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अबूझमाड़ का सर्वे होगा पूरा, आम सहमति से बनेगी बोधघाट परियोजना

प्रस्तावित बोधघाट परियोजना के खिलाफ बस्तर के आदिवासियों की बढ़ती नाराजगी के बीच, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बुधवार को कहा कि उनकी सरकार “सहमति” पर पहुंचने के बाद ही परियोजना पर आगे बढ़ेगी.

वित्त वर्ष 2022-23 के लिए राज्य का बजट पेश करने के बाद पत्रकारों को जानकारी देते हुए उन्होंने कहा, “परियोजना को लेकर स्थानीय आबादी के बीच कुछ चिंताएं थीं. हमारा विकास मॉडल सभी हितधारकों को विश्वास में लेना है, किसी भी परियोजना को आगे बढ़ाने से पहले आम सहमति पर पहुंचना है.”

यह बताते हुए कि उनकी सरकार ने गोधन या गौ आश्रय परियोजनाओं के लिए राज्य भर के गांवों में लगभग एक लाख एकड़ भूमि आरक्षित की थी, मुख्यमंत्री ने कहा कि इस फैसले का विरोध नहीं हुआ क्योंकि यह आम सहमति पर पहुंचने के बाद किया गया था. “इसी तरह, हम आम सहमति पर पहुंचने के बाद ही बोधघाट परियोजना पर आगे बढ़ेंगे,” उन्होंने कहा.

क्या है बोधघाट परियोजना?

बोधघाट जलविद्युत परियोजना, जिसे पहले 1970 के दशक के अंत में स्थापित करने का प्रस्ताव था, ने आदिवासी इलाकों में पर्यावरणीय चिंताओं पर विवाद खड़ा कर दिया था. 1980 के दशक में, तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने परियोजना को बंद करने की प्रक्रिया शुरू की, हालांकि इस पर अंतिम फैसला 1997 में लिया गया.

दिसंबर 2018 में सत्ता में आने के बाद, भूपेश बघेल सरकार ने बोधघाट परियोजना को एक मल्टी परपस सिंचाई परियोजना के रूप में पुनर्जीवित करने का फैसला लिया और केंद्र ने काम को आगे बढ़ाने के लिए अपनी सैद्धांतिक सहमति भी दे दी.

राज्य सरकार ने कहा था कि 22,653 करोड़ रुपये की लागत से स्थापित होने वाली प्रस्तावित परियोजना से नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर जिलों में सालाना 3.66 लाख हेक्टेयर इलाके में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होगी. इसके अलावा 300 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा. जल विद्युत परियोजना के तहत दंतेवाड़ा जिले के बरसूर गांव के पास इंद्रावती नदी पर एक बांध का निर्माण होना है.

(बोधघाट परियोजना को समझने के लिए आप हमारे यूट्यूब चैनल पर यह वीडियो देख सकते हैं: https://youtu.be/hTOmkqHvS24)

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल

अबूझमाड़ का होगा सर्वेक्षण

इसके अलावा भूपेश बघेल ने अबूझमाड़ के आदिवासी गढ़ का सर्वेक्षण करने की घोषणा की, ताकि इस माओवादी प्रभावित इलाके के गांवों में रहने वाले आदिवासियों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके. अबूझमाड़ को ऐसा इलाका माना जाता है जहां सरकार की तरफ से कोई सर्वे लंबे समय से नहीं हो पाया है.

लेकिन बघेल सरकार ने दावा किया है कि वो इस काम को पूरा करेगी.

बुधवार को उन्होंने विधानसभा में कहा कि नौ गांवों में सर्वेक्षण पूरा कर लिया गया है, जिसके बाद 676 किसानों को अस्थायी भूमि रिकॉर्ड भी दे दिए गए, जिससे उन्हें कई सरकारी योजनाओं का फायदा उठाने में मदद मिली.

सभी 237 गांवों का कई दशकों तक सर्वेक्षण न होने की वजह से, स्थानीय आबादी सरकार को कई कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रही है.

अविभाजित मध्य प्रदेश के दौरान तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा लगाए गए कुछ प्रतिबंधों के चलते जून 2009 तक अबूझमाड़ आम जनता से कटा हुआ था. जून 2009 में, रमन सिंह सरकार ने विकास लाने के लिए आम लोगों को अबूझमाड़ जाने की अनुमति दी.

1,500 वर्ग मील से ज्यादा के इलाके में फैले अबूझमाड़ में घने जंगल, चट्टानी इलाके, नदी नाले और दुर्गम वन गाँव हैं. यहां मुख्य रूप से गोंड और मुरिया जनजातियाँ निवास करती हैं.

अबूझमाड़ के आधे से भी कम क्षेत्र में, स्थानीय आदिवासी शिफ्टिंग कल्टीवेशन करते हैं, जिसे स्थानीय भाषा में “पेंडा खेती” कहा जाता है. साप्ताहिक बाजारों में कभी-कभार आने के अलावा, आदिवासियों का लंबे समय तक बाहरी दुनिया से कोई संपर्क नहीं होता है.

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