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संसदीय पैनल: आदिवासी, दलित महिलाओं और बच्चों के ख़िलाफ़ अपराध में बढ़ोत्तरी, लेकिन सज़ा की दर बेहद कम

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गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति की एक रिपोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं और बच्चों के ख़िलाफ़ अत्याचार और अपराध के बढ़ते मामलों, ऐसे मामलों में कम सज़ा दरों और ज़्यादातर मामालों की पेंडेंसी को हाइलाइट किया गया है.

यह रिपोर्ट पिछले हफ़्ते राज्यसभा में पेश की गई थी. इसमें कहा गया है कि पिछले तीन सालों (2017-2019) में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों की महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों में 15.55 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है. इसी अवधि में Prevention of Atrocities (PoA) Act के तहत सज़ा सिर्फ़ 26.86 प्रतिशत मामलों में हुई है, और 84.09 प्रतिशत मामले क़ानून के दांव-पेंच में अटके हैं.

पैनल की सिफारिश है कि लॉ एनफ़ोर्समेंट एजेंसियां एससी / एसटी महिलाओं के खिलाफ बलात्कार, और यौन उत्पीड़न के मामलों को दर्ज करते हुए PoA अधिनियम के प्रावधानों को भी शामिल करें.

नैशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार 2017 से 2019 तक अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत अपराध की कुल 1,31,430 घटनाओं में से 15.73 प्रतिशत महिलाओं और बच्चों के ख़िलाफ़ रही हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि इन में बलात्कार, बलात्कार के प्रयास और महिलाओं पर हमला, मारपीट, अपहरण और अपहरण से लेकर शादी के लिए मजबूर करने तक के अपराध शामिल हैं.

रिपोर्ट में एनसीआरबी के आंकड़ों के माध्यम से यह भी बताया गया है कि 2017-2019 तक, एससी / एसटी समुदायों से महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों की संख्या में 15.55 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.0

2017 में महिलाओं के खिलाफ 6,321 कुल अपराध थे, जो बढ़कर 2018 में 6,800 और 2019 में 7,485 हो गए. सबसे ज़्यादा बढ़ोत्तरी अपमान और बलात्कार के अपराधों में हुई है. जहां अपमान के मामले 50 प्रतिशत बढ़े, वहीं बलात्कार के मामलों में 22.14 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई.

आटरेजिंग मॉडेस्टी (Outraging modesty) से संबंधित मामलों में 16.25 प्रतिशत और बलात्कार के प्रयास में 15.32 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई. सिर्फ़ शादी के लिए अपहरण करने की घटनाओं में 47.61 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई.

दूसरी बड़ी चिंता की बात है ऐसे मामलों की उच्च पेंडेंसी दर. पैनल की रिपोर्ट में एनसीआरबी के आंकड़ों के हवाले से बताया गया है कि विशेष अदालतों में दलित और आदिवासी महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों की पेंडेंसी दर सभी प्रकार की हिंसा के लिए ज़्यादा है.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हाल के वर्षों में एससी / एसटी महिलाओं और बच्चों के ख़िलाफ़ अपराधों में बढ़ोत्तरी का मुख्य कारण कानूनों का खराब कार्यान्वयन और कानून लागू करने वाली एजेंसियों का उदासीन रवैया है. इसके अलावा रिपोर्ट कहती है कि उच्च बरी दर शक्तिशाली समुदायों को निरंतर प्रोत्साहित करता है.

पैनल ने सिफारिश की है कि गृह मंत्रालय को जाति और लिंग आधारित हिंसा के सर्वाइवर्स के पुनर्वास के लिए मुफ्त कानूनी सहायता सहित आवास, आजीविका, शिक्षा और सुरक्षा प्रदान करने के लिए सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के साथ गठबंधन करना चाहिए.

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