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मणिपुर की आदिवासी लोककथाओं पर कॉमिक बुक, संस्कृति को समझने में मिलेगी मदद

आदिवासी भारत में उनकी कहानियां, उनकी प्रथाएं आमतौर पर एक पीढ़ी से अगली तक, लोककथाओं के ज़रिये मुंहज़बानी पहुंचाई जाती है. कई आदिवासी भाषाओं की कोई लिपि नहीं होती है, और कई बार इस वजह से भाषाएं और कहानियां दोनों लुप्त हो जाती हैं.

आदिवासी भाषाओं और लोककथाओं को बचाए रखने के लिए कई अलग-अलग प्रयास देशभर में किए जा रहे हैं. इसी कड़ी में मणिपुर में अपनी तरह की पहली रंगीन कॉमिक बुक छापी गई है.

इस कॉमिक बुक में माओ, मारम और पुमई आदिवासी समुदायों की 15 लोककथाएं शामिल हैं.

पूर्वोत्तर भारत की अधिकांश आबादी आदिवासी है

कॉमिक बुक को बनाने वालों को उम्मीद है कि उनके इस प्रयास से आदिवासी बच्चों में किताबें पढ़ने की रुचि बढ़ेगी. इसके अलावा वह अपनी संस्कृति को बेहतर समझ पाएंगे.

साथ ही उम्मीद है कि ग़ैर-आदिवासी लोगों को आदिवासी संस्कृति को क़रीब से समझने का मौक़ा मिलेगा.

इन लोककथाओं में फेशि अंगोवो के गाने, मारी जनजाति के गाने, और माओ और मारम समुदाया की बूढ़ी महिलाओं के स्मरण के गीत शामिल हैं. इसके अलावा पुमई जनजाति की  गॉडमदर चौरो की लोककथाएं हैं.

यह किताब कॉमिक स्ट्रिप्स के ज़रिये इन आदिवासियों की जीवन शैली, परंपराओं और संस्कृति को दर्शाती है.

कॉमिक बुक का विमोचन करते हुए मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह ने कहा कि इस तरह के प्रकाशन से इन समुदायों के पूर्वजों को याद रखने में मदद मिलेगी.

किताब में छपी लोककथाएँ माओ, मारम और पुमई जनजातियों की साहित्य समितियों ने उपलब्ध कराई थीं. साथ ही मारम के छात्र संघ ने भी इसमें मदद की.

मणिपुर की दूसरी जनजातियों और समुदायों की लोककथाओं पर भी इस तरह की पुस्तकों पर काम चल रहा है. मणिपुर में कुल 33 आदिवासी समुदाय हैं, जिनमें से एक, मारम नागा आदिम जनजाति है.

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