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खनन के खिलाफ तोरगट्टा आंदोलन में शामिल हुए छत्तीसगढ़ के आदिवासी

‘ये युद्ध हमने न प्रारंभ किया, न हमारे जीवन के साथ समाप्त होगा’. महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ सीमा पर गढ़चिरौली के तोरगट्टा में आंदोलन स्थल पर परंपरागत घोटुल समिति सूरजगढ़ द्वारा बनाए गए कई भड़काऊ बैनर और पोस्टरों में से एक में यह बयान दिया गया था.

यह बयान रेखांकित करता है कि दोनों राज्यों के आदिवासी, जिनमें महिलाएं, बच्चे और वरिष्ठ नागरिक शामिल हैं, इस क्षेत्र में खनन प्रस्तावों का विरोध कर कितने हताश हैं. सोमवार को इस आंदोलन के 17 दिन पूरे हो गए हैं.

तनाव हर बीतते दिन के साथ बढ़ता जा रहा है. जिला प्रशासन और पुलिस बल इंतजार करो और देखो का खेल खेल रहे हैं, इस उम्मीद में कि अगले कुछ दिनों में प्रदर्शनकारियों का उत्साह फीका पड़ जाएगा.

छत्तीसगढ़ के कांकेर स्थित एक संगठन सर्व आदिवासी समाज के सदस्य खदान विरोधी आंदोलन में शामिल होने के लिए दक्षिण गढ़चिरौली के तोरगट्टा पहुंचे हैं.

आदिवासियों ने कहा कि जब तक सरकार के प्रतिनिधि प्रस्तावित खनन को रोकने और सड़क, पुलिस स्टेशनों, मोबाइल टावरों के निर्माण और ड्रोन के उपयोग जैसी गतिविधियों को रोकने का आश्वासन नहीं देते तब तक आंदोलन जारी रहेगा.

25 मार्च को भगत सिंह, सुखदेव थापर और शिवराम राजगुरु की शहादत की याद में ‘शहीद दिवस’ मनाने के लिए एटापल्ली और गढ़चिरौली और छत्तीसगढ़ के अन्य आस-पास के तालुकों से एक बड़ी आदिवाासी आबादी आंदोलन में शामिल हुई.

यह जगह प्रशासन के खिलाफ ‘युद्ध’ की घोषणा करने वाले बैनर और पोस्टरों से भरा पड़ा है. प्रदर्शनकारियों ने यह भी बताया है कि वे स्कूल, शिक्षक और स्वास्थ्य सुविधाएं चाहते हैं.

जिला परिषद सदस्य एडवोकेट लालसू नरोटे ने कहा कि सरकार की मंशा तब से स्पष्ट थी जब वह एक राजमार्ग जैसी सड़क बनाने की शुरुआत कर रहे थे. जबकि वास्तव में गांवों को सड़क की जरूरत थ. आदिवासी गढ़ में खनन शुरू करने के लिए सड़क निर्माण पहला चरण है. इसके लिए ग्राम सभाओं को दरकिनार कर दिया जाता है और आदिवासियों की आवाजों पर भी ध्यान नहीं दिया जाता है.

नरोटे ने कहा कि आदिवासी दमकोंडवाही और सुरजागढ़ विस्तार का भी विरोध कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि उनके सहित महाराष्ट्र के आदिवासी लोग अतीत में छत्तीसगढ़ में विरोध करने वाले समकक्षों से मिल चुके हैं और अब वे यहां हाथ मिलाने के लिए आए हैं. उन्होंने कहा, “हमें आदिवासियों के अधिकारों के लिए हाथ मिलाने की जरूरत है.”

गढ़चिरौली पुलिस ने गिरिधर, जो दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के सदस्य है और डिविजनल कमेटी के सदस्य रघु जैसे माओवादी वरिष्ठ कैडर की भूमिका को मानते हुए तोरगट्टा और आसपास के जंगलों में आधा दर्जन से अधिक सी-60 कमांडो दलों को कार्रवाई में लगाया है.

एसपी नीलोत्पल ने कहा कि माओवादी आदिवासियों को गुमराह कर रहे हैं जो सशस्त्र छापामार के प्रकोप के डर से विरोध कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि माओवादी आदिवासियों को एक ऐसी परियोजना के खिलाफ भड़का रहे हैं, जो प्रस्ताव के स्तर पर भी नहीं है.

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