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छत्तीसगढ़: आदिवासियों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लिए जाने की समीक्षा

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मंगलवार को आदिवासियों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लिए जाने की समीक्षा की. उन्होंने गृह विभाग (पुलिस) के साथ यह समीक्षा बैठक की.

जस्टिस एके पटनायक की अध्यक्षता में गठित सात सदस्यीय समिति ने 632 मामलों में 752 आदिवासी आरोपियों के खिलाफ मामले वापस लेने की सिफारिश की थी. इन सभी मामलों को वापस ले लिया गया है.

इसी तरह, 2019 से पहले दर्ज मामलों में, 811 ऐसे हैं जहां नक्सली संबंधित मामलों में स्थानीय आदिवासियों को गिरफ्तार किया गया. इन्हें भी वापस ले लिया गया है. इससे कुल 1,244 स्थानीय आदिवासियोंके खिलाफ दर्ज मामले अब है गए हैं.

मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को बाकी बचे ऐसे मामलों का भी जल्द निपटारा करने के लिए कहा है.

बघेल ने दिसंबर 2018 में सत्ता में आने के बाद माओवादी प्रभावित इलाकों, खासकर बस्तर, में आदिवासियों के खिलाफ दर्ज पुलिस मामलों की समीक्षा करने का फैसला किया था.

इसके बाद उन्होंने मार्च 2019 में जस्टिस (रिटायर्ड) एके पटनायक की अध्यक्षता में सात सदस्यीय समीक्षा समिति का गठन किया था.
बस्तर माओवादी प्रभावित इलाका है

पिछले साल जून में छत्तीसगढ़ सरकार ने माओवादी प्रभावित बस्तर जिले में आदिवासियों के खिलाफ 100 से ज्यादा माओवादी-संबंधित मामलों सहित 594 आपराधिक मामले वापस लिए थे.

जस्टिस पटनायक समिति ने कुल 627 मामले वापस लेने की सिफारिश की थी, जिनमें से 594 वापस लिए गए, जिससे 726 आदिवासियों को फायदा हुआ.

इनमें से दंतेवाड़ा जिले में 24 मामलों में 36, बीजापुर जिले में 44 मामलों में 47 लोगों, नारायणपुर जिले में सात मामलों में नौ लोगों, और कोंडागांव जिले में तीन मामलों में नौ लोगों को बरी किया गया.

इसी तरह कांकेर जिले में एक मामले में छह लोगों को, सुकमा जिले में 44 मामलों में 109 लोगों को, और राजनांदगांव जिले में एक मामले में दो आरोपियों को बरी कर दिया गया.

उग्रवाद प्रभावित आदिवासी क्षेत्र होने की वजह से, बस्तर से अक्सर ऐसी शिकायतें आती हैं कि पुलिस ने स्थानीय आदिवासियों पर माओवादी संबंधित मामलों में केस दर्ज किया है. इन मामलों में यह आदिवासी विचाराधीन कैदियों के रूप में लंबे समय तक जेलों में बंद रहते हैं.

जस्टिस पटनायक समिति ने मामलों की समीक्षा के लिए पांच शर्तें तय की थीं. इसके तहत, छत्तीसगढ़ एक्साइज एक्ट के साथ आईपीसी, राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, UAPA, और दूसरे केंद्रीय कानूनों के तहत दर्ज सभी मामलों की समीक्षा की जानी थी.

समिति पर यह तय करने का जिम्मा था कि सीआरपीसी की धारा 321 के तहत इन मामलों में से कौन से मामलों को वापस लिया जा सकता है.

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