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मणिपुर के चुराचांदपुर में ज़ोमी-कुकी विवाद गहराया

मणिपुर में जारी जातीय तनाव एक बार फिर बढ़ता नज़र आ रहा है.  

चुराचंदपुर ज़िले में ज़ोमी काउंसिल ने कुकी ज़ो काउंसिल का विरोध किया है.

ज़ोमी काउंसिल का कहना है कि कुकी ज़ो नाम और उससे जुड़ा संगठन ज़ोमी बहुल इलाकों में स्वीकार्य नहीं है. ज़ोमी काउंसिल का आरोप है कि कुकी ज़ो काउंसिल यहां अनधिकृत तरीके से काम कर रही है.

बयान में कहा गया कि केंद्र सरकार के कुछ अधिकारी इस संस्था से राष्ट्रीय हाइवे खोलने और आवागमन शुरू करने को लेकर चुपचाप बातचीत कर रहे हैं.

ज़ोमी काउंसिल ने चेतावनी दी कि ऐसी चर्चाओं में उनकी भागीदारी ज़रूरी है.

इस काउंसिल का कहना है कि अगर उन्हें और उनके सहयोगी संगठनों को शामिल नहीं किया गया तो ऐसे समझौते बेकार होंगे और उन्हें स्वीकार नहीं किया जाएगा.

ज़ोमी काउंसिल ने याद दिलाया कि मई 2024 में ही उन्होंने कुकी ज़ो शब्द को खारिज कर दिया था.

उन्होंने साफ कहा था कि यह नाम और इससे जुड़ी संस्था ज़ोमी इलाकों में मंज़ूर नहीं है. खासतौर पर चूराचंदपुर और लामका जैसे पहाड़ी इलाकों में.

काउंसिल ने निर्देश दिया है कि कुकी ज़ो काउंसिल केवल उन्हीं इलाकों में दफ्तर खोले, जहां लोग उन्हें मान्यता दें.

ज़ोमी काउंसिल ने कहा कि वह हमेशा अपनी नौ सदस्य जनजातियों के साथ खड़ी रहेगी और उनकी सुरक्षा, सम्मान और कल्याण की रक्षा के लिए अथक प्रयास करती रहेगी.

मणिपुर में पिछले दो साल से ज़्यादा समय से जातीय संघर्ष जारी है.

मई 2023 में मैतई समुदाय ने खुद को अनुसूचित जनजाति (ST) दर्जा देने की मांग की थी. कुकी समुदाय ने इस मांग का विरोध किया था.

ये विरोध इतना बढ़ गया कि हिंसा में तब्दील हो गया. झड़पें हुईं, सैकड़ों लोगों की मौत हुई और हजारों लोग विस्थापित हुए.

प्रशासन पर आरोप लगा कि वह हिंसा रोकने में नाकाम रही.

बढ़ते दबाव के बीच 9 फरवरी 2025 को मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को भी इस्तीफा देना पड़ा.

13 फरवरी 2025 को मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ. यानी राज्य का प्रशासन सीधे केंद्र सरकार के हाथ में चला गया.

हाल ही में लोकसभा ने राष्ट्रपति शासन को 6 महीने और बढ़ाने की मंजूरी दी. यानी अब यह फरवरी 2026 तक जारी रहेगा.

राष्ट्रपति शासन लागू होने के बावजूद, अलग-अलग जनजातीय संगठनों के बीच विवाद कम नहीं हुआ.

इस घटना से पता चलता है कि मणिपुर में शांति बहाल करने के लिए सिर्फ प्रशासनिक कदम ही काफी नहीं हैं.

जब तक सभी पक्षों को बराबर हिस्सेदारी और भरोसा नहीं मिलेगा, तब तक इस तरह के टकराव सामने आते रहेंगे.

(AFP file image)

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