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त्रिपुरा का डारलोंग समुदाय एसटी सूची में शामिल, लोकसभा में बिल पारित

लोकसभा में सोमवार को एक अहम विधेयक पास हुआ. लोकसभा द्वारा त्रिपुरा की अनुसूचित जनजातियों की सूची में ‘डारलोंग’ समुदाय को ‘कुकी’ की उप-जनजाति के रूप में शामिल करने के लिए एक विधेयक पारित किया गया.

डारलोंग समुदाय 1990 के दशक से अलग मान्यता की मांग कर रहा है. डारलोंग समुदाय के लगभग 11,000 लोग फिलहाल त्रिपुरा में रहते हैं.

बहस के दौरान विपक्ष के सदस्यों ने अनुसूचित जाति और जनजाति की सूची में समुदायों को शामिल करने पर एक व्यापक कानून बनाने की जरूरत उठाई.

कई सदस्यों ने कहा कि इस तरह टुकड़ों में आवंटन के बजाय एक ठोस कानून लाये जाने की जरूरत है.

जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने लोकसभा में संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक, 2022 (Constitution (Scheduled Tribes) Order (Amendment) Bill, 2022) पेश करते हुए कहा कि केंद्र सरकार आदिवासी समुदायों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने की दिशा में काफी काम कर रही है.

मुंडा ने कहा कि सरकार की इन कोशिशों के परिणाम स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में जल्दी ही दिखाई देंगे.

उन्होंने सभा को बताया, “सरकार आदिवासी इलाकों के विकास के लिए प्रतिबद्ध है और इस मकसद के लिए पर्याप्त धन आवंटित किया गया है.”

आदिवासियों की स्वास्थ्य जरूरतों से जुड़े सवाल पर उन्होंने कहा कि यह मुद्दा सरकार के लिए बेहद जरूरी है और हाल ही में ICMR (Indian Council of Medical Research) को इस क्षेत्र में अनुसंधान के लिए धन आवंटित किया गया है.

डारलोंग समुदाय की एसटी सूची में शामिल होने की मांग पुरानी है

जनगणना की ज़रुरत

बहस के दौरान, कई विपक्षी सदस्यों ने राज्यों से अलग अलग जातियों को अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने के लिए एक व्यापक कानू बनाने पर जोर दिया.

डीएमके के ए राजा ने कहा कि आजादी के बाद से कई सरकारों द्वारा कर अलग अलग कदम उठाए जाने के बावजूद, एससी और एसटी समुदायों की ज्यादा बेहतरी नहीं हुई है. उन्होंने कहा कि यह चिंता की बात है.

उन्होंने लोकसभा में कहा, “सभी राज्यों से विवरण मांगा जाए और अध्ययन किया जाना चाहिए. अध्ययन के बाद, आप सूचीबद्ध करें कि कौन से समुदाय एससी और एसटी की सूची में शामिल हो सकते हैं.”

कांग्रेस के प्रद्युत बोरदोलोई ने कहा कि असम समेत कई राज्यों में कई समुदाय एससी और एसटी की सूची में शामिल होने की मांग कर रहे हैं. संसदीय समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बोरदोलोई ने कहा कि पैनल ने नोट किया है कि राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग पिछले चार सालों से निष्क्रिय है और उसने एक भी रिपोर्ट जारी नहीं की है.

ST सूची में शामिल होने के मानदंड

अनुसूचित जनजाति के रूप में किसी समुदाय की पहचान के लिए कुछ खास मानदंड हैं. हालाँकि, इन मानदंडों को संविधान में वर्णित नहीं किया गया है, लेकिन सरकार मोटे तौर पर इन्हें फॉलो करती है.

इनमें:

(i) आदिम लक्षणों के संकेत,

(ii) खास संस्कृति,

(iii) भौगोलिक अलगाव,

(iv) मुख्यधारा के समाज के साथ संपर्क में हिचकिचाहट,

(v) पिछड़ापन

शामिल हैं.

इसके अलावा, सूची में शामिल होने के सिर्फ उन प्रस्तावों पर विचार किया जाता है जिनकी संबंधित राज्य सरकार / केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन द्वारा सिफारिश की गई है, और भारत के रजिस्ट्रार जनरल (RGI) और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) द्वारा सहमति दी गई है.

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