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छत्तीसगढ़ विधानसभा में पारित हुआ आरक्षण संशोधन बिल, आदिवासी कोटा बढ़कर 32 प्रतिशत

छत्तीसगढ़ विधानसभा में आज आरक्षण संशोधन विधेयक पारित हो गया. इस बिल के पास होने के साथ छत्तीसगढ़ में आरक्षण 76 फीसदी हो गया है. अब प्रदेश में अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes) को 32 प्रतिशत, अनुसूचित जाति (Scheduled Castes) को 13 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Classes) को 27 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस को 4 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा. इस बिल के पारित होने के साथ छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य बन गया है जहां देश में सबसे ज्यादा आरक्षण की व्यवस्था है.

मुख्यमंत्री लोक सेवा आरक्षण में आरक्षण और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश संबंधी विधेयक सदन में लाए गए. चर्चा और सदन में काफी देर हंगामे के बाद विधेयक को सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया. सदन में चर्चा के बाद सर्वसम्मति से विधेयक पारित हुआ.

विधेयक को जल्द ही राज्यपाल अनुसुइया उइके के पास सहमति के लिए भेजा जाएगा. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि पिछली सरकार ने इसे सर्कुलर के रूप में जारी किया था, हमने इसे एक्ट बना दिया है. अगर जनगणना होगी तो जनगणना के अनुसार आरक्षण का समुचित लाभ दिया जाएगा. इसके तहत जिले स्तर पर लोगों को लाभ मिलेगा. जिन जिलों में ओबीसी की संख्या ज्यादा होगी वहां उन्हे 27% आरक्षण का लाभ मिलेगा.

विधानसभा के सदस्यों से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपील की सभी केंद्र सरकार के पास जाकर नौवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए बात करेंगे ताकि प्रदेश के लोगों को इसका लाभ मिल सके.

सीएम भूपेश बघेल कहा कि छत्तीसगढ़ शैक्षणिक संस्था (प्रवेश में आरक्षण) संशोधन विधेयक, 2022 को भी विधानसभा ने सर्वसम्मति से पारित किया है. छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग व आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण के लिए सर्वसम्मति से पारित विधेयक को केंद्र सरकार के पास भेजने का संकल्प भी विधानसभा में पारित हो गया है. राज्य में अब कुल 76 प्रतिशत आरक्षण हो गया है.

विधानसभा में जमकर हुआ हंगामा

गौरतलब है कि आरक्षण को बढ़ाने के लिए विधानसभा का यह विशेष सत्र बुलाया गया था. चर्चा के दौरान छत्तीसगढ़ विधानसभा में इस बिल को लेकर बीजेपी और कांग्रेस के बीच जमकर हंगामा हुआ. काफी देर बहस के बाद सत्ता पक्ष द्वारा लाए गए आरक्षण विधेयक को सर्वसम्मति से पारित किया गया.

दरअसल, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सितंबर में राज्य सरकार के साल 2012 में जारी उस आदेश को खारिज कर दिया था. जिसमें सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में आरक्षण को 58 प्रतिशत तक बढ़ाया गया था. कोर्ट ने कहा था कि 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक आरक्षण असंवैधानिक है. इस फैसले के बाद आदिवासी समुदायों के लिए आरक्षण 32 प्रतिशत से घटकर 20 प्रतिशत हो गया था.

छत्तीसगढ़ में अगले साल विधान सभा के चुनाव हैं और आदिवासी आरक्षण एक राजनीतिक मुद्दा बन चुका है. राज्यपाल की भूमिका को बेशक चुनाव से दूर और ग़ैर राजनीतिक माना जाता है. लेकिन राजभवन भी कई बार केंद्र में सत्तारूढ़ दल को खुश करने के लिए सीमा को लांघ देते हैं.

छत्तीसगढ़ में भी राज्यपाल अनुसुइया उइके आदिवासी आरक्षण मामले में चल रही राजनीतिक खेल में शामिल होने से पीछे नहीं रहीं. उन्होंने इस सिलसिले में मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर मामले में सरकार के कदम की जानकारी माँगी थी.

उनकी कोशिश शायद यह दिखाने कि थी कि राज्यपाल के दबाव में छत्तीसगढ़ सरकार को आदिवासी आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा था.

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