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छत्तीसगढ़ और ओडिशा के हज़ारो पेड़ नष्ट, देखने वाला कोई नहीं

छत्तीसगढ़ (Tribes of Chhattisgarh) के हसदेव अरण्य वन की कटाई पर चिंता व्यक्त की जा रही है. कोयला निकालने वाली प्राइवेट कंपनी यहां पर पेड़ों की कटाई कर रही हैं.

इसके अलावा ओडिशा में भी खनन के लिए जंगल और पहाड़ों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है.

इस बारे में जानकारी के मुताबिक हसदेव अरण्य वन में 15,000 पेड़ो को काटा जा चुका है और 81,000 पेड़ों पर विनाश का खतरा मंडरा रहा है.

वनों की कटाई (forest conservation) का सिलसिला सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि देश के अलग अलग जगहों पर हो रहा है.

मसलन ओडिशा के मंजिंगमाली, सियुमाली, कुरूमाली और नियामगिरि पहाड़ियों के कई पेड़ों को बॉक्साइट खनन के तहत नष्ट कर दिया गया है.

वहीं छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के बैलाडीला और आमदाई घाटी को भी प्राइवेट कंपनी द्वारा खरीदा जा चुका है. यह संस्थान अपने जरूरत के हिसाब से यहां कभी भी खनन करना शुरू कर देती है.

इस खनन से सिर्फ पेड़ो को ही नुकसान नहीं होता, बल्कि यहां पर रहने वाले जीव-जन्तु भी इससे प्रभावित होते हैं.

छत्तीसगढ़ के जंगल हो या फिर ओडिशा के, आदिवासी इन खनन का लगातार विरोध करते आए हैं. लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है.

इन्हीं मुद्दों को प्रशासन तक पहुंचाने के लिए फोरम अगेंस्ट कोरपोरेशन एंड मिलिट्रीजाइजेशन (Forum against corporation and Militarization) ने ‘आदिवासी अधिकार सभा‘ नामक मीटिंग आयोजित करने का फैसला किया है.

यह मीटिंग 23 मार्च 2024 को आयोजित की जाएगी. इसी दिन देश के स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव ब्रिटिश के कोपरेशन के खिलाफ लड़ने के लिए फांसी की सज़ा दी गई थी.

एफएसीएएम (FACAM) संस्थान को यह उम्मीद है की इस मीटिंग से वे जंगल के अधिकारों के प्रति अपनी मांग को प्रशासन तक पहुंचा पाएंगे.

संस्थान के अधिकारी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा की हम भी स्वतंत्रता सेनानियों की तरह आखिरी उम्मीद रहने तक अपनी आवाज उठाएंगे.

एफएसीएएम के अधिकारी एहतमाम ने आरोप लगाया कि यहां के आदिवासी सालों से फर्जी ग्राम सभा, फर्जी मुठभेड़, खनन जैसी कई समस्याओं के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन प्रशासन अभी तक टस से मस नहीं हुई.

जंगल के अधिकार के लिए आदिवासियों ने कई जगह एंटी कैंप लगाए हुए हैं. लेकिन सरकार इन पर माओवादी होने का इल्ज़ाम लगाती है और जंगल और आदिवासियों का न्याय निष्फल हो जाता है.

प्रदर्शनकारियों की मांगे
पेसा एक्ट के तहत अनिवार्य ग्राम सभा के “उल्लंघन” को रोकें. वन अधिकार अधिनियम, 2006 और वन संरक्षण अधिनियम, 1980 में “अलोकतांत्रिक” और “जन-विरोधी” संशोधनों को रद्द करें.

आदिवासियों की जमीनों को जबरदस्ती हड़पने और आदिवासी किसानों के विस्थापन को रोकें.

कॉर्पोरेट “लूट” को तेज़ करने के लिए सैकड़ों अर्धसैनिक शिविरों के माध्यम से खनिज समृद्ध क्षेत्रों के “बड़े पैमाने पर सैन्यीकरण” को रोकें.

फर्जी मुठभेड़ों, हवाई बमबारी, फर्जी गिरफ्तारियां, जबरन फर्जी आत्मसमर्पण, यौन हिंसा आदि के रूप में आदिवासी किसानों के “नरसंहार” को रोकें.

आदिवासी इलाकों में पेसा और 5वीं व 6वीं अनुसूची लागू करें.

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