी इनका गाँव लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

यह पता चला है कि गाँव तक पहुंचने के लिए पहाड़ों पर घुमावदार रास्ता मौजूद है. लेकिन यह रास्ता 40 किलोमीटर लंबा है. इसलिए अक्सर गाड़ियां ये लंबा रास्ता नहीं लेती.

रात के समय कोतय्या और उसकी पत्नी पहाड़ पर चढ़ाई नहीं कर सकते थे. इसलिए वे वहीं रूक गए.

सुबह करीब 5 बजे दंपत्ति ने पहाड़ पर चढ़ाई करना शुरू किया. लगभग दो पहाड़ और 8 किलोमीटर का पैदल रास्ता तय कर वे अपने गाँव पहुंचे.

इस पैदल यात्रा में कोतय्या अपने मृत बच्चे का शरीर कंधे में लेकर चढ़ाई करता रहा. गांव पहुंचते ही माता-पिता ने बच्चे का दाह संस्कार किया.

ज़िला अधिकारी के. गोविंदा राव ने बताया कि गाँव में रोज़गार के अधिक विकल्प नहीं है. इसलिए यहां रहने वाले आदिवासी अन्य जगहों पर जाकर काम करते हैं.

उन्होंने यह भी बताया की कॉन्टैक्टर आदिवासी मज़दूरों को एडवांस में वेतन देता है. इसलिए महीना पूरा होने के बाद ही आदिवासी अपने घर आ पाते हैं.

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