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पीडीएस के तहत आदिवासियों को गुड़ के वितरण में घोटाले का आरोप, छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने प्रक्रिया पर लगाई रोक

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने आदिवासी बहुल बस्तर की ग़रीब और कुपोषित आबादी के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानि पीडीएस के तहत गुड़ की आपूर्ति में व्यापक अनियमितता का आरोप लगाती एक याचिका के बाद उसके टेंडर प्रोसेस पर फ़िलहाल रोक लगा दी है.

प्रभारी चीफ़ जस्तिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस पार्थ प्रतीम साहू की बेंच ने छत्तीसगढ़ स्टेट सिविल सप्लाई कॉरपोरेशन से टेंडर प्रोसेस पर रोक लगाने के बाद जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया है.

10 अप्रैल को जारी किए गए टेंडर प्रोसेस में घोर अनियमितताओं का आरोप है. एक ऐसी कंपनी जिसने अपने हलफ़नामे में ज़्यादा कीमत पर चीनी की आपूर्ति की घोषणा की है, और दूसरे ज़रूरी मानकों पर भी योग्य नहीं है, उसे योग्य होने का हवाला दिया गया है.

याचिका में आरोप है कि वास्तव में योग्यता प्राप्त करने वाली कंपनी को अवैध रूप से खारिज कर दिया गया है. याचिकाकर्ता अंबे इंडस्ट्रीज के वकील सतीश गुप्ता ने कहा कि इस तरह के गलत टेंडर प्रोसेस से राज्य को 17 करोड़ रुपये से ज़्यादा का अतिरिक्त नुकसान होगा.

मामले में अगली सुनवाई 29 जून को होगी. दक्षिण छत्तीसगढ़ के बस्तर ज़िले की आदिवासी आबादी के बीच कुपोषण से लड़ने के लिए, राज्य सरकार ने ‘मधुर गुड़ योजना’ शुरू की है.

इस योजना के तहत हर परिवार को दो किलो गुड़ पीडीएस के माध्यम से दिया जाएगा. इस योजना का फ़ायदा हर महीने 6.98 लाख राशन कार्ड धारकों को होगा. गुड़ के अलावा बस्तर की आबादी को चावल, चना, नमक और दालें भी पीडीएस के माध्यम से दी जाती हैं.

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