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केरल की 240 आदिवासी बस्तियों पर टूटा कोविड-19 का क़हर

केरल की राजधानी तिरूअंनतपुरम की आदिवासी बस्तियों में कोविड 19 के बढ़ते प्रकोप ने प्रशासन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. इस ज़िले के ग्रामीण और आदिवासी इलाक़ों में कोविड 19 तेज़ी से फैल रहा है. 

यहाँ सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि कोविड संक्रमित लोगों को परिवार के दूसरे सदस्यों से अलग रखना संभव नहीं है. आदिवासी बस्तियों में लोगों का कहना है कि ज़्यादातर आदिवासी परिवार एक कमरे के घर में रहते हैं. 

इसलिए संक्रमित व्यक्ति को परिवार से अलग रखने की व्यवस्था बनाना बेहद मुश्किल काम है. यहाँ के लोगों का यह भी आरोप है कि स्थानीय प्रशासन इस मामले में लोगों की कुछ ख़ास सहायता नहीं कर रहा है. 

तिरूअंनतपुरम की एक आदिवासी बस्ती में कोविड पॉज़िटिव पाई गई एक महिला का कहना था कि यहाँ पर होम आईसोलेशन विकल्प नहीं है. 

अगर किसी एक व्यक्ति को पॉज़िटिव पाया जाता है तो पूरे परिवार को ही आईसोलेशन में जाना पड़ता है. उन्होंने बताया कि उनकी बस्ती में कम से कम 13 परिवारों को होम आईसोलेशन में जाना पड़ा है. 

उनका कहना था कि कोविड 19 के आदिवासी इलाक़ों में फैलने से यहाँ पर ख़तरा बहुत बढ़ गया है. इस महिला का कहना है कि आदिवासी बस्तियों में लोग डर के साये में जी रहे हैं. ज़्यादातर परिवारों ने घर से निकलना बंद ही कर दिया है. 

आदिवासी इलाक़ों से अस्पतालों तक पहुँचना आसान नहीं है

लेकिन मुश्किल ये है कि उनके पास खाने का राशन और दूसरी ज़रूरी चीजें पहुँचाने की व्यवस्था नहीं की गई है. 

इस महिला की बातों को काफ़ी हद तक ज़िला प्रशासन भी सही ही मानता है. ज़िला प्रशासन के अनुसार तिरूअंनतपुरम के वितुरा पंचायत क्षेत्र में कम से कम 180 एक्टिव कोरोनावायरस मामले दर्ज किए गए हैं. 

प्रशासन का कहना है कि आदिवासी इलाक़ों में कोविड 19 फैलने का बड़ा कारण अंतिम संस्कार में बड़ी संख्या में लोगों का शामिल होना है. प्रशासन का कहना है कि कोविड 19 से हुई मौतों के बाद अंतिम संस्कार में बस्ती के लगभग सभी लोग शामिल होते रहे हैं. 

इस वजह से अंतिम संस्कार में शामिल ज़्यादातर लोगों और फिर उनसे उनके परिवारों में संक्रमण फैला है. 

यहाँ लोगों की मुश्किलें इसलिए भी बढ़ गई हैं कि अब दुकानदार इन परिवारों को सामान नहीं बेच रहे हैं. 

इस ज़िले में कम से कम 240 आदिवासी बस्ती हैं और इन बस्तियों में कम से कम 6800 परिवार रहते हैं. यहाँ के लोगों का कहना है कि ताज़ा हालात में आदिवासी बस्तियों से अस्पताल जाने के लिए ट्रांसपोर्ट नहीं मिल रहा है. 

इसलिए बेहतर होगा कि सरकार यहाँ पर बस्तियों में ही टेस्टिंग की सुविधा उपलब्ध करा दे. इन आदिवासी बस्तियों में काफ़ी लोगों में कोरोनावायरस के लक्षण नज़र आ रहे हैं.

लेकिन बहुत से ऐसे लोग भी हो सकते हैं जिनमें लक्षण नहीं है लेकिन फिर भी संक्रमण हो सकता है.

ऐसे लोगों की जाँच होना बेहद आवश्यक है. क्योंकि इन लोगों से संक्रमण फैलने का ख़तरा ज़्यादा रहता है. 

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