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जानिए कौन हैं पंडी राम मंडावी? जिन्हें मिला है पद्मश्री सम्मान

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Droupadi Murmu) ने पद्म पुरस्कारों की घोषणा की. पद्मश्री पुरस्कारों की लिस्ट में छत्तीसगढ़ से 68 वर्षीय पंडी राम मंडावी (Pandi Ram Mandavi) का नाम भी शामिल है.

लकड़ी की कारीगरी और पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्रों के क्षेत्र में उनकी असाधारण उपलब्धि के लिए उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा.  

गोंड मुरिया जनजाति (Gond Muria tribe) से ताल्लुक रखने वाले मंडावी रायपुर से करीब 400 किलोमीटर दक्षिण में माओवाद प्रभावित नारायणपुर जिले के मूल निवासी हैं.

पिछले 50 वर्षों से पारंपरिक चिकित्सा पद्धति से जुड़े 70 वर्षीय हेमचंद मांझी और स्थानीय आदिवासी समुदायों से आए संगीतकारों के ग्रुप ‘बस्तर बैंड’ के निर्माता 55 वर्षीय अनूप रंजन पांडे पहले पुरस्कार प्राप्त करने वाले व्यक्ति हैं. पद्म सम्मान पाने वालों में मंडावी बस्तर के तीसरे शख्स हैं.

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने पद्मश्री से सम्मानित होने पर पंडी राम मंडावी को बधाई दी.

“नारायणपुर के गोंड मुरिया जनजातीय के सुप्रसिद्ध कलाकार श्री पंडी राम मंडावी जी को पद्मश्री सम्मान के लिए चुना जाना छत्तीसगढ़ के लिए गर्व का क्षण है. यह प्रतिष्ठित सम्मान उन्हें पारंपरिक वाद्ययंत्र निर्माण और लकड़ी की शिल्पकला के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया जाएगा.”

सीएम ने आगे लिखा, “उन्होंने (पंडी राम मंडावी) बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित कर अपने अद्वितीय कौशल से इसे नई पहचान दी है. साथ ही उन्होंने अनेक कारीगरों को प्रशिक्षित कर इस परंपरा को नई पीढ़ियों तक पहुंचाया है.आपके सराहनीय कार्यों से समूचा छत्तीसगढ़ गर्व महसूस कर रहा है.”

पंडी राम मंडावी ने पिछले पांच दशकों से न सिर्फ बस्तर की सांस्कृतिक विरासत को संजोया है, बल्कि इसे एक नई पहचान भी दी है. बांस की बस्तर बांसुरी के निर्माण में उनका विशिष्ट योगदान है, जिसे ‘सुलूर’ के नाम से जाना जाता है.

लकड़ी के पैनलों पर बेहद सुंदर उभरी हुई पेंटिंग, मूर्तियां और अन्य ललित कला शिल्प के माध्यम से राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर रचनात्मक गतिविधि और कलाकृति को आगे बढ़ाने का श्रेय भी उन्हें दिया जाता है.

आदिवासी कलाकार मंडावी की उम्र बमुश्किल 12 साल थी, जब उन्होंने अपने पूर्वजों से कला सीखना शुरू किया और अपने जुनून और कौशल के साथ उन्होंने छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र की कलाकृति और संस्कृति को एक नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया.

मंडावी का कहना है कि उन्होंने अपने पिता के साथ काम करते हुए इस कला को सीखा और लकड़ी की कला में अपनी आदिवासी कला संस्कृति और परंपरा को निखारा.

वे अपनी कला के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मशहूर हुए और उन्हें विदेश जाने का मौका भी मिला. उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन 8 से अधिक देशों में किया है.  

वहीं बारह साल पहले उन्हें केरल सरकार की ललितकला अकादमी द्वारा प्रतिष्ठित जे स्वामीनाथन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

अपने निरंतर कोशिशों और वर्कशॉप के माध्यम से उन्होंने एक हजार से अधिक कारीगरों को प्रशिक्षित करके परंपरा को नई पीढ़ियों तक पहुंचाया है.

वहीं गोंड मुरिया समुदाय को उम्मीद है कि मंडावी को इस तरह की मान्यता मिलने से सरकार बस्तर की लकड़ी की कला और उत्पादों के लिए समर्थन और सुरक्षित बाजार उपलब्ध कराएगी.

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