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छत्तीसगढ़ में आदिवासियों को कोरोना से बचाने की मुहिम में राज्यपाल और मुख्यमंत्री साथ-साथ

छत्तीसगढ़ में बढ़ते कोरोना संक्रमण और आदिवासी इलाकों में बढ़ते मामलों को देखते हुए राज्यपाल अनुसुइया उईके ने आदिवासी नेताओं को को साथ ले कर नई पहल की है. 

राज्यपाल ने प्रदेश के आदिवासी नेताओं को एक साथ समाज के बचाव के लिए आगे आने की मुहिम शुरू की है. 

इसे लेकर राज्यपाल ने कांग्रेस, भाजपा और अन्य दलों के आदिवासी नेताओं के साथ वर्चुअल बैठक की है. इस बैठक में  आदिवासी समुदायों का कोरोना संक्रमण से  बचाव का रोड मैप तैयार करने पर चर्चा की गई.

संक्रमण बस्तर और सरगुजा में तेजी से फैल रहा है. इसे देखते हुए राज्यपाल उईके ने आदिवासी नेताओं को कहा कि वे स्थानीय स्तर पर जरूरतों की जानकारी दें. अस्पतालों में क्या कमियां है उसे बताएं. इसे पूरा करने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार से मदद ली जाएगी.

राज्यपाल ने आदिवासी नेता नंदकुमार साय, सोहन पोटई, सर्व आदिवासी समाज के नवल सिंह मंडावी, सविता साय सहित अन्य नेताओं से वर्चुअल बैठक की. इसमें नेताओं से सुझाव लिया और उनको समाज के बचाव की दिशा में प्रयास करने के निर्देश दिए.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए सर्वदलीय बैठक की है

राज्यपाल ने आदिवासी नेताओं से कहा कि वे अस्पताल और अन्य स्थानों में व्यवस्था सुधारने में आर्थिक रूप से भी मदद करें. कोरोना काल में राज्यपाल अनुसुइया उईके काफी सक्रिय रही हैं. 

उईके ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ कई दौर की चर्चा की और प्रदेश में दवाओं और वैक्सीन की उपलब्धता के लिए प्रयास किए.

इसके बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ भी चर्चा की. राज्यपाल की पहल के बाद ही मुख्यमंत्री बघेल ने सर्वदलीय बैठक का आयोजन किया. इस बैठक में कोरोना से बचाव के बारे में चर्चा की गई.

इसके साथ राज्यपाल ने एनसीसी, एनएसएस के छात्रों को मदद के मोर्चे पर उतरने का निर्देश दिए थे.

आदिवासी इलाक़ों में कोरोना संक्रमण शहरी या ग़ैर आदिवासी आबादी क्षेत्रों की तुलना में कम है. लेकिन यह संक्रमण अगर आदिवासी आबादी में फैल जाता है तो यह बेहद घातक होगा. 

आदिवासी आमतौर पर पहाड़ी और जंगल के इलाक़े में रहते हैं. यहां पर ना सिर्फ़ स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है, इन इलाक़ों में यातायात भी आसान नहीं है. इसलिए लोगो को शहरों के अस्पताल तक लाना मुश्किल है.

आदिवासी इलाक़ों के लिए ज़रूरी है जागरूकता अभियान चलाना. इन इलाक़ों में जागरूकता अभियान तभी कामयाब हो सकता है जब यह अभियान आदिवासियों की भाषा या बोली में किया जाए. 

इसके साथ ही यह भी ज़रूरी है कि आदिवासी समुदाय के लोगों को इस अभियान में शामिल किया जाए. 

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