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ज़िंदा जल गए आदिवासी बच्चे, स्कूल खुला होता तो बच जाते

झारखंड में गढ़वा जिले के दुर्गम पहाड़ों परे बसे बहेरा टोली गांव में शनिवार, 9 अप्रैल की सुबह करीब साढ़े दस बजे आग में झुलस कर दो बच्चों की मौत हो गई. ये दोनों ही बच्चे कोरवा जनजाति के बताए गए हैं. कोरवा जनजाति को पीवीटीजी या आदिम जनजाति कहा जाता है.

इस जनजाति की आबादी लगातार कम हो रही है. स्थानीय प्रशासन के अनुसार इस घटना में एक बच्चा गंभीर रूप से झुलस गया. उसको इलाज के लिए भंडरिया के अस्पताल में दाखिल कराया गया है. घटना के वक्त बच्चों के माता-पिता महुआ चुनने जंगल गए हुए थे. इसी दौरान बच्चों ने खेल-खेल में बरामदे में रखे सरसों फसल के बोझे में आग लगा दी और उसकी चपेट में आ गए.

महुआ का मौसम और अकेले बच्चे

इस घटना के बारे में पता चला है कि बच्चों के माता-पिता हर दिन की तरह सुबह लगभग छह बजे अन्य ग्रामीणों के साथ महुआ चुनने जंगल चले गए थे. इसी बीच बच्चों की गलती से घर में रखी सरसों की फसल में लगी आग चारों तरफ फैल गई. 

ऐसा लगता है कि आग से बचने के लिए राजनाथ कोरवा की तीन वर्षीय बेटी रुबिता कुमारी और बिगन कोरवा का तीन वर्षीय पुत्र चंद्रेश कुमार घर के कोने में छिप गया. देखते ही देखते आग की लपटें उन तक पहुंच गईं और दोनों बच्चे ज़िंदा ही जल गए. वहीं, पांच वर्षीय चंदन कोरवा आग में बुरी तरह से झुलस गया.

आदिवासी इलाक़ों में यह महुआ का मौसम है. इस दौरान जंगलों में बसे आदिवासी परिवार सुबह सुबह ही महुआ जमा करने जंगल में चले जाते हैं. महुआ आदिवासी आबादी के लिए बड़ा सहारा है. महुआ को ताज़ा और सुखा कर दोनों ही तरह से बाज़ार में बेचा जाता है. 

महुआ आदिवासी भारत में आमदनी का एक बड़ा ज़रिया है. इसलिए इस मौसम में आदिवासी की प्राथमिकता सुबह सुबह महुआ जमा करना ही रहता है. इस दौरान आदिवासी इलाक़ों में बच्चे अक्सर घर पर अकेले ही रहते हैं.

अगर स्कूल खुला होता तो बच जाते बच्चे

इधर, घटना स्थल से महज दो सौ मीटर पर स्थित निर्माणाधीन बहेराटोली पुलिस कैंप में तैनात जवानों ने जैसे ही धुंआ उठते देखा, तत्काल वहां पहुंच गए. उन लोगों ने काफी मशक्कत से आग बुझाई. इससे घर पूरी तरह जलने से बच गया. 

जवानों ने बताया कि घर में आग लगी है यह तो दिख रहा था, पर वहां मासूम बच्चे भी हैं, पता नहीं चल सका. गांव के कई लोगों ने इस बारे में बताया कि पास में ही प्राथमिक विद्यालय, कोवा टोली है. यहां घायल चंदन नामांकित है. उसी के साथ सभी बच्चे खेल रहे थे. अगर विद्यालय खुला होता तो शायद यह घटना नहीं घटती, लेकिन चार माह से विद्यालय नहीं खुला है.

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