Mainbhibharat

आदिवासियों के रॉबिनहुड: अंग्रेजों को नाको चने चबवाने वाले वीर नारायण सिंह

आज छत्तीसगढ़ के सपूत वीर नारायण सिंह का शहादत दिवस है. इस अवसर पर बलौदा बाजार के सोनखान में विभिन्न आयोजन किए जा रहे हैं. साथ ही उन्हें याद करने के लिए संग्रहालय बनाया गया है.

शहादत दिवस के मौके पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्य के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अमर शहीद वीरनारायण सिंह को उनके बलिदान दिवस पर नमन किया. मुख्यमंत्री ने उनके योगदान को याद करते हुए कहा है कि स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर देने वाले आदिवासी जन-नायक वीर नारायण सिंह छत्तीसगढ़ महतारी के सच्चे सपूत थे.

मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि उन्होंने सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में छत्तीसगढ़ की जनता में देश भक्ति का संचार किया. राज्य सरकार ने उनकी स्मृति में आदिवासी एवं पिछड़ा वर्ग में उत्थान के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए शहीद वीर नारायण सिंह सम्मान स्थापित किया है.

कौन थे वीर नारायण सिंह?

वीर नारायण सिंह बलौदा बाजार के सोनाखान इलाके के एक बड़े जमींदार थे. उनके क्रांति की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. 1857 में अंग्रेजी सेना छत्तीसगढ़ में अपना कब्जा चाहती थी. तब नारायण सिंह के पिता रामराय सिंह ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. पिता के बाद जब नारायण सिंह जमींदार बने उसी समय सोनाखान क्षेत्र में अकाल पड़ा. ये 1856 का समय था जब तीन साल तक लगातार लोगों को अकाल का सामना करना पड़ा.

सोनाखान इलाके में एक माखन नाम का व्यापारी था, जिसके पास अनाज का बड़ा भंडार था. अकाल के समय माखन ने किसानों को उधार में अनाज देने की मांग को ठुकरा दिया. तब ग्रामीणों ने नारायण सिंह से गुहार लगाई और जमींदार नारायण सिंह के नेतृत्व में ग्रामीणों ने व्यापारी माखन के अनाज भण्डार के ताले तोड़ दिये.

व्यापारी माखन ने लूट की शिकायत रायपुर के डिप्टी कमिश्नर से कर दी. उस समय के डिप्टी कमिश्नर इलियट ने सोनाखन के जमींदार नारायण सिंह के खिलाफ वारन्ट जारी कर दिया. कमिश्नर ने नारायण सिंह पर चोरी और डकैती का मामाला दर्ज किया था. इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.

उसी समय देश में अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गया. इस अवसर का फायदा उठाकर संबलपुर के राजा सुरेन्द्रसाय की मदद से किसानों ने नारायण सिंह को रायपुर जेल से भगाने की योजना बनाई और इस योजना में सफल भी हुए. अब अंग्रेज इस घटना से आग बबूला हो गए और नारायण सिंह की गिरफ्तारी के लिए एक बड़ी सेना भेज दी.

नारायण सिंह ने सोनाखान में अंग्रेजों से लड़ने के लिए अपनी खुद की सेना बना ली थी. इसमें 900 जवान शामिल थे. लेकिन उन्हीं के कुछ साथियों को अंग्रेज़ों ने धन का लालच देखकर बहला फुसलाकर वीर नारायण सिंह जी को गिरफ्तार करवा लिया.

10 दिसंबर 1857 को रायपुर के चौराहे पर उन्हें बांधकर फांसी दे दी गई, वर्तमान में यह स्थान जयस्तंभ चौक के नाम से जाना जाता है. फांसी देने के बाद अंग्रेज़ों ने उस महान सपूत के शरीर को तोप में बांधकर उड़ा दिया.

बता दें, 1987 में भारत सरकार ने 60 पैसे का स्टाम्प जारी किया, जिसमें वीर नारायण सिंह को तोप के आगे बंधा दिखाया गया है. वीर नारायण जी के सम्मान में छत्तीसगढ़ प्रदेश शासन के द्वारा उनकी स्मृति में एक पुरस्कार की शुरुआत भी की गई है. 2008 में छत्तीसगढ़ सरकार के रायपुर क्रिकेट संघ ने शहीद वीर नारायण सिंह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम की स्थापना भी की.

Exit mobile version