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छत्तीसगढ़: नारायणपुर में फर्जी मुठभेड़ और आरोपों के डर से पुलिस कैंप खोलने के विरोध में आदिवासियों ने किया प्रदर्शन

छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक बार फिर पुलिस कैंप खोलने के प्रयास का आदिवासी ग्रामीणों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा. इस कदम के खिलाफ पूर्वी बस्तर के नारायणपुर जिले में अबूझमाड़ (रहस्य क्षेत्र) के सैकड़ों ग्रामीणों ने विरोध प्रदर्शन किया.

अबूझमाड़ और ग्राम पंचायत मेटानार के आदिवासी ग्रामीण सुदूर बृहबेड़ा गांव में एकत्र हुए और अपने क्षेत्र में एक नया पुलिस कैंप खोलने के विरोध में एक रैली निकाली.

आदिवासी ग्रामीणों ने कहा कि वे अपने क्षेत्र में कैंप खोलने को लेकर आशंकित हैं. उन्हें डर था कि उनके इलाके में नए पुलिस कैंप सुरक्षा बलों को उनके अछूते जंगलों में घुसने का मौका देंगे.

उन्हें नक्सल के रूप में चित्रित किया जाएगा या फर्जी आरोपों के तहत बुक किया जाएगा. क्योंकि नक्सली और नक्सल समर्थक या तो फर्जी मुठभेड़ों में मारे गए या फर्जी आरोपों में फंसकर जेल भेज दिए गए.

गौरतलब है कि पिछले सात महीने से आदिवासी पुलिस कैंप खोलने और निहत्थे आदिवासियों पर गोलियां बरसाने के विरोध में लगातार धरना प्रदर्शन कर रहे हैं.

आरोप है कि मई में सुकमा-बीजापुर सीमा के बीच स्थित सिलगर में आदिवासी ग्रामीणों के विरोध को दबाने के लिए पुलिस ने उन पर गोलियां चला दी थीं.

उस घटना के बाद से आदिवासियों ने लगातार प्रदर्शन कर न्याय की मांग की है. इसके अलावा बीजापुर जिले को प्रभावित करने वाले नक्सल के पुस्नार और बुर्जी इलाके से भी इसी तरह के अंतहीन विरोध की सूचना मिली थी.

आदिवासी लड़के सुरेश मंडावी ने कहा कि नया पुलिस कैंप सुरक्षा बलों को हम आदिवासियों पर अधिक अत्याचार करने की अनुमति देगा. जो घने जंगलों सहित अपने निर्जन क्षेत्रों में प्रतिबंध मुक्त जीवन जीते हैं.

शिकायत करते हुए उन्होंने कहा कि सिलगर फायरिंग की घटना में लगभग चार निर्दोष आदिवासी मारे गए और 40 से अधिक घायल हो गए और अब तक हमें न्याय नहीं मिला है. इस भीषण कृत्य के लिए किसी भी पुलिस अधिकारी को बुक या दंडित नहीं किया गया था.

पुलिस अधीक्षक नारायणपुर, गिरिजाशंकर जायसवाल ने कहा, “नारायणपुर जिले में कैंप लगाने की हमारी कोई नई योजना नहीं है. हो सकता है कि किसी ने आदिवासियों को गलत सूचना दी हो और ऐसा कुछ हुआ हो.”

हालांकि, नारायणपुर में ताजा आदिवासी विरोध की खबर को कवर करने वाले स्थानीय पत्रकार मंकू राम नेताम ने कहा कि सैकड़ों ग्रामीण अपने पारंपरिक हथियारों के साथ साइट पर जमा हो गए. जिन्होंने अपने क्षेत्र में पुलिस कैंप खोलने के खिलाफ अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने का फैसला किया है.

आदिवासी नेता सोहन नेताम ने कहा कि हम विकास के खिलाफ नहीं हैं लेकिन हम चाहते हैं कि एक अस्पताल और स्कूल प्राथमिकता हो न कि पक्की सड़कें.

अगर ऐसी सड़कें बनीं तो हमारी संस्कृति, रहन-सहन, परंपरा, मन की शांति सब कुछ दांव पर लग जाएगा. इसलिए हम पुलिस कैंप के बजाय अस्पतालों, शिक्षा, स्कूलों और अन्य की मांग करते हैं.

सुरक्षा विशेषज्ञों ने कहा कि अगर पुलिस को नक्सलियों का खात्मा करना है, तो उन्हें आदिवासियों का दिल जीतना होगा. भारी बल प्रयोग से अकेले नक्सलियों का खात्मा नहीं हो सकता.

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