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बेचाघाट में सालभर से प्रदर्शन कर रहे है आदिवासी, पुल और BSF कैंप का विरोध जारी

छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में बेचाघाट आंदोलन को एक साल पूरा हो चुका है. ये आंदोलन आज भी जारी है. आंदोलन की पहली सालगिरह पर सिलगेर से लेकर असम तक से आदिवासी जनप्रतिनिधि और ग्रामीण बेचाघाट में जमा हुए और अपनी मांगों को लेकर आंदोलन और तेज करने की बात कही.

नक्सल प्रभावित बेचाघाट में 7 दिसंबर 2021 को ग्रामीणों ने कोटरी नदी में पुल और बीएसएफ कैम्प के विरोध में आंदोलन की शुरुआत की थी. लेकिन अब तक प्रशासन ने इनकी सुध नहीं ली है, यही कारण है कि आज एक साल बाद भी ग्रामीण आंदोलनरत हैं. आदिवासियों का कहना है कि सरकारें विकास के नाम पर पहले पुल बनवाती हैं और उसके बाद खनिज संपदा को लूटने का काम करती है.

आदिवसियों ने विकास के नाम पर अपने जल, जंगल जमीन को सरकार को सौंपने से इनकार कर दिया है. ग्रामीणों का स्पष्ट कहना है कि इन नदी-पहाड़ों में उनके देवी-देवताओं का निवास है, वे इसे किसी भी कीमत पर किसी को लूटने नही देंगे.

ग्रामीणों की स्पष्ट मांग है कि जब तक उन्हें लिखित में नहीं दिया जाता है कि उनकी मांगें मान ली गई हैं, तब तक आंदोलन खत्म नहीं होगा.

ख़बरों के मुताबिक बेचाघाट में कोटरी नदी पर पुल और इलाके में कैंप का प्रस्ताव मात्र बनाया गया है, ये अभी तक स्वीकृत भी नहीं हुआ है. लेकिन तब भी ये आंदोलन जारी है.

इस आंदोलन की सालगिरह पर हजारों आदिवासियों का जमावड़ा यहां लगा हुआ है. बस्तर में कैम्प के विरोध में आदिवासियों के 13 जगहों पर आंदोलन चल रहे हैं, आंदोलन के सभी प्रतिनिधि बेचाघाट में जमा हुए और अपनी आवाज बुलंद की.

आदिवासियों का कहना है कि सालों से ये लोग जल, जंगल, जमीन और प्राकृतिक खनिज संपदा की रक्षा करते आ रहे हैं. सरकार बेचाघाट में पुल हमारी सुविधा के लिए नहीं बना रही है, बल्कि उनका मकसद इसका दोहन करना है. स्थानीय आदिवासियों ने शिकायत की कि निर्माण गतिविधियों में तेजी ने शांतिपूर्ण जीवन मेंहस्तक्षेप कर इसे अस्त-व्यस्त कर दिया है. उन्हें डर है कि उनके क्षेत्रों में पुलिस की गतिविधियों में वृद्धि से अत्याचार और हत्याओं के मामले भी कई गुना बढ़ जाएंगे. पुलिस मुखबिर के रूप में माओवादी अक्सर उन्हें निशाना बनाते हैं.

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