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केरल के आदिवासी विकास पर केंद्रीय मंत्री के कटाक्ष में कितनी सच्चाई?

केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते शनिवार को केरल में थे. वहां उन्होंने राज्य के पालक्काड ज़िले के सबसे बड़े आदिवासी इलाक़े अट्टपाड़ी में मल्लेश्वर जनजातीय खेल छात्रावास का उद्घाटन किया. साथ ही कुलस्ते ने विभिन्न क्षेत्रों में राज्य के विकास की प्रशंसा करते हुए केरल पर एक कटाक्ष भी किया.

कुलस्ते ने कहा कि केरल वैसे तो स्वास्थ्य, शिक्षा और कई दूसरे में में नंबर वन है, लेकिन राज्य के आदिवासी इलाक़े अभी भी विकास की दौड़ में काफ़ी पीछे हैं.

कुलस्ते के इस बयान के पीछे का तर्क यह है कि देश के आदिवासी इलाक़ों पर विशेष ध्यान देने वाली कई केंद्रीय परियोजनाएं आदिवासी प्रभुत्व वाले क्षेत्रों के चेहरे बदल रही हैं. इसके अलावा उन्होंने सबको यह भी याद दिलाया कि राष्ट्रपति पद के लिए भाजपा ने एक आदिवासी महिला को उम्मीदवार बनाया है. उनका कहना है कि यह आदिवासी इलाक़ों के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की “विशेष देखभाल” को बयान करता है.

मंत्री ने कहा कि आदिवासियों के पास खेल में बेहतरीन प्रदर्शन करने के लिए शारीरिक शक्ति और प्रतिभा है, और उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए ख़ास कोचिंग और सुविधाएं दी जानी चाहिए.

कुलस्ते ने शनिवार को केरल के अट्टपाड़ी में मल्लेश्वर जनजातीय खेल छात्रावास का उद्घाटन किया

अट्टपाड़ी में मल्लेश्वर विद्या निकेतन स्कूल का खेल केंद्र आदिवासियों को केल के मैदान में एक मजबूत आधार देने में मदद करेगा.

इस आदिवासी खेल छात्रावास में कबड्डी और एथलेटिक्स चयन शिविर के माध्यम से पहले से ही 20 छात्रों को प्रवेश दिया जा चुका है. अधिकारियों ने कहा कि खिलाड़ियों को शारीरिक प्रशिक्षण और पौष्टिक भोजन दिया जाएगा.

केरल में आदिवासी विकास की सच्चाई

केरल में कुल 119,788 परिवारों के 484,839 आदिवासी लोग रहते हैं, जो राज्य की कुल आबादी का 1.43 प्रतिशत हिस्सा हैं. इनमें पांच पीवीटीजी यानि आदिम जनजातियां भी हैं – चोलनायकर, काड़र, काट्टुनायकन, कुरुम्बा और कोरगा.

वायनाड और पलक्काड का अट्टपाड़ी क्षेत्र केरल में सबसे ज़्यादा आबादी वाले आदिवासी जिले हैं. वायनाड में आदिवासी आबादी (31.2%) सबसे अधिक है, इसके बाद इडुक्की (11.5%) और पालक्काड (10%) हैं.

केरल में सामान्य जनसंख्या की तुलना में आदिवासियों की साक्षरता दर कम (75.81%) है. रोजगार के संबंध में, केरल में रहने वाली कुल आदिवासी आबादी में से सिर्फ़ 10 प्रतिशत ही अपनी ज़मीन पर खेती करते हैं, जबकि 40 प्रतिशत खेत मज़दूर हैं. यह आंकड़े राज्य के अनुसूचित जनजाति विकास विभाग यानि एसटीडीडी ने 2013 में साझा किए थे.

केरल के आदिवासी

केरल में पनिया आदिवासी समुदाय सबसे बड़ा है, और यह लोग राज्य की कुल आदिवासी आबादी का 22.5 प्रतिशत हैं. इसके बाद कुरिचिया (9%) और मलयारायण (8.9%) आते हैं.

मलयारायण आदिवासियों के बीच साक्षरता दर काफ़ी अच्छी है, और इस समुदाय के 94.5 प्रतिशत लोग साक्षर हैं. यह दर राज्य की सामान्य आबादी के साक्षरता दर के बराबर है. दूसरी तरफ़, काट्टुनायकन और मुदुवान आदिवासी समुदायों की साक्षरता दर बेहद कम है. काट्टुनायकन की 40.2 और मुदुवान की 41.5 प्रतिशत.

पनिया समुदाय आदिवासियों में सबसे गरीब समूह है. इसके सिर्फ़ 1.7 प्रतिशत सदस्य किसान हैं, जबकि 65.7 प्रतिशत खेतिहर मजदूर हैं.

कुरिचिया, मलयारायण और मुदुवान खेती करते हैं, जबकि ज़्यादातर काट्टुनायकन और अडिया आदिवासी दूसरों के खेतों में मजदूरी करते हैं.

केरल की आदिवासी आबादी ज्यादातर पश्चिमी घाट के घने जंगलों में रहती है, और इसी वजह से मुख्यधारा के समाज से कटी रहती है. उनकी आजीविका का मुख्य साधन वनोपज है.

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